अमानत और इसके एहकाम व मसायल

(मोहम्मद नजीब कासमी संभली) अमानत के एहकाम व मसायल समझने से पहले चंद तमहीदी बातें जेहननशीन करना जरूरी हैं। अमानत उस माल या सामान को कहते हैं जो किसी के पास बतौर अमानत रखा जाए। जिसके पास अमानत रखी जाए उसको अमानतदार या अमीन कहते हैैं।

माल या सामान के मालिक को अमानतदहिंदा या अमानत गुजार कहते हैं। मसलन अगर जैद ने अब्दुल्लाह के पास एक हजार रूपए बतौर अमानत रखे तो जैद अमानत दहिंदा या अमानत गुजार, अब्दुल्लाह आमनतदार या अमीन और एक हजार रूपए अमानत कहलाएंगे।

इस्लाम ने हर अमले खैर के करने की तरगीब और हर अमले शर से बचने की तालीम दी है। अमले खैर में से एक यह भी है कि अगर कोई शख्स अपना माल या सामान किसी शख्स के पास बतौर अमानत रखना चाहे तो अमानतदार यानी अमीन अगर वह उस माल या सामान की हिफाजत कर सकता है तो सारी इंसानियत के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत के मुताबिक उस माल या सामान को बतौर अमानत रखकर अपने भाई की मदद करे। गरज कि शरीअते इस्लामिया ने हमें अपने पास अमानत रखने और अमानत दहिंदा के मतालबे पर वापस करने की खुसूसी तालीमात दी हैं क्योंकि उसके जरिए आपस में मेल-जोल, मोहब्बत और एक दूसरे पर भरोसा पैदा होता है जो एक अच्छे समाज के वजूद का सबब बनता है।

नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास सहाबा यहां तक कि कुफ्फारे मक्का भी अपनी अमानतें रखा करते थे। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इस जिम्मेदारी को बखूबी अंजाम दिया करते थे। इसलिए आप की अमानतदारी को देखकर नबुवत से पहले ही आप को अमीन के लकब से नवाजा गया।

नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जब मक्का से मदीना हिजरत करने का इरादा फरमाया तो आपके पास लोगों की जो अमानतें रखी हुई थीं हजरत अली (रजि0) को अमानत दहिंदा के पास पहुंचाने की जिम्मेदारी अता फरमाई और मदीना के लिए हिजरत फरमा गए। हजरत अली (रजि0) आपके बिस्तर पर ही सोए ताकि सुबह नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की नयाबत में सारी अमानतें लोगों को वापस कर दें और किसी शख्स को यह शुब्हा भी न हो कि नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अमानतें ले कर चले गए।

कुरआने मजीद और हदीस में अमानत और इसके एहकाम से मुताल्लिक कई बार जिक्र आया है। चंद आयात व अहादीस पेशे खिदमत हैं।

यकीनन अल्लाह तआला तुम्हें हुक्म देता है कि अमानतें उनके हकदारों को पहुंचाओ। (सूरा निसा-58)
हां अगर तुम एक दूसरे पर भरोसा करो तो जिस पर भरोसा किया गया है वह अपनी अमानत ठीक-ठीक अदा कर दे। (सूरा बकरा-283)

ऐ ईमान वालो! अल्लाह और रसूल से बेवफाई न करना और न जानते-बूझते अपनी अमानतों में ख्यानत के कुसूरवार होना। (सूरा इंफाल-27)

और जो अपनी अमानतों और अहद का पास रखने वाले हैं यह वह लोग हैं जो जन्नतों में इज्जत के साथ रहेंगे। (सूरा मआरिज-32)

इसी तरह नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया कि अमानत के तौर पर रखी चीज को वापस करना चाहिए। (तिरमिजी, अबू दाऊद, इब्ने माजा)

कुरआन व हदीस की रौशनी में उम्मते मुस्लेमा का इत्तफाक है कि किसी का माल व सामान बतौर अमानत अपने पास रखना बाइसे अज्र व सवाब है। अल्लाह तआला का इरशाद है- नेकी और तकवा में एक दूसरे के साथ तआवुन करो। और नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया कि अल्लाह तआला बंदे की मदद करता रहता है जब तक बंदा अपने भाई की मदद करता रहे। (सही मुस्लिम)

