अरब: अब्बासी दौर के सबसे प्रसिद्ध संगीतकार ‘अलमोसली’ के जनाज़े की नमाज़ खलीफ़ा मामून रशीद ने पढ़ाई थी

रियाद: अरब संगीतकार इब्राहीम अलमोसली को अब्बासी युग के सबसे प्रसिद्ध गायकों में जाना जाता है। उसका असली नाम इब्राहिम बिन मैमून था। वह इराक के शहर कूफ़ा में 742 में पैदा हुए और 804 में बगदाद में उनकी म्रृत्यु हुई।

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मोसली की उम्र तीन साल थी तो पिता की मौत हो गई। वह कूफ़ा शहर में परवान चढ़ा और बाद में फरार हो कर मोसुल शहर आ गए। इसलिए उसके नाम के साथ अलमोसली जुड़ गया।

प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद ही मोसली की दिलचसपी और ध्यान का रुख संगीत की ओर बढ़ गया। घर वालों की ओर इस प्रवृत्ति को अपनाने से रोके जाने के बावजूद वह खुद को अपने शौक की खातिर कुर्बान कर दिया और गायकी को लेकर अपना सपना पूरा करने के लिये मोसुल चला गया।मोसुल ने गयकारी और संगीत को सीखा और थोड़े समय में ही मोसुल शहर में सभी पारंपरिक गायकों को पीछे छोड़ दिया।

अपनी क्षमताओं को चार चांद लगाने के लिए मोसुल ने कई देशों और शहरों का यात्रा किया, और अरबी से लेकर फारसी संगीत में कमाल हासिल कर लिया। उसने संगीत कम्पोजिंग कला में प्रमुख स्थान हासिल कर लिया और अपने जीवन में कम से कम 900 धुन तैयार कीं।यात्रा पूरा करने के बाद वह अलरी शहर में बसा, जो अब्बासी दौर में काफी प्रगति पा चुका था। वहाँ उसकी परिचित प्रसिद्ध संगीतकारों और गायकों से हुई जिनके अनुभव और क्षमता ने इस कला को अधिक निखार दिया।

मोसली की शोहरत बुलंदियों पर पहुंची तो उसकी आवाज़ बगदाद में खलीफा महदी तक पहुँच गई। वह पहला खलीफा था जिसने मोसली से संपर्क किया। इससे पहले फलीह बिन अल औरा और सयात नामक गायक खलीफा महदी के दरबार में अपने कला का प्रदर्शन कर चुके थे। इसके अलावा अब्बासी खलीफा हारून रशीद ने भी मोसली को सुना और जब मोसली की मृत्यु हुई तो खलीफा मामून बिन रशीद ने उसकी जनाज़े की नमाज़ पढ़ाई।

इस बात से साबित होता है कि शासकों के बीच मोसली को क्या स्थान प्राप्त था। मोसली की तैयार की गई धुनों को उन्नत में गिना गया। वह संगीत के पारंपरिक विचारधारा का हमनवा था। इब्राहीम मोसली का पुत्र इसहाक अपने पिता के नक्शेकदम पर चला। हालांकि उसने संगीत के अलावा अन्य अध्ययन जैसे इतिहास और ज्ञान वचन में भी कमाल हासिल किया।