इश्क़ के जज़्बात का बयान, “जो तुम सोचती हो, वो मैं सोचता हूँ”

जो तुम सोचती हो वो मैं सोचता हूँ
ख़लाओं से आगे, सितारों के पीछे
जो तुम सोचती हो वो मैं सोचता हूँ
कहीं रात में खुश्क ख़्वाबों से पहले
नजारों में दिल के इशारों से पहले
मोहब्बत में डूबे ख़यालों से पहले
जो तुम सोचती हो, वो मैं सोचता हूँ

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जो तुम सोचती हो, वो मैं सोचता हूँ
ये आँखों में सुरमा लगाना मिटाना
तभी सुर्ख़ आँचल को उलटा घुमाना
कोई ज़ुल्फ़ हाथों में लेना, नचाना
बहुत सोचती हो, बहुत सोचता हूँ
“अगर” सोचती हो, ‘अगर’ सोचता हूँ
“मगर” सोचती हो, ‘मगर’ सोचता हूँ
कभी साथ मेरे यूं लग कर के बैठो
तुम्हें भी लगेगा, तुम्हें सोचता हूँ
जो तुम सोचती हो, वो मैं सोचता हूँ
जो तुम सोचती हो, वो मैं सोचता हूँ

 

(अरग़वान रब्बही)