अयोध्या मामला- सुप्रीम कोर्ट से बोली यूपी सरकार- मुस्लिम संगठन देरी करवा रहे

उत्तर प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कुछ मुस्लिम संगठन साल 1994 के एक फैसले की इस टिप्पणी पर पुनर्विचार की मांग करके ”लंबे वक्त से विचाराधीन अयोध्या मंदिर – मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई में देरी का प्रयास कर रहे हैं कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न भाग नहीं है. अयोध्या मामले के मूल याचिकाकर्ताओं में से एक एम सिद्दीकी ने 1994 के एम इस्माइल फारूकी मामले के इन निष्कर्षों पर आपत्ति जताई थी कि मस्जिद इस्लाम के अनुयायियों द्वारा अदा की जाने वाली नमाज का अभिन्न भाग नहीं है. सिद्दीकी का निधन हो चुका है और उनके कानूनी उत्तराधिकारी द्वारा उनका प्रतिनिधित्व किया जा रहा है.

मुस्लिम संगठनों ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर की विशेष पीठ के सामने दलील दी कि फैसले में शीर्ष अदालत की व्यापक टिप्पणी पर पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा पुनर्विचार करने की जरूरत है, क्योंकि इसका बाबरी मस्जिद – राम मंदिर भूमि विवाद मामले पर प्रभाव पड़ा है और आगे भी पड़ेगा.

एक सदी से अंतिम निर्णय का इंतजार
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस विवाद को करीब एक सदी से अंतिम निर्णय का इंतजार है. उन्होंने कहा कि इस टिप्पणी का मुद्दा 1994 से न तो किसी याचिकाकर्ता ने उठाया और ना ही इसे हाईकोर्ट द्वारा 2010 में फैसला सुनाए जाने के बाद दायर वर्तमान अपीलों में उठाया गया. मेहता ने कहा कि इस मुद्दे को उठाने में असामान्य देरी का कारण कार्यवाही में देरी की मंशा है. राज्य सरकार ने कहा कि इस्माइल फारूकी मामले में इस अदालत द्वारा तय किया गया कानून ”सही कानून है जिसे न तो ऊपरी अदालत के पास भेजकर और ना ही किसी अन्य तरह” से छेड़ा जाना चाहिए.

सिद्दीकी के वकील धवन ने रखी ये दलील
इससे पहले सिद्दीकी के कानूनी वारिस की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि 1994 में शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर कोई जांच किए बिना या हदीस पर विचार किए बिना कहा था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न भाग नहीं है. उन्होंने कहा, ”इस्लाम कहता है कि मस्जिदें धार्मिक विश्वास का अभिन्न भाग हैं. हदीस यह कहता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह इस्लाम का अभिन्न भाग नहीं है.”
14 अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट कर रही विचार
शीर्ष अदालत की विशेष पीठ चार दीवानी वादों पर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर विचार कर रही है. एक दिन पहले गुरुवार को सीजेआई दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नजीर की विशेष पीठ ने 17 मई को हिन्दू संगठनों की तरफ से पेश दलीलें सुनी थीं, जिनमें उन्होंने मुस्लिमों के इस अनुरोध का विरोध किया था कि मस्जिद को इस्लाम के अनुयायियों द्वारा अदा की जाने वाली नमाज का आंतरिक भाग नहीं मानने वाले 1994 के फैसले को बड़ी पीठ के पास भेजा जाए.

1994 में आए फैसले के कुछ निष्कर्षों पर आपत्ति जताई थी
अयोध्या मामले में मूल याचिकाकर्ताओं में शामिल और निधन के बाद कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा प्रतिनिधित्व पाने वाले एम सिद्दीकी ने एम इस्माइल फारूकी के मामले में 1994 में आए फैसले के कुछ निष्कर्षों पर आपत्ति जताई थी. उन्होंने पीठ से कहा था कि अयोध्या की जमीन से जुड़े भूमि अधिग्रहण मामले में की गई टिप्पणियों का, मालिकाना हक विवाद के निष्कर्ष पर प्रभाव पड़ा है. हालांकि, हिंदूसंगठनों का कहना है कि इस मामले को सुलझाया जा चुका है और इसे फिर से नहीं खोला जा सकता. (इनपुट-एजेंसी)