इतिहास गवाह है, राम मंदिर बीजेपी के लिए सिर्फ़ चुनावी मुद्दा है?

राम मंदिर पर अध्यादेश लाने के लिए चारों तरफ से मोदी सरकार पर दबाव बन रहा है लेकिन ऐसी क्या बात है जो लोक सभा में बहुमत होने और राज्य सभा में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद बीजेपी सरकार अध्यादेश नहीं ला रही है या यूँ कहें लाना नहीं चाहती है ?

लोक सभा में सिर्फ दो सीट से 282 सीट तक का सफर तय करने वाली बीजेपी ने जब चाहा राम मंदिर मुद्दे का इस्तेमाल किया और जब चाहा धर्मनिरपेक्ष दिखने के लिए उसे त्याग दिया। कहते हैं घोषणापत्र राजनीतिक दल की आत्मा होती है।

राम मंदिर के निर्माण को लेकर बीजेपी की नीयत क्या है वह उसके घोषणापत्रों से पता चलती है। बीजेपी की वेबसाइट में 1998 से पहले के घोषणापत्र नहीं हैं।

1998 से 2014 तक के घोषणापत्रों में राम मंदिर को लेकर बीजेपी की भाषा किस तरह ज़रुरत के हिसाब से बदलती रही है, वह आगे आप स्वतः जान जाएंगे। पिछले बीस सालों में कभी बीजेपी के नाम से घोषणापत्र छपा तो कभी एनडीए के नाम से।

“बीजेपी अयोध्या के राम जन्मभूमि पर जहां एक अस्थायी मंदिर पहले से मौजूद है, वहां भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है। श्री राम भारतीय चेतना के मूल में निवास करते हैं। बीजेपी राम मंदिर के निर्माण के लिए आम सहमति, कानूनी और संवैधानिक सभी साधनों का पता लगाएगी।”

राम मंदिर का मुद्दा हटा दिया गया। अब यह घोषणापत्र बीजेपी का न हो कर एनडीए का घोषणापत्र बन गया था। सत्ता का लालच राम मंदिर से बड़ा हो गया। कुर्सी चाहिए, तो सहयोगियों को नाराज तो नहीं कर सकते। पांच साल तक बीजेपी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार रही, पर सहयोगियों के दबाव में राम मंदिर का मुद्दा ठंडे बस्ते में पड़ा रहा।

राजग का मानना है कि अयोध्या मुद्दे का शीघ्र और सौहार्दपूर्ण समाधान राष्ट्रीय एकता को मजबूत करेगा। हम आगे भी इस पक्ष में रहेंगे कि इस मामले में न्यायपालिका के फैसले को सभी को स्वीकार करना चाहिए। इसके साथ ही परस्पर विश्वास और सद्भावना के माहौल में बातचीत और सहमति के साथ मामले के समाधान के लिए प्रयास तेज किये जाने चाहिए।”

“भारत के लोगों और विदेशों में बसे भारतीयों की यह उत्कट इच्छा है कि अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर का भव्य निर्माण हो। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण हेतु भाजपा वार्ता, न्यायिक प्रक्रिया समेत सभी संभावनाओं पर कार्य करेगी।”

“बीजेपी अपना रुख दोहराती है। संविधान के दायरे में अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए सभी संभावनाओं को तलाशा जाए। ” हिन्दू वोट बैंक कहीं छिटक न जाए इसलिए समय-समय पर बीजेपी नेता राम मंदिर को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराते रहते हैं।

आरएसएस नेता मोहन भागवत भी सरकार को मंदिर निर्माण पर अध्यादेश लाने के लिए अल्टीमेटम दे रहे हैं लेकिन इन लोगों का कहना और अल्टीमेटम मायने नहीं रखता, मायने रखता है प्रधानमंत्री मोदी की राम मंदिर निर्माण को लेकर क्या नीयत है?

प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार कहा है कि जो सर्वोच्च न्यायालय फैसला देगा वह वही मानेंगे। अध्यादेश लाने के लिए उन्होंने कभी रूचि नहीं दिखाई है। इसलिए आप सभी से प्रार्थना है कि ऐसी गलत उम्मीद न पालें की मोदी सरकार मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाएगी।