अमीर या ग़रीब हर एक की ज़रूरीयात को पूरा करना अक़वाम-ए-मुत्तहिदा की ज़िम्मेदारी

आलमी हुक्मरानी में पाई जाने वाली ख़ामीयों को दूर करने पर ज़ोर , सलामती कौंसल में तौसीअ और इस्लाहात वक़्त का तक़ाज़ा, वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह का ख़िताब
ज़हीरउद्दीन अली ख़ां
अक़वाम-ए-मुत्तहिदा 24 सितंबर । वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने अक़वाम-ए-मुत्तहिदा पर ज़ोर दिया है कि आलमी सतह पर अमीर या ग़रीब, छोटा या बड़ा की ज़रूरीयात को पूरा करना इस आलमी इदारा की ज़िम्मेदारी है। हमें एक ऐसा मज़बूत और मोस्सर अक़वाम-ए-मुत्तहिदा की ज़रूरत है जो तमाम का ख़्याल रख सके। अक़वाम-ए-मुत्तहिदा और इस के उसूली इदारे जनरल असैंबली और सलामती कौंसल का अहया और इस में इस्लाहात लाई जानी चाहीए। सलामती कौंसल के 66 वें सैशन से ख़िताब करते हुए वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने सैक्रेटरी जनरल बानकीमोन को उन के दुबारा इंतिख़ाब पर मुबारकबाद दी और हिंदूस्तान की जानिब से मुकम्मल तआवुन का तीक़न दिया। उन्हों ने नए मलिक जुनूबी सूडान के आलम-ए-वुजूद में आने पर भी मुबारकबाद देते हुए कहाकि हम अक़वाम-ए-मुत्तहिदा जनरल असैंबली के इस सैशन में एक ऐसे वक़्त मिल बैठे हैं जब आलमी सतह पर ग़ैर यक़ीनी कैफ़ीयत के इलावा दीगर तबदीलीयां रौनुमा होरही हैं। चंद साल पहले तक हम ने आलमगीरीयत और आलमी इन्हिसारी के फ़वाइद से इस्तिफ़ादा का अह्द किया था लेकिन आज दुनिया के मुख़्तलिफ़ हिस्सों में मआशी, समाजी और सयासी वाक़ियात में उथल पुथल के इलावा मनफ़ी रुजहानात पैदा होगए हैं। इस से बेशतर ममालिक और बर्र-ए-आज़मों पर मनफ़ी असरात मुरत्तिब हुए हैं। वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने कहाकि आलमी मईशत मुश्किलात से दो-चार है। 2008 ए- से मआशी और मालीयाती बोहरान के बाद इस में बेहतरी की उमीद की जा रही है लेकिन फ़िलहाल ख़ातिरख़वाह तबदीली नज़र नहीं आरही है। कई मवाक़े पर ये बोहरान मज़ीद गहिरा होता जा रहा है। आलमी मईशत के मज़बूत ममालिक जैसे अमरीका, यूरोप और जापान जो आलमी मईशत और मालीयाती इस्तिहकाम के अहम वसाइल भी हैं, मुसलसल मआशी कसादबाज़ारी का सवाल कररहे हैं। इन ममालिक में इन्हितात पज़ीरी से आलमी माली और सरमाया मार्किटों में एतिमाद को ठेस पहूंच रही है। इन तबदीलीयों की वजह से तरक़्क़ी पज़ीर ममालिक पर भी मनफ़ी असरात मुरत्तिब होरहे हैं जिस से महंगाई की शक्ल में इज़ाफ़ी बोझ बढ़ता जा रहा है। सरमाया की दस्तयाबी और आलमी तलब में इन्हितात की वजह से आज़ाद तिजारत की राह में रुकावटें बढ़ती जा रही हैं। इस से आलमी मालीयाती और माली निज़ाम को ख़तरात लाहक़ होगए हैं। मग़रिबी एशीया, ख़लीजी ममालिक और शुमाली अफ़्रीक़ा में रौनुमा होने वाले ग़ैरमामूली समाजी-ओ-सयासी उथल पुथल का हवाला देते हुए वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने कहाकि इन ममालिक के अवाम अपने मुस्तक़बिल को हतमी शक्ल देने के हक़ का मुतालिबा कररहे हैं। तरक़्क़ी पज़ीर ममालिक में तवानाई और ग़िज़ाई क़ीमतों में एक बार फिर आसमान को छू रही हैं। इस से अदम इस्तिहकाम की कैफ़ीयत पैदा होरही है। मशरिक़ वुसता में क़ियाम अमन के लिए उन्हों ने मसला फ़लस्तीन की आजलाना यकसूई पर ज़ोर दिया। इस मसला की बरक़रारी की वजह से ख़ित्ता में अदम इस्तिहकाम और तशद्दुद पाया जाता है। ख़ुदमुख़तारी के लिए फ़लस्तीनी अवाम की जद्द-ओ-जहद को हिंदूस्तान की भरपूर हिमायत का इआदा करते हुए मनमोहन सिंह ने कहाकि फ़लस्तीन को एक आज़ाद ममलकत का दर्जा देने और मशरिक़ी यरूशलम को इस का दार-उल-हकूमत तस्लीम करना वक़्त का तक़ाज़ा है। इसराईल के साथ अमन से रहते हुए फ़लस्तीनीयों की सरहदों को भी क़बूल किया जाना चाहीए। उन्हों ने अक़वाम-ए-मुत्तहिदा में फ़लस्तीन को मुकम्मल रुकनीयत देने की कोशिशों का ख़ौरमक़दम किया। दहश्तगर्दी के बारे में उन्हों ने कहाकि आलमी सतह पर दहश्तगर्दी मासूम और बेगुनाह इंसानों के लिए ख़तरा बनी हुई है। वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने लीबिया , शाम और दीगर अरब ममालिक में इक़तिदार की तबदीली के लिए मग़रिबी ममालिक को बराह-ए-रास्त तन्क़ीद का शनाना बनाया और कहा कि किसी मुल्क में जमहूरी निज़ाम के ना होने या फिर अमन-ओ-क़ानून के मसला को बहाना बनाकर उस की ख़ुदमुख़तारी-ओ-यकजहती की ख़िलाफ़वरज़ी नहीं की जा सकती। जनरल असैंबली से ख़िताब करते हुए मनमोहन सिंह ने हिंदूस्तान, ब्राज़ील, जर्मनी और जापान के बिशमोल G-4 ममालिक के इजलास के बाद अक़वाम-ए-मुत्तहिदा सलामती कौंसल में आजलाना इस्लाहात केलिए ज़ोर दिया गया।