इंजीनियर, एमबीए से लेकर पत्रकार तक शामिल हैं वामपंथी कार्यकर्ताओं में जिनके खिलाफ हुई कार्रवाई

पुणे पुलिस ने माओवादियों से संपर्क रखने के संदेह में विभिन्न राज्यों में कुछ लोगों के घरों सहित विभिन्न ठिकानों पर छापा मारा और दो वामपंथी कार्यकर्ताओं वरवर राव और सुधा भारद्वाज को आज गिरफ्तार किया. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि पिछले साल 31 दिसंबर को पुणे में एल्गार परिषद नाम के एक कार्यक्रम के बाद महाराष्ट्र के कोरेगांव-भीमा गांव में हुई हिंसा की जांच के तहत ये छापे मारे गए हैं. अधिकारी ने बताया कि हैदराबाद में वामपंथी कार्यकर्ता और कवि वरवर राव, मुंबई में कार्यकर्ता वेरनन गोन्जाल्विस और अरूण फरेरा, फरीदाबाद और छत्तीसगढ़ में ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और दिल्ली में रहने वाले सिविल लिबर्टीज के कार्यकर्ता गौतम नवलखा के घरों की तलाशी ली गई. तलाशी के बाद राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, अरूण फरेरा, वेरनन गोन्जाल्विस को गिरफ्तार किया गया. जानिए उन कार्यकर्ताओं को जिनके खिलाफ कार्रवाई हुई है:

(1) वरवर राव: – राव 1957 से कविताएं लिख रहे हैं. वीरासम (क्रांतिकारी लेखक संगठन) के संस्थापक सदस्य राव को अक्तूबर 1973 में आंतरिक सुरक्षा रखरखाव कानून (मीसा) के तहत गिरफ्तार किया गया था. साल 1986 के रामनगर साजिश कांड सहित कई अलग-अलग मामलों में 1975 और 1986 के बीच उन्हें एक से ज्यादा बार गिरफ्तार और फिर रिहा किया गया. करीब 17 साल बाद 2003 में राव को रामनगर साजिश कांड में बरी कर दिया गया. राव को एक बार फिर आंध्र प्रदेश लोक सुरक्षा कानून के तहत 19 अगस्त 2005 को गिरफ्तार कर हैदराबाद के चंचलगुडा केन्द्र जेल में भेज दिया गया. 31 मार्च 2006 को लोक सुरक्षा कानून के तहत चला मुकदमा निरस्त कर दिया गया और राव को अन्य सभी मामलों में जमानत मिल गई.

 

2) अरुण फेरेरा: – मुंबई में रहने वाले नागरिक अधिकार कार्यकर्ता फेरेरा को 2007 में प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) की प्रचार एवं संचार शाखा का नेता बताया गया. उन्हें 2014 में सभी आरोपों से बरी कर दिया गया. अपनी किताब ‘कलर्स ऑफ दि केज: ए प्रिजन मेमॉयर’ में फेरेरा ने जेल में बिताए करीब पांच साल का ब्योरा लिखा है.

(3) सुधा भारद्वाज: – सुधा छत्तीसगढ़ में अपने काम के लिए जानी-पहचानी जाती हैं. वह 29 साल तक वहां रही हैं और दिवंगत शंकर गुहा नियोगी के छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा की सदस्य के तौर पर भिलाई में खनन श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ चुकी हैं. आईआईटी कानपुर की छात्रा होने के दौरान पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में बिताए दिनों में श्रमिकों की दयनीय स्थिति देखने के बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के साथ 1986 में काम करना शुरू किया था. नागरिक अधिकार कार्यकर्ता एवं वकील सुधा जमीन अधिग्रहण के खिलाफ भी लड़ाई लड़ती रही हैं और वह अभी पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की छत्तीसगढ़ इकाई की महासचिव हैं.

 

(4) सुजैन अब्राहम: – नागरिक अधिकार कार्यकर्ता सुजैन ने एलगार परिषद के कार्यक्रम के सिलसिले में पुलिस की ओर से जून में की गई छापेमारियों के दौरान गिरफ्तार किए गए कई लोगों की अदालत में पैरवी की थी. सामाजिक कार्यकर्ता वर्नोन गान्जल्विस की पत्नी सुजैन केरल में एक शिक्षक परिवार में पैदा हुईं और उन्होंने जांबिया में पढ़ाई की. उन्होंने नोटबंदी के खिलाफ भी प्रदर्शन किया था. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी एन साईबाबा, सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत राही एवं अन्य को दिए गए सश्रम कारावास के खिलाफ काफी लिखा है और इसे ‘गैर कानूनी गतिविधि निरोधक कानून का दुरूपयोग’ करार दिया है.

(5) वर्नोन गान्जल्विस :- वर्नोन के दोस्तों की ओर से चलाए जा रहे एक ब्लॉग में उन्हें ‘न्याय, समानता एवं आजादी का जोरदार पैरोकार’ बताया गया है. मुंबई विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक विजेता और रूपारेल कॉलेज एंड एचआर कॉलेज के पूर्व लेक्चरर वर्नोन के बारे में सुरक्षा एजेंसियों का आरोप है कि वह नक्सलियों की महाराष्ट्र राज्य समिति के पूर्व सचिव और केंद्रीय कमेटी के पूर्व सदस्य हैं. उन्हें करीब 20 मामलों में आरोपित किया गया था और साक्ष्य के अभाव में बाद में बरी कर दिया गया. उन्हें छह साल जेल में बिताने पड़े.

(6) गौतम नवलखा :- नवलखा दिल्ली में रहने वाले पत्रकार हैं और पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) से जुड़े रहे हैं. वह प्रतिष्ठित पत्रिका ‘इकनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली’ के संपादकीय सलाहकार हैं. उन्होंने सुधा भारद्वाज के साथ मिलकर गैर-कानूनी गतिविधि निरोधक कानून 1967 को निरस्त करने की मांग की थी. उनका कहना है कि गैरकानूनी संगठनों की गतिविधियों के नियमन के लिए पारित किए गए इस कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है. पिछले दो दशकों से अक्सर कश्मीर का दौरा करते रहे नवलखा ने जम्मू-कश्मीर में कथित मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर काफी लिखा है.

 

(7) आनंद तेलतुंबड़े : – इंजीनियर, एमबीए और पूर्व सीईओ आंनद दलित अधिकारों के चिंतक के तौर पर ख्यात हैं. उन्होंने कई जन आंदोलनों पर किताबें लिखी हैं. उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से साइबरनेटिक्स में पीएचडी की है. यह संयोग है कि उन्होंने अक्सर दलील दी है कि दलितों के लिए आरक्षण ने उन्हें लांछित किया है और भारत की राजव्यवस्था में जाति को पवित्रता प्रदान किया है.

(8) फादर स्टन स्वामी:- मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टन स्वामी ने विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन की स्थापना की, जो आदिवासियों एवं दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ता है. स्वामी उन 20 लोगों में शामिल थे जिनके खिलाफ पिछले साल जुलाई में राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था. उन पर पत्थलगड़ी आंदोलन के मुद्दे पर तनाव भड़काने के लिए झारखंड सरकार के खिलाफ बयान जारी करने के आरोप थे.

(9) क्रांति टेकुला : – क्रांति ‘नमस्ते तेलंगाना’ के पत्रकार हैं.