आज के दौर में ‘मैं और मेरी तन्हाई’ गीत अगर होता, तो कुछ ऐसा होता

साल 1981 में आई डायरेक्टर यश चोपड़ा की फ़िल्म “सिलसिला” के गानों को नाज़रीन ने बहुत पसंद किया था. अमिताभ बच्चन की आवाज़ और मुसन्निफ (writer) जावेद अख्तर साहब के ख़ूबसूरत अल्फाज़ में रची गई एक गज़ल “मैं और मेरी तन्हाई” काफ़ी लोगों की ज़बान पर अकसर सुनी जा सकती थी.

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आज भी शायद आपके वालिदैन इस गज़ल को गुनगुनाते होंगे लेकिन कौसर मुनीर ने इस शायरी/ नज़्म को एक नया रुख दिया है. कुछ नये तजुर्बे और नयेपन के साथ पेश है “मैं और मेरी तन्हाई”.

हालांकि जावेद साहब की नज़्म भी उम्दा थी लेकिन कौसर मुनीर ने ज़िंदगी के अपने नज़रिये को कलमबंद किया है जो आज सच में हकीकत जैसा लगता है.

*************************बशुक्रिया: पलपल इंडिया************************