कुरआन व हदीस में वजाहत और इज्माअ उम्मत के साथ इंसानी जिंदगी का तकाजा भी है कि अमानत रखने और लेने की इजाजत दी जाए। लिहाजा हमें चाहिए कि अगर हमारा कोई भाई या दोस्त या पड़ोसी अपना माल या सामान बतौर अमानत हमारे पास रखना चाहे और हम उस जिम्मेदारी को बखूबी अंजाम दे सकते हैं तो हमें अपने नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के नक्शे कदम पर चलते हुए उसके माल या सामान को अपने पास बतौर अमानत रख लेना चाहिए और इंशाअल्लाह उस अमले खैर पर अल्लाह तआला की जानिब से बड़ा अज्र मिलेगा।

अमानत का हुक्मः- आम तौर पर किसी का माल या सामान अपने पास बतौर अमानत रखना एक मुस्तहब अमल है जो बाइसे अज्र व सवाब है। अलबत्ता बाज हालात में अमानत रखना वाजिब हो जाता है। मसलन किसी शख्स का माल गैर महफूज है और आपकी अमानत में उसके माल या सामान की हिफाजत हो सकती है और कोई दूसरा जिम्मेदार शख्स मौजूद नहीं है तो आप की जिम्मेदारी है कि उस शख्स के माल व सामान को अपने पास बतौर अमानत रख लें ताकि उस शख्स का माल या सामान महफूज हो सके। अमानत रखने में हकीकतन अपने भाई या पड़ोसी या दोस्त की खैर ख्वाही और भलाई मतलूब होती है। अगर आप अमानत की हिफाजत नहीं कर सकते हैं तो आपके लिए बेहतर है कि आप किसी की अमानत अपने पास न रखें।

अगर कोई सामान या रकम बतौर अमानत रख दी गई तो उस पर कई एहकाम मुरत्तब होंगे। उनमें बाज अहम यह हैंः- माल या सामान अमानतदार यानी अमीन के पास बतौर अमानत रहेगा। अमानतदार यानी अमीन को जहां तक हो सके अमानत की हिफाजत करनी चाहिए। अमानत दहिंदा यानी अमानत गुजार अपना माल या सामान किसी भी वक्त वापस ले सकता है। अमानतदार यानी अमीन अमानत को किसी भी वक्त वापस कर सकता है। अमानतदार यानी अमीन अमानत की हिफाजत या उसकी बका के लिए जो रकम खर्च करेगा वह अमानत दहिंदा को बरदाश्त करनी होगी। मसलन जानवर अमानत में रखा गया तो जानवर के चारा वगैरह का खर्चा और अगर मकान अमानत में रखा गया तो उसकी बिजली पानी वगैरह के खर्च और इसी तरह अगर मकान की हिफाजत की गरज से कुछ काम करवाया गया तो उसके खर्च अमानत दहिंदा को बरदाश्त करने होंगे।

अमानतदार यानी अमीन के लिए जायज है कि वह अमानत की हिफाजत के लिए अपनी उजरत की शर्त लगाए। अगर उजरत तय हुई है तो अमानत दहिंदा को उजरत अदा करनी होगी। हां अगर उजरत तय नहीं हुई लेकिन अमानत की हिफाजत के लिए अमीन को अपनी जमीन का काबिले जिक्र हिस्सा इस्तेमाल करना पड़ रहा है तो उलेमा की राय है कि वह उसका किराया ले सकता है। लेकिन अमानत रखने में अस्ल अपने भाई या पड़ोसी या दोस्त की खैरख्वाही और भलाई मतलूब होती है। लिहाजा शुरू ही में यह मामला तय हो जाए तो ज्यादा बेहतर है ताकि बाद में किसी तरह का कोई इख्तिलाफ न हो। उजरत लेने की सूरत में भी उलेमा की राय है कि बतौर अमानत रखा हुआ माल या सामान अगर अमीन की ख्यानत के बगैर बर्बाद हो गया या उसमें कुछ नुक्सान हो गया तो अमानतदार यानी अमीन पर किसी तरह का कोई मवाखजा नहीं होगा।

अमीन को चाहिए कि वह अमानत से कोई फायदा न उठाए। हां अगर अमीन ने अमानत दहिंदा से अमानत में रखी हुई चीज से फायदा उठाने की इजाजत ले ली है तो फिर कोई हर्ज नहीं है। अगर अमीन के बेजा इस्तेमाल की वजह से अमानत में नुक्सान हुआ है तो अमीन उसका जिम्मेदार होगा।

