अली मंज़िल में जमात सुलेमानिया के हिसामुद्दारैन ट्रस्ट का मर्कज़ी दफ़्तर

रोज़नामा सियासत ने अपनी रिपोर्ट्स के ज़रीए शहर में कई कीमती मौक़ूफ़ा जायदादों को लैंडग्रेबर्स और मुफ़ादात हासिला की नज़रे बद से बचाने में ग़ैर मामूली कामयाबियां हासिल कीं। ऐसी ही एक कीमती मौक़ूफ़ा जायदाद फ़तह मैदान और रियासती वक़्फ़ बोर्ड के बिलकुल करीब वाक़े है। जिसे अली मंज़िल कहा जाता है। 1815 मुरब्बा गज़ अराज़ी पर मुहीत इस जायदाद पर दलालों, सनअतकारों, लैंडग्रेबर्स हर कोई अपनी नज़रें जमाए हुए थे।

खासतौर पर मौक़ूफ़ा जायदादों की दलाली में अपने हाथ साफ़ करने वालों ने इस कीमती जायदाद को हड़पने की पूरी तैयारीयां करली थीं ताहम 5, 6, 7 और 9 जुलाई को सियासत में इस 70 साला क़दीम इमारत की इमकानी गैर कानूनी मुआमलतों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट्स की सिलसिले वार इशाअत के नतीजा में ना सिर्फ़ लैंडग्रेबर्स बल्कि लैंड ग्रेबरों और दलालों के ज़रीए ये इमारत खरीदने वालों के अरमानों पर पानी फिर गया।

उम्मीदें ख़ाक में मिल गईं। इसी तरह ख़ुद हिसामुद्दारैन ट्रस्ट के ओहदेदार भी ख़ाबे ग़फ़लत से बेदार हो गए। सियासत में स्पेशल ऑफीसर वक़्फ़ बोर्ड जनाब शेख मुहम्मद इक़बाल आई पी एस के हवाले से एक ख़बर शाय हुई थी जिस में उन्हों ने इदारा अनीसुल ग़ुर्बा यतीम ख़ाना को अली मंज़िल में मुंतक़िल करने का इशारा दिया था।

ज़राए से इस बात का भी पता चला था कि वक़्फ़ बोर्ड अली मंज़िल की तज़ईन नव करते हुए उसे इस्तेमाल के काबिल बनाने पर भी ग़ौर कर रहा है। चुनांचे इस रिपोर्ट की इशाअत के साथ ही जमात सुलेमानिया और इस के हिसामुद्दारैन ट्रस्ट के ज़िम्मेदारों में हलचल मच गई और ऐसा लगता है कि बहालते मजबूरी उन लोगों ने अली मंज़िल में सुलेमानिया जमात का दफ़्तर मुंतक़िल करने का मंसूबा बनाया।

साथ ही एक कुतुब ख़ाना भी क़ायम होगा। इस बात का भी पता चला है कि अली मंज़िल में किसी ज़माने में महकमा आबरसानी का दफ़्तर हुआ करता था। और ट्रस्ट को 60 हज़ार रुपये इलेक्ट्रीसिटी बिल और 11 हज़ार रुपये पानी का बिल अदा करना पड़ा। मैनेजर ने बताया कि अली मंज़िल के लिए 7 नए मीटर्स हासिल किए गए और चंद रोज़ में इस इमारत की अज़मते रफ़्ता बहाल हो जाएगी।