मुल्क के इक़तिसादी माहिरीन और तजज़िया निगारों ने पॉलीसी शरहों को किसी तबदीली के बगैर मौजूदा सतह पर बरक़रार रखने से मुताल्लिक़ रिज़र्व बैंक औफ़ इंडिया के फैसला को दानिशमंदाना क़रार देते हुए इस नज़रिया का इज़हार किया कि इफरात-ए-ज़र पर बुनियादी तवज्जु मर्कूज़ रखी जानी चाहीए।
नौ मोरा इंडिया के इक़तिसादी माहिर सोनाल वर्मा ने कहा कि भारी ख़सारा और इस पर इफ़रात-ए-ज़र की शरह में इज़ाफ़ा रिज़र्व बैंक औफ़ इंडिया को इस मरहला पर अपनी मालीयाती पॉलीसी को फ़राख़दल बनाने से रोक दिया है। इस सूरत-ए-हाल में रिज़र्व बैंक औफ़ इंडिया चाहते हुए भी बाअज़ अहम इक़दामात ना करने पर मजबूर हैं।
अलावा अज़ीं शरह में कमी केलिए रिज़र्व बैंक औफ़ इंडिया पर सयासी दबाव भी था जिस के तनाज़ुर में मुल्क के इस कलीदी बैंक का फैसला इंतिहाई दानिशमंदाना है जिस के ज़रीये इफ़रात-ए-ज़र की होलनाक शरह से निमटने में मदद मिलेगी। आलमी मालीयाती ख़िदमात के इदारे अर्नेस्ट एंड म्युंग इंडिया के अश्विन पारेख ने कहा कि मुल़्क की मालीयाती पॉलीसी पर इफरात-ए-ज़र का दबाव बदस्तूर बरक़रार रहेगा।