कुरआन व हदीस की रौशनी में अब तक पूरी उम्मते मुस्लेमा का इत्तेफाक है कि अमानत में रखा हुआ माल या सामान अमानतदार यानी अमीन के पास बतौर अमानत होगा। इसलिए अगर माल या सामान अमानतदार के जुल्म व ज्यादती या कोताही के बगैर बर्बाद हो गया या उसमें कुछ नुक्सान आ गया तो अमानतदार यानी अमीन पर किसी तरह का कोई मवाखजा नहीं होगा।

नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया- अगर किसी शख्स के पास अमानत रखी गई तो वह उसपर लाजिम नहीं होगी यानी अगर अमीन के जुल्म व ज्यादती या कोताही के बगैर वह अमानत बर्बाद हो गई या उसमें कुछ नुक्सान हो गया तो अमीन यानी अमानतदार पर कोई तावान नहीं होगा। (इब्ने माजा) इसी तरह हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया कि अगर अमानत बर्बाद हो जाए या उसमें नुक्सान हो जाए और अमानतदार यानी अमीन ने कोई ख्यानत भी नहीं की है तो अमीन पर उसका कोई तावान नहीं है। (इब्ने माजा, बेहकी) इसी तरह नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया- अमानतदार पर अमानत के तल्फ या उसमें नुक्सान होने पर कोई तावान नहीं है। (बेहकी) हजरत अबू बक्र सिद्दीक (रजि0), हजरत उमर फारूक, हजरत अली मुरतजा, हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद और हजरत जाबिर (रजि0) से भी यही मंकूल है कि अमानत अमीन के हाथों में बतौर अमानत हुआ करती है।

यानी अगर वह अमीन के जुल्म व ज्यादती या कोताही के बगैर बर्बाद हो जाए या उसमें नुक्सान हो जाए तो अमीन पर उसका कोई तावान नहीं होगा। अक्ल भी यही कहती है कि जिसके पास अमानत रखी गई है और उसने अमानत अपने पास रखी है तो नुक्सान की सूरत में अमीन क्यों जिम्मेदार बनेगा। अगर अमीन को जिम्मेदार बना दिया गया तो कोई भी अमानत रखने के लिए तैयार नहीं होगा। फिर सारे लोग इस खैर ख्वाही के अमल से महरूम हो जाएंगे।

कुरआन व हदीस की रौशनी में मशहूर व मारूफ चारों इमाम (इमाम अबू हनीफा, इमाम मालिक, इमाम शाफई
और इमाम अहमद बिन हम्बल) और दीगर मोहद्दिसीन व उलेमा की भी यही राय है। अगर अमानत दहिंदा यानी अमानत गुजार यह दावा करे कि अमीन के बेजा इस्तेमाल की वजह से अमानत बर्बाद हुई है तो उलेमा की राय है कि अमीन से कसम ली जाए कि उसने अमानत में कोई ज्यादती या कोताही नहीं की है और अमानतदार यानी अमीन के कसम खाने पर उसके हक में फैसला कर दिया जाएगा। इसलिए कि वह अमीन है अल्लाह तआला ने वदीआ को अमानत से ताबीर किया है लिहाजा अस्ल में उसको जिम्मेदारी से बरी ही करार दिया जाएगा भले ही कई सबूत उसके कजब पर वाजेह तौर से दलालत करें।

अल्लाह तआला के हुक्म से नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ऐसा हुक्म फरमाया है जिसमंे समाज की खैरख्वाही है क्योंकि अमानतदार यानी अमीन लोगों की खिदमत के लिए अमानत को अपने पास रखता है। अगर अमानतदार यानी अमीन को जामिन करार दिया जाए तो लोग अमानत रखने से ही बचेंगे जिसमेें आम लोगों का नुक्सान है और यह उमूमी मस्लेहतों के खिलाफ भी है।

तमाम फुकहा का इत्तेफाक है कि अमानत में रखी हुई चीज के मुनाफे अमानत दहिंदा को ही मिलेगे। मसलन जानवर अमानत में रखा था बच्चा की विलादत हो गई इसी तरह अमानत में रखे हुए बाग के फल और जमीन अमानत में रखी थी उसकी कीमत में बहुत ज्यादा इजाफा हो गया वगैरह-वगैरह।

