असम की यह मस्जिद, जहां क़ुरआन के अलावा हिन्दू और इसाई धर्म से संबंधित 300 किताबों का है जखीरा!

गंगा-जमुनी तहजीब वाले हिंदुस्तान में आज हिंदू-मुसलमान के नाम पर नफरत फैलाने की साजिश रची जा रही है। यही नहींं सांप्रदायिक हिंसा की खबरें अक्सर सामनेे आती हैं। ऐसे माहौल के बीच असम की एक मस्जिद की कहानी असल हिंदुस्तान की तस्वीर पेश कर रही है, जहां हिंदू, मुसलमान, सिख और ईसाई सब बराबर हैं। जहां नफरत के लिए कोई जगह नहीं है।

ये देश की एक ऐसी मस्जिद है, जहां सांप्रदायिक सौहार्द की अद्भुत मिसाल देखने को मिली है। बात हो रही है असम के काचर जिले में स्थित जामा मस्जिद की, जिसके दूसरे फ्लोर पर करीब एक दर्जन अलमारियां हैं। इसमें हिंदू, इस्लाम और ईसाई धर्म से जुड़ी 300 किताबें हैं। ये सभी बांग्ला भाषा में हैं।

मस्जिद के अंदर पढ़ने के लिए कमरा और लाइब्रेरी बहुत ही दुर्लभ (न के बराबर) है, लेकिन यहां दोनों ही चीजें उपलब्ध हैं। मस्जिद के सचिव सबीर अहमद चौधरी कहते हैं कि इस सुविधा पर हमें गर्व है। वे बताते हैं कि इसका उद्देश्य लोगों को अन्य धर्म के बारे में शिक्षित करना है।

इस मस्जिद की सबसे खास बात यह है कि यहां की लाइब्रेरी में कुरान, इस्लाम धर्म से जुड़ी किताबों के आलावा ईसाई दर्शन, वेद, उपनिषद, रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद का जीवन परिचय समेत रविंद्रनाथ टैगोर व सरत चंद्र चट्टोपाध्‍याय के उपन्‍यास भी मौजूद हैं। चौधरी कहते हैं कि 1948 में इस मस्जिद के निर्माण के समय से ही मैं यहां लाइब्रेरी बनाना चाहता था।

बता दें कि चौधरी आजादी के समय मानवतावादी चिंतक एमएन रॉय के विचारों से प्रभावित थे। उनका मानना है कि भारत एक प्रचीन देश है, लेकिन यहां के अलग-अलग धर्म के लोग एक-दूसरे के बारे में नहीं जानते हैं।

यहीं कारण है कि चौधरी लोगों की मदद से मस्जिद के अंदर पढ़ने के लिए एक कमरा बनाना चाहते थे, ताकि लोग दूसरे धर्म के बारे में भी जान सकें। चौधरी ने कहा, ‘हम बेहद खुश होंगे अगर मस्जिद की ये लाइब्रेरी इस दिशा में थोड़ी भी भूमिका निभा सके।’

उन्होंने बताया कि स्थानीय लोगों की मदद से साल 2012 में मस्जिद के अंदर लाइब्रेरी और पढ़ने के लिए कमरा बनाया गया था। बता दें कि चौधरी सोनाई स्थित एमसीडी कॉलेज में अंग्रेजी के विभागाध्‍यक्ष हैं। चौधरी ने बताया कि इस लाइब्रेरी में प्रत्येक आयु वर्ग और धर्म के लोग आते हैं। उन्‍होंने यह भी बताया कि बराक घाटी में किसी भी मस्जिद के अंदर लाइब्रेरी नहीं है।