आतंकवाद, ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं का समाधान शिक्षा के जरिये निकालना होगा: सिसोदिया

“अब समय आ गया है कि सभी शिक्षा मंत्री मिलकर देश को भरोसा दें कि आतंकवाद का समाधान हम शिक्षा के जरिये लेकर आ रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग का समाधान हम शिक्षा के जरिये निकालेंगे।”

दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने सोमवार को विज्ञान भवन में आयोजित केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की 65वीं बैठक के दौरान ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि देश के सभी शिक्षा मंत्री मिलकर देश को भरोसा दिलाएं कि वो गारंटी देते हैं कि अपने विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा देंगे जिससे कोई भी पढ़ा-लिखा व्यक्ति किसी भी सूरत में, किन्ही भी परिस्थितियों में आतंकवाद या हिंसक गतिविधियों को नहीं चुनेगा।

सिसोदिया ने यह भी कहा कि अभी तक हम शिक्षा को गरीबी दूर करने या रोजगार उपलब्ध कराने के एक अस्त्र के रूप में इस्तेमाल करते आये हैं और काफी हद तक सफल भी हुए हैं, लेकिन कभी भी शिक्षा का इस्तेमाल आतंकवाद जैसी समस्याओं के समाधान के लिए एक अस्त्र के रूप में नहीं किया गया है। आज हम सब शिक्षा मंत्रियों को इस बात पर चर्चा करनी चाहिए कि कैसे शिक्षा के माध्यम से हम आतंकवाद व हिंसक घटनाओं का समाधान खोज सकें और कैसे अपनी अगली पीढ़ी को इसके दुष्प्रभाव को समझाते हुए इससे निजात दिला सकें।

शिक्षा मंत्री ने इसी तरह शिक्षा का इस्तेमाल ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण जैसी समस्याओं के समाधान के लिए इस्तेमाल करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि जिस तरह हम आज अच्छे स्कूलों और कॉलेजों से अच्छे डॉक्टर,इंजिनियर, वकील, पत्रकार ,मैनेजर आदि तैयार करने की गारंटी लेते हैं, उसी तरह शिक्षा मंत्रियों को प्लान बनाना चाहिए और ऐसी शिक्षा पद्धति खड़ी करनी चाहिए ताकि शिक्षा लेने वाला हर बच्चा प्रदूषण न फैलाये,किसी भी सूरत में भ्रष्टाचारी न बने, हिंसा का रास्ता न अपनाये।

सिसोदिया ने इस बात पर तारीफ की कि केन्द्र सरकार पूरे देश में‘लर्निंग आउटकम’ पर जोर दे रही है। लेकिन साथ ही इस बात की ताकीद भी की कि ‘लर्निंग आउटकम’ शिक्षा में महज ‘लर्निंग आउटकम की लिस्ट बनाने से ही हासिल नहीं होगी। उन्होंने कहा कि दिल्ली में ‘लर्निंग आउटकम’पर काम करने के दौरान हमने दो बाधाएं चिन्हित की हैं – अध्यापकों द्वारा सिलेबस पूरा करने पर जोर और परीक्षा लेने के तरीकों में खामी। उन्होंने कहा कि जब तक हम अपने अध्यापकों पर सिलेबस पूरा करने की तलवार लटकाये रखेंगे, तब तक किसी भी हालत में अध्यापकों का ध्यान‘लर्निंग आउटकम’ पर नहीं जा सकता। इसलिए शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने मांग की कि केन्द्र सरकार को एनसीईआरटी, सीबीएसई और सभी राज्य सरकारों को तुरंत सभी विषयों का पाठ्यक्रम 50 प्रतिशत कम कर देना चाहिए। मौजूदा पाठ्यक्रम को पूरा करने के दबाव में ‘लर्निंग आउटकम’ की बात एकदम बेमानी है।

इसी तरह मनीष सिसोदिया ने दिल्ली के अनुभव के आधार पर बताया कि किस तरह परीक्षा लेने के तौर-तरीकों ने‘लर्निंग आउटकम’ के प्रयासों को विफल किया है। उन्होंने कहा कि हम दावे चाहे जो भी करें लेकिन हकीकत यह है कि क्लास रूम में खड़े अध्यापक किसी भी विषय को पिछले 4-5 साल की परीक्षा में आये प्रश्नों से प्रभावित होकर ही पढ़ाते हैं। परीक्षा में हमें रटने व स्मरण क्षमता का आंकलन करने वाले प्रश्नों की जगह निर्धारित‘लर्निंग आउटकम’  वाले प्रश्न पत्र डिजाइन कराने होंगे। उन्होंने बताया कि दिल्ली में इन प्रश्न पत्रों में काफी बदलाव किये गये हैं। उन्होने केन्द्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के शिक्षा मंत्रियों से अपील की कि अगर शिक्षा में‘लर्निंग आउटकम’ पर ध्यान देना है तो सिलेबस आधा करना होगा और परीक्षा के प्रश्न पत्रों में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा।

इसके साथ ही उन्होने दिल्ली के प्रयोग साझा करते हुए बताया कि दिल्ली में विश्वस्तरीय आधारभूत ढांचा उपलब्ध कराने का काम जोरों पर शुरू हो चुका है और अब सरकार का ध्यान विश्वस्तरीय टीचर्स ट्रेनिंग पर भी है। उन्होंने यह भी साझा किया कि किस तरह दिल्ली में सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को कैंब्रिज, हार्वर्ड, फिनलैंड, सिंगापुर और आईआईएम जैसे संस्थानों में ट्रेनिंग दिलाई जा रही है।

उन्होने यह भी बताया कि दिल्ली सरकार, दिल्ली के सरकारी स्कूलों में हर कमरे में सीसीटीवी लगाने को काम तेजी से कर रही है और साथ ही सभी अध्यापकों को कंप्यूटर टैबलेट उपलब्ध करवाने की भी तैयारी में है।

मंत्री मनीष सिसोदिया ने केन्द्र सरकार से अपील की कि देश के सभी राज्यों के शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन का आयोजन कम से कम प्रत्येक दो महीनों के अंतराल विभिन्न राज्यों में होना चाहिए ताकि पूरे देश के शिक्षा मंत्री और अधिकारी अलग-अलग राज्यों में हो रहे अच्छे प्रयोगों से प्रेरणा ले सकें।