अरब मुल्कों से भारत की ईरान के साथ दोस्ती में आड़े नहीं आती, ये है नए दौर का भरोसा

नयी दिल्ली : भारत ने ईरान के साथ दोस्ती कर दुनिया को जता दिया कि उसकी विदेश नीति को अमेरिका के नजरों से न देखा जाए। भारत ने ईरान के साथ दोस्ती कर ये जाता दिया है की हम किसी दबाव में नहीं बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों से जुड़े व्यावहारिक पहलुओं को ध्यान में रखकर फैसले करते हैं। गौरतबल है की ईरान की पहचान अमेरिका-इजरायल के जानी दुश्मन देश की है, लेकिन इन दोनों से भारत की गहरी दोस्ती के बावजूद ईरान भी हमारे लिए कम महत्वपूर्ण नहीं है। दूसरी तरफ ईरान का अरब मुल्कों से अच्छा संबंध नहीं है, लेकिन अरब मुल्कों से भारत की ईरान के साथ दोस्ती में आड़े नहीं आती। ईरान भी इस बात को बखूबी समझता है। सच्चाई यह है कि आज दोनों देशों को एक-दूसरे की जरूरत है। सस्ते तेल और गैस के लिए भारत का पश्चिम एशिया में पांव जमाना जरूरी है।

ईरान और भारत एनर्जी सेक्टर में मिलकर बड़ी कामयाबी हासिल कर सकते हैं। भारत यात्रा पर आए ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तेल, गैस और बैंकिंग क्षेत्र में संबंधों को व्यापक बनाने को लेकर सार्थक बातचीत हुई। दोनों पक्षों ने नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें भारत को डेढ़ साल के लिए चाबहार बंदरगाह का एक हिस्सा लीज़ पर दिए जाने का समझौता भी शामिल है। दोनों नेताओं ने शांतिपूर्ण, स्थिर, संपन्न तथा बहुलतावादी अफगानिस्तान की जरूरत पर जोर दिया। चाबहार बंदरगाह को लेकर हुआ समझौता काफी अहम है। इसके जरिए तैयार हो रहा माल-ढुलाई का गलियारा इस क्षेत्र की भौगोलिक-आर्थिक-सामरिक स्थिति को बदल कर रख देगा। इससे भारत को मध्य एशियाई देशों तक पहुंच बनाने में काफी मदद मिलेगी।

पिछले साल, नई दिल्ली ने चबहार बंदरगाह के जरिए अफगानिस्तान को गेहूं की सहायता के लिए शिपमेंट भेजा था, इस्लामाबाद नई दिल्ली को अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए अपने जमीनी मार्ग का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देता है। ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ़) के वरिष्ठ विश्लेषक मनोज जोशी ने कहा, “चबाहर अफगानिस्तान और मध्य एशिया को भारत से कनेक्टिविटी प्रदान करता है। इससे भारत को पाकिस्तान के नाकाबंदी को बाईपास करने और मध्य एशिया और अफगानिस्तान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह भारत के संबंध में पाकिस्तान के संतुलन को बनाए रखने में भी मदद करता है।

पाकिस्तान द्वारा भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक जमीनी पहुंच ना बनाने देने के कारण नई दिल्ली के लिए ईरान का रास्ता ही बचता था, हालांकि इस दिशा में आगे बढ़ने में काफी वक्त लग गया। हालांकि इस पर सहमति 2003 में ही बन चुकी थी। ईरान के साथ हुए अन्य समझौतों में दोहरे कराधान से बचाव तथा वित्तीय चोरी रोकने का समझौता भी शामिल है। दोनों पक्षों ने राजनयिक पासपोर्ट धारकों को वीजा अनिवार्यता से छूट देने तथा व्यापार बेहतरी के लिए विशेषज्ञ समूह बनाने का भी समझौता किया है। भारत ने प्रतिबद्धता जताई है कि वह चाबहार बंदरगाह से जाहिदान तक रेलवे लाइन के निर्माण में भी तेजी लाएगा। ईरान का यह शहर अफगानिस्तान से लगने वाली उसकी सीमा पर स्थित है। उम्मीद करें कि दोनों प्राचीन पड़ोसियों का रिश्ता समय बीतने के साथ और भी मजबूत होता जाएगा।