अमानत दहिंदा यानी अमानत गुजार और अमानतदार यानी अमीन मंें चंद शर्तो का पाया जाना जरूरी है जिसमें बुनियादी दो शर्तें यह हैं कि दोनो आकिल और बालिग या बाशऊर हों। अगर अमानतदार यानी अमीन का इंतकाल हो गया तो उसके वारिसों पर लाजिम है कि अमानत अमानत दहिंदा को वापस करें।

अमीन के किसी लम्बे सफर पर जाने की सूरत में अमीन को चाहिए कि वह अमानत अमानत दहिंदा को वापस करके जाए। अगर उस वक्त अमानत गुजार न मिले तो किसी शख्स को मुकल्लिफ करदे कि वह अमानत को अमानत गुजार के हवाले करे क्योंकि नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जब मक्का से मदीना हिजरत करने का इरादा फरमाया तो आप ने हजरत अली (रजि0) को उन तमाम अमानतों को उनके मालिकैन तक वापस करने की जिम्मेदारी दी थी।

हां अगर अमानत गुजार अमीन के सफर के बावजूद अमानत को उसकी अमानत में रखने पर राजी है तो कोई हरज नहीं।

अमानत गुजार को चाहिए अमानत की वापसी पर अमानतदार यानी अमीन का शुक्रिया अदा करे क्योंकि उसने अमले खैर अंजाम दिया है। नबी करीम (सल0) ने इरशाद फरमाया कि जो इंसानों का शुक्रिया अदा नहीं करता वह अल्लाह का क्या शुक्र अदा करेगा। (तिरमिजी)

अगर अमानत गुजार अमीन को कोई हदिया भी पेश कर दे तो बेहतर है। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया- अगर तुम्हारे साथ कोई अच्छा बरताव करे तो तुम उसको कुछ अपनी तरफ से पेश कर दो। अगर तुम्हारे पास हदिया देने के लिए कुछ भी नहीं है तो तुम उसके लिए खूब दुआएं करो। (अबू दाऊद)

दूसरी तरफ अमानतदार को उसपर कोई एहसान नहीं जताना चाहिए बल्कि उसने नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के नक्शे कदम पर चलकर यह अमले खैर किया है। लिहाजा अल्लाह तआला से उस अमले खैर के कुबूल होने और उसपर अज्र व सावब की दुआ करनी चाहिए।

जिस तरह अमानत में रखी चीच की हिफाजत करना अमीन की जिम्मेदारी है उसी तरह यह दुनियावी जिंदगी, माल व औलाद हमारे पास अल्लाह तआला की अमानतें हैं लिहाजा हमें हमेशा इन अजीम अमानतों की सही अदाएगी की फिक्र करनी चाहिए। अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है- हमने यह अमानत आसमानों और जमीन और पहाड़ों पर पेश की तो उन्होंने उसके उठाने से इंकार किया और उससे डर गए और इंसान ने इसका बोझ उठा लिया। अपनी उखरवी जिंदगी की तैयारी के साथ अपने बच्चों और मातहतों के मरने के बाद की जिंदगी की भी तैयारी करना हमारी जिम्मेदारी है जिस से मुताल्लिक कयामत के दिन हम से पूछा जाएगा।

अगर हम मुलाजिमत कर रहे हैं तो काम के अवकात हमारे लिए बतौर अमानत हैं लोगों से जो हम अहद व पैमान करते हैं वह भी हमारे पास बतौर अमानत हैं अगर किसी शख्स ने अपने राज की बातें हमें बताईं हैं तो वह भी हमारे पास बतौर अमानत हैं उनका पूरा करना हमारी शरई व अखलाकी जिम्मेदारी है। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया कि जब अमानतों में ख्यानत होने लगे तो बस कयामत का इंतजार करो। (सही बुखारी) इसी तरह नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया कि मुनाफिक की तीन अलामतें हैं- झूट बोलना, वादा खिलाफी करना और अमानत में ख्यानत करना। (सही बुखारी, सही मुस्लिम)

नोटः- अगर आपने कर्जा लिया है तो वह आप को वापस करना ही होगा चाहे कर्ज में ली गई रकम आप के इस्तेमाल के बगैर बर्बाद हुई है। इसी तरह अगर आपने कोई चीज इस्तेमाल करने के लिए मांगी है और वह किसी भी तरह बर्बाद हो गई तो उसका तावान देना होगा। अल्लाह तआला हम सबको अमानतों की हिफाजत करने वाला बनाए और हमेंअमानत गुजार तक सही सलामत अमानत लौटाने वाला बनाए- आमीन।

बशुक्रिया: जदीद मरकज़