आई के गुजराल का इंतिक़ाल, आज आख़िरी रसूमात

साबिक़ वज़ीर-ए-आज़म इंद्रकुमार गुजराल का मुख़्तसर अलालत‌ के बाद आज यहां इंतिक़ाल होगया । उन की उम्र 92 साल थी जिन्होंने दोपहर 3.27 पर गुड़गाव‌ के एक ख़ानगी हॉस्पिटल में आख़िरी सांस ली ।

उनके तमाम आजाए रईसा (जिस्म के अहम् हिस्से) नाकारा हो गए थे । गुजराल को 19 नवंबर कोशिश (फेफड़ों) के आरिज़े के सबब हॉस्पिटल में शरीक किया गया था । साबिक़ वज़ीर-ए-आज़म मस्नूई आला तनफ़्फ़ुस पर रखे गए थे और कुछ अरसे से उन की सेहत नासाज़ थी ।

गुर्दे नाकारा हो जाने के सबब वो एक साल से डाईलासीस पर थे और हालिया अरसे में उन्हें सीने का संगीन आरिज़ा भी लाहक़ होगया था। गुजराल के जसद-ए-ख़ाकी को दिल्ली में सपुर्द आतिश किया जाएगा ।

गुजराल जो तकसीम-ए-हिंद के बाद पाकिस्तान से हिंदुस्तान मुंतक़िल हुए थे वो कई आला ओहदों और विज़ारतों पर फ़ाइज़ रहे । नसीब यावरी की बदौलत उन्होंने विज़ारत‍ ए‍ उज़मा तक रसाई हासिल की थी ।

गुजराल ने 1950-ए-में एन डी एम सी के नायब सदर की हैसियत से अपना कैरियर शुरू किया था और बाद मर्कज़ी वज़ीर के ओहदों पर फ़ाइज़ होने तक इस ओहदे पर बरक़रार रहे ।

बाद अज़ां उन्होंने सोवीयत यूनीयन में हिंदुस्तानी सफ़ीर की हैसियत से बेहतरीन ख़िदमात अंजाम दीं । 4 दिसमबर 1919 को जहलुम में मुजाहिद आज़ादी के घराने में पैदा होने वाले गुजराल ने लाहौर के कई बावक़ार कॉलेजस में आला तालीम हासिल की थी ।

अप्रैल 1964 में वो पहली मर्तबा राज्य सभा के रुकन मुंतख़ब हुए । गुजराल इब्तिदा में इंदिरा गांधी के बहुत क़रीब थे और इस ग्रुप का एक अहम हिस्सा समझे जाते थे जिसने 1966 में इंदिरा गांधी को वज़ीर-ए-आज़म की हैसियत से इक़तिदार पर लाया था ।

25 जून 1975 को एमरजेंसी के नफ़ाज़ के वक़्त गुजराल वज़ीर-ए-इत्तलात-ओ-नशरियात के ओहदे पर फ़ाइज़ थे । इस मौके पर सहाफ़त के ख़िलाफ़ सख़्त पाबंदियां आइद की गई थीं जिन्हें बाद अज़ां हटा लिया गया था ।

गुजराल 1992 में लालू प्रसाद की मदद से एक बार फिर राज्य सभा के रुकन मुंतख़ब हुए जब हलक़ा लोक सभा पटना से उन के इंतिख़ाब को कलअदम क़रार दिया गया था ।

गुजराल 1989 में वी पी सिंह की ज़ेर-ए-क़ियादत नेशनल फ्रंट हुकूमत में वज़ीर-ए-ख़ारजा रहे । इस मौके पर उन्होंने कुवैत पर इराक़ क़बज़े से पैदा शूदा बोहरान को कामयाबी से निपटाने की कोशिश की और कुवैत और इराक़ में फंसे हज़ारों हिंदुस्तानियों को मुलक वापिस लाने में मदद की ।

1996 में एचडी देवेगौड़ा की क़ियादत में यूनाईटेड फ्रंट हुकूमत में भी वो दूसरी मर्तबा वज़ीर-ए-ख़ारजा के ओहदे पर फ़ाइज़ हुए । लेकिन देवेगौड़ा हुकूमत की ताईद से कांग्रेस से दसतबरदारी के बाद 1997 में गुजराल वज़ीर-ए-आज़म के ओहदे के लिए मुत्तफ़िक़ा उम्मीदवार की हैसियत से उभरे ।

गुजराल एक बुर्दबार सियासतदां , एक माहिर सिफ़ारत कार होने के अलावा एक हस्सास अदीब और दानिश्वर भी थे जिन का तक़रीबन हर मौज़ू पर काफ़ी वसीअ मुताला था वो हालात हाज़रा पर गहिरी नज़र रखा करते थे।

गुजराल हिंदूस्तान और बर्र सग़ीर की अदबी दुनिया बिलख़सूस उर्दू की सरगर्मीयों के रूह रवां समझे जाते थे । वो कई अदबी इदारों से वाबस्ता थे ।

यहां ये बात काबिल-ए-ज़िकर है कि रोज़नामा सियासत से गुजराल के देरीना और क़रीबी रवाबित रहे हैं वो ना सिर्फ़ रोज़नामा सियासत के लिए अहम मौज़ूआत पर कालम लिखा करते थे बल्के माज़ी में अपने दौर ए हैदराबाद के मौके पर उस वक़्त के एडीटर सियासत जनाब आबिद अली ख़ान साहब मरहूम से उन की रिहायश गाह पहूंच कर मुलाक़ात किया करते थे बाद में जनाब आबिद अली ख़ान साहब के फ़र्ज़ंद-ओ-मौजूदा एडीटर सियासत जनाब ज़ाहिद अली ख़ान साहब से भी गुजराल साहिब ने एसे ही मरासिम-ओ-रवाबित को तादम आख़िर बरक़रार रखा था ।