“अदम-बर्दाश्त” माहौल के खिलाफ़ मराठी सहाफ़ी ने भी लौटाया अवार्ड

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प्रमोद मुन्घते ने आज कहा कि उन्होंने महाराष्ट्र की सरकार का अवार्ड और उसकी इनामी रक़म 10000 रूपये लौटा दी है, मुन्घते आर एस टी एम नागपुर यूनिवर्सिटी में मराठी के प्रोफेसर हैं. उन्होंने ये अवार्ड मुल्क में बढ़ रहे “अदम-बर्दाश्त ” के माहौल के खिलाफ़ लौटाया .
प्रोफेसर मुन्घते से पहले भी कई दुसरे सहाफ़ी  भी हुकूमत के दिए अवार्ड्स को लौटा चुके हैं, इन लोगों में कुछ  महाराष्ट्र के भी हैं, अवार्ड्स लौटाने का सिलसिला कन्नड़ ज़बान के मशहूर लेखक एम एम कलबुर्गी के क़त्ल और दादरी की अफसोसनाक घटना के बाद शुरू हुआ है .
मुन्घते जो कि यूनिवर्सिटी में मराठी डिपार्टमेंट के सदर हैं,उन्हें ये अवार्ड 1994 की उनकी किताब “1857:ट्रुथ और फिक्शन” के लिए दिया गया था
उन्हें विदर्भ के नाटक “झड़ी-पट्टी” के लिए भी जाना जाता है
वज़ीर ए आज़म से मुखातिब अपने एक ख़त में उन्होंने कहा कि वो मुल्क और सूबे में बढ़ रहे अदम-बर्दाश्त के माहौल को लेके दुखी थे
“इस अवार्ड को लौटाने के साथ मै सूबे की सरकार की मज़म्मत करता हूँ जो यहाँ भाईचारे और मोहब्बत माहौल को बचाने में नाकाम रही…हिन्दुतान की एकता ही हमारी ताक़त है” उन्होंने कहा