आसाम में नागरिकता के मामले में अफवाओं का बाज़ार गर्म

असम में नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस के फेहरिस्त प्रकाशन की आखरी तारीख 30 जून, 2018 जैसे जैसे करीब आती जा रही है लोगों में अपने भविष्य को लेकर चिंता और बेचैनी बढ़ रही है। साथ इस मुद्दे पर विवाद तेज हो रहा है. लोग यहाँ तक की मस्जिदों में दुआएं कर रहे हैं। कई अल्पसंख्यक संगठनों ने इसे राज्य के स्थायी मुसलमान वाशिंदों को असम से निकालने की साजिश करार दिया है.

इस स्थिति को देखते हुए मौलाना महमूद मदनी के नेतृत्व में मस्जिद रशीद देवबंद में परेशान हाल लोगों के लिए लगातार दुआओं का आयोजन कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जमीअत उलेमा ए हिन्द के एक प्रतिनिधिमंडल ने आज यहाँ नई दिल्ली के सरदार भवन में मौलाना उस्मान मंसूरी जमीअत के प्रमुख बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और होम सेक्रेटरी आदि से मुलाक़ात की और उनके सामने उक्त मुद्दे पर बातचीत की।

गौरतलब है की राज्य में अवैध तरीके से रहने वाले लोगों की पहचान कर उनको वापस भेजने के मकसद से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एनआरसी, 1951 को अपडेट करने का काम चल रहा है. इसके तहत 25 मार्च, 1971 से पहले बांग्लादेश से यहां आने वाले लोगों को स्थानीय नागरिक माना जाएगा. लेकिन उसके बाद राज्य में पहुंचने वालों को बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा. कई राजनीतिक दल व मुस्लिम संगठन इसका विरोध कर रहे हैं. उनका आरोप है कि सरकार अल्पसंख्यकों को राज्य से बाहर निकालने के लिए ही यह काम कर रही है.

वर्ष 1951 की जनगणना में शामिल अल्पसंख्यकों को तो राज्य का नागरिक मान लिया गया है. लेकिन सबसे ज्यादा समस्या 1951 से 25 मार्च, 1971 के दौरान आने वाले बांग्लादेशी शरणार्थियों के साथ है. उनमें से ज्यादातर के पास कोई वैध कागजात नहीं होने की वजह से उन पर राज्य से खदेड़े जाने का खतरा मंडरा रहा है. एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया में पंचायतों की ओर से जारी नागरिकता प्रमाणपत्र को मान्यता नहीं दी जा रही है. यही वजह है कि कई संगठनों ने एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसके विभिन्न प्रावधानों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं. उन पर एक साथ सुनवाई चल रही है.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने असम में नागरिकता के मुद्दे पर म्यामांर जैसे हालात पैदा करने का आरोप लगाकर सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया था. उन्होने दिल्ली में दिल्ली एक्शन कमिटी फॉर असम नामक एक संगठन की ओर से दिल्ली में एनआरसी और नागरिकता के मुद्दे पर आयोजित एक सेमिनार में मदनी ने कहा था, “जब से असम में बीजेपी सरकार सत्ता में आई है तब से इस मुद्दे को धार्मिक रंग देने की कोशिश हो रही है. मूल नागरिकों को ही बांग्लादेशी करार दिया जा रहा है.” उनका कहना था कि यह असम को म्यांमार बनाने का प्रयास है. मदनी का आरोप है कि सरकार 48 लाख विवाहित अल्पसंख्यक महिलाओं के नाम हटाने की साजिश कर रही है. उनके इस बयान की चौतरफा निंदा हो रही है और राज्य के दो तबकों में दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में उनके खिलाफ तीन एफआईआर दर्ज हुए हैं. पुलिस महानिदेशक मुकेश सहाय बताते हैं, “मदनी के कथित भड़काऊ बयान की ऑडियो व वीडियो रिकार्डिंग की जांच की जा रही है. दोष साबित होने पर कानून के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.”