इमरान का चुनावी बाउंसर, पहले बदउनवानी को आउट करूंगा

ईस्लामाबाद, 30 अप्रैल: पाकिस्तान की तारीख में पहली बार किसी जम्हूरी हुकूमत ने पांच साल के अपनी मुद्दत को पूरा किया और अब वहां 11 मई को आम इंतेखाबात होने वाले है।

इंतेखाबी मुहिम ज़ोरों पर है और तालिबान भी उम्मीदवारो को निशाना बना रही है।

पाकिस्तान में इस बार हुक्मरान पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और अपोजिशन पार्टी के चीफ नवाज़ शरीफ़ की मुस्लिम लीग (नून) के अलावा साबिक क्रिकेटर करें इमरान ख़ान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ़ पर भी लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं।

इमरान ख़ान कहते हैं कि पाकिस्तान की अहम पार्टियों से आवाम का मोह भंग हो गया है।

इंतेखाबी मुहिम के दौरान बातचीत में इमरान ख़ान कहते हैं, ”लोगों ने इस बार फ़ैसला कर लिया है। उन्होंने तमाम पार्टियों को आज़मा कर देख लिया है। मुझे अब्राहम लिंकन की उस बात पर पूरा भरोसा है कि आप सभी लोगों को हर वक्त बेवक़ूफ़ नहीं बना सकते हैं।”

बदउनवानी को एक खास चुनावी मुद्दा बनाते हुए इमरान कहते हैं, ”पाकिस्तान में ऊँचे मुकाम पर बैठे हुए 80 फ़ीसदी लोग मुल्ज़िम हैं। मुझे बाक़ी 20 फ़ीसदी लोगों के बारे में भी शक है लेकिन इतना तो तय है कि ऊँचे आहदों पर बैठे 80 फीसद लोग अगर मगरिबी ममालिक में होते तो अब तक वे जेल में बंद होते।”

इमरान ख़ान का दावा है कि इस बार इलेक्शन में एक सयासी सुनामी आएगी, जो उनकी पार्टी को इक्तेदार ( सत्ता) में बिठा देगी।

उनके दावे में इतना दम तो नहीं लगता लेकिन इतना ज़रूर है कि उन्होंने पाकिस्तान की नई नस्ल के एक बड़े हिस्से को उन्होंने अपनी ओर मुतास्सिर किया है और उनके सयासी मुखालिफ उन पर अपनी नज़र बनाए हुए हैं।

चुनावी तकरीरों में इमरान बार-बार यही कहते हैं कि अब पाकिस्तान में बदलाव का वक्त आ गया है।

उनके इस तरह के बयान नौजवानो को अपील करते हैं और इलेक्शन के दिन इमरान को इन्हीं नौजवानो पर मुनहसिर (depend) रहना होगा। चुनाव के दिन अगर ज़्यादा तादाद में रायदही होती है तो इससे इमरान ख़ान की पार्टी को फायदा मिलने के इम्कान है।

स्टेज पर पहुंचते ही इमरान ख़ान क्रिकेट की ज़ुबान में अपने सयासी मुखालिफीन को आउट करने का दावा करते हैं।

बदलाव की ज़रूरत के अलावा बदउनवानी को चुनावी मुद्दा बनाते हुए इमरान ख़ान सिर्फ़ 90 दिनों में बदउनवानी को खत्म करने का दावा करते हैं।

उनके मुखालिफीन कहते हैं कि इमरान ख़ान सियासत में नए हैं और तालिबान के तरफ से उनका रवैया नरम रहता है।

लेकिन इमरान के हामी मानते हैं कि इमरान ही पाकिस्तान की अकेली उम्मीद हैं। चुनावों के नतीजे आने के बाद उम्मीद है कि उनकी पार्टी इत्तेहादी हुकूमत का एक हिस्सा होगी या फिर अपोजिशन की एक अहम आवाज़ हो सकती है।

लेकिन दोनों ही हालात में इमरान ख़ान के सियासी अहमियत की अनदेखी नहीं की जा सकती है।