अभिसार शर्मा का ब्लॉग- ‘बीजेपी का रिकॉर्ड अटक क्यों जाता है!’

परवेश साहिब सिंह वर्मा ने क्या कहा इस पर मत जाइए। उस बयान के ज़रिए वो, या ये कहा जाए अमित शाह क्या हासिल करना चाहते हैं, उसपर गौर कीजिए। बकौल परवेश , ” मुसलमान ही क्यो आतंकवादी होता है? मुसलमान बीजेपी को इस लिए वोट नही देता क्योंकि बीजेपी एक देशभक्त पार्टी है।”
जगह देखिए और खुद परवेश की राजनीतिक और जातीय ज़मीन देखिए। परवेश एक जाट नेता हैं, मरहूम साहिब सिंह वर्मा के बेटे। और जगह है बागपत यानि पश्चिमी यूपी, यानि २०१३, यानि मुज़्जफरनगर। वो दंगा जिसने साल २०१४ के मोदी विजय रथ के लिए ज़मीन तैयार की थी। अब एक और तारीख पर गौर कीजिए। 8 नवम्बर । वो तारीख, जो पश्चिमी यूपी के तमाम बीजेपी नेताओं के लिए किसी बुरे ख़्वाब से कम नही है। वो इसलिए क्योकि बागपत का पूरा का पूरा ईंट उद्योग बैठ गया है। बाघपत का 75 प्रतिशत राजस्व यहाँ की ईंट की भट्टियों से जाता है। यहाँ की 550 में से 150 पूरी तरह बंद हो चुकी हैं और बाकी 400 में भी काम रुका हुआ है. पहले 1300ट्रक यहां से शहरों का रुख करते थे। अब बमुश्किल १०० ट्रक घिसट घिसट कर शहर की ओर निकल पाते हैं। हर भट्टे का टर्नओवर करीब 50 लाख होता है और नोटबंदी की बदौलत यहां अब सन्नाटा है। यही हाल पेपर मिल्स का है पिछले एक महीने मे हर पेपर या स्टील मिल्स २० से २५ मज़दूरों की छटनी कर चुकी है। कोल्हुओं मे काम बंद है। गन्ने की कीमत नही मिल रही। पड़ा पड़ा सूख रहा है। मेरठ का गुदड़ी बाज़ार यानि कपड़े रजा़ई का बाज़ार पूरी तरह ठंडा है। कैंची उद्योग भी दम तोड़ रहा है। विस्तार से जानने के लिए मेरी टीवी पर की गई इस पड़ताल ज़रूर देखें।

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यानि धंधा चौपट और मज़दूर, किसान, व्यापारी पस्त । बकौल विक्रम राणा , जो भट्टा संघ के प्रमुख हैं, ” ये नोटबंदी किसी नसबंदी से कम नहीं। जैसे उस वक्त जनता ने इंदिरा गांधी को अपनी ताकत दिखाई थी, वही हश्र मोदी का होगा। ” सच भी है। आक्रोश बढ़ है और अगर हालात जस के तस बने रहे तो मुझे ये कहने मे कोई संकोच नही कि बीजेपी यूपी चुनावो मे तीसरे नम्बर की पार्टी उभर कर आएगी। नीचे भी जा सकती है , मगर कांग्रेस को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी.

अब फिर गौर कीजिए परवेश वर्मा के बयान पर। साफ झलक रहा है कि मक़सद है हारती बाज़ी को वापस अपने हाथ मे लेने कि और इसके लिए अमित शाह के नेत्रत्व वाली बीजेपी अपने पुराने रामबांण का इस्तेमाल करेगी। यानी साम्प्रदायिक ध्रुविकरण , मज़हबी तौर पर उत्तेजनात्मक बयान देना और इसके लिए एक जाट नेता परवेश वर्मा का इस्तेमाल करना क्योंकि जाटों और मुसलमानो के आपसी संघर्ष को किसी ने सही मायने मे चुनावों के लिए भुनाया है तो वो बीजेपी है। याल २०१४ इसकी एक बानगी है।

और यही बात मेरे ज़हन मे भी थी जब मै पश्चिमी यूपी की यात्रा पर था। बीजेपी फिलहाल यूपी हार चुकी है। अब इंतज़ार मोदीजी के किसी नए शिगूफे का है या फिर उसके ट्राईड एंड टेस्टेड फारमूला यानि साम्प्रदायिक ध्रुविकरण पैदा करना। मौजूदा हालात मे बीजेपी सिर्फ तभी जीत सकती है अगर वो नोटबंदी के असर को चमत्कारिक तरीके से अगले एक महीने मे पलट दे या फिर वोट को दो फाड़ कर दे। ख़बरों से साफ है कि अमित शाह नरवस हैं और इसका सुबूत उनका पार्टी के बैठकों मे बार बार अपना आपा खोना है। सांसद उन्हे जो ग्राउंड रिपोर्ट दे रहे हैं , अमित शाह सुनना नही चाहते हैं। मौजूदा हालात मे जीत तभी संभव है अगर धंधे बर्बाद और रोज़गार खत्म होने के बावजूद लोग फिर भी मोदीजी पर एतबार करें। क्या ऐसा संभव है? खासकर तब जब ये सरकार नोटबंदी के बाद बार बार परिवर्तन कर रही है ? 59 बार आदेश बदल चुकी है ? खुद प्रधानमंत्री बार बार अपना रुख बदल चुके हैं? पहले दो से तीन दिन मे हालात सामान्य होने का भरोसा , फिर सिर्फ 50 दिन , फिर पचास दिन के बाद “धीरे धीरे हालात सामान्य होने की बात। क्या जनता वाकई ऐसी बौखलाई और असमंजस मे घिरी सरकार की नीतियो के समर्थन मे वोट करेगी?

मुझे नही लगता की जनता इतनी बड़े दिल वाली हो सकती है। मगर हिंदू मुसलमान का दोहराव ऐसा है जिसपर बीजेपी को हमेशा एतबार रहा है। बिहार का मुसलमान राजनीतिक तौर पर समझदार था। उसे उत्तेजित करने की पूरी कोशिश की गई। मुस्लिम बाहुल इलाको से धार्मिक जुलूस निकाले गए। भागलपुर मे उत्तेजना वाले कई काम किए गए , मगर वो चुप रहा। इसके अलावा बिहार पर जाति फैक्टर हावी है । यही वजह है कि बीजेपी की लाख कोशिश के बावजूद , बिहार मे धार्मिक ध्रुविकरण काम न आया।

अभी फिलहाल मोदीजी रैलियो मे नोटबंदी की खासियत और काल्पनिक सफलताएं गिना रहे है। इंतज़ार कीजिए । तेवर बदलेंगे। फिर वही होगा। ढ़ाक के तीन पात।