औरंगाबाद: जमीअत उलेमा-ए-हिन्द की कोशिश से आतंकवाद के आरोपी दो मुस्लिम युवक को मिली ज़मानत

मुंबई: महाराष्ट्र में हुए एक आतंकवादी घटना औरंगाबाद हथयार जब्ती मामले में निचली अदालत से दोषी ठहराया गया घनी आबादी वाले मुस्लिम शहर मालेगांव के दो मुस्लिम युवकों को आज उस समय राहत मिली जब मुंबई हाई कोर्ट ने उन्हें सशर्त जमानत पर रिहा किए जाने का आदेश जारी किया।

Facebook पे हमारे पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करिये

गौरतलब है कि इसी साल 2 फरवरी को आरोपी मुश्ताक अहमद, मोहम्मद इसहाक और जावेद अहमद, अब्दुल मजीद अंसारी को विशेष मकोका अदालत ने आठ साल कैद बा मुशक्कत की सजा सुनाई थी जिसके बाद आरोपियों को कानूनी मदद करने वाली संस्था जमीयत उलेमा ए