इबादतगाहों में मुफ्त की बिजली जलाना हराम

इबादतगाहों में मुफ्त की बिजली जलाना हराम है। अगर किसी इबादतगाह में ऐसा हो रहा है तो इसके लिए न सिर्फ उसका इंतेजामिया बल्कि वहां इबादत के लिए आने वाले वे लोग भी गुनहगार हैं, जिन्हें इसकी खबर है।

एक सवाल के जवाब में देवबंदी मसलक ने यह फतवा जारी किया है। बरेलवी मसलक के उलमा ने भी इस बात से इत्तफाक जताया है। बरेली शहर के आजमनगर के रहने वाले आरटीआई कारकुन मोहम्मद खालिद जिलानी ने इबादतगाहों में मुफ्त की बिजली जलाने के बारे में फतवा मांगा था।

सराय खाम में मौजूद देवबंदी मसलक के मदरसा अरबिया काशिफ उल-उलूम में उन्होंने सवाल किया था कि मुल्क की तमाम मस्जिदों-मंदिरों, गुरुद्वारों, चर्च, खानकाहों और मजारों-मदरसों में इस्तेमाल की जानी वाली बिजली की कीमत नहीं चुकाई जाती।

ऐसे तमाम इबादतगाह बरेली में भी है। उनके इस सवाल पर मुफ्ती मोहम्मद मियां कासमी ने फतवा जारी किया, जिसमें कहा गया है कि मस्जिदों में मुफ्त की बिजली जलाना गैरकानूनी तो है ही, शरीयत के हिसाब से भी इसकी इजाजत नहीं है।

अगर बिजली का बिल अदा नहीं किया जाता तो इस गुनाह में उस मस्जिद की देखरेख करने वाले लोग ही नहीं, वहां इबादत के लिए आने वाले लोग भी शामिल हैं। क्योंकि इस्लाम में चोरी करना हराम है, चाहे वह किसी भी तरह की हो।

देवबंदी मसलक ही नहीं, बरेलवी मसलक के उलमा ने भी इबादतगाहों में बिजली की चोरी को नाजायज बताया है। सौदागरान के मदरसा मंजर-ए-इस्लाम के मुफ्ती ने भी इस सवाल पर अपने फतवे में इबादतगाहों में बिजली की चोरी को गैरकानूनी और शरीयत के नजरिए से हराम ठहराया है।

फतवे में ऐसे इबादतगाहों का इंतजाम देखने वाले लोगों को इसके लिए जिम्मेदार बताया गया है। दोनों मसलकों से फतवा लेने से पहले आरटीआई कारकुन मोहम्मद खालिद जीलानी ने पावर कॉरपोरेशन से भी सवाल किया था कि क्या इबादतगाहों में मुफ्त बिजली देने का कोई हुक्म है तो वहां से भी जवाब आया ऐसा कोई हुक्म नहीं है। इसके बाद ही उन्होंने फतवे के लिए सवाल दाखिल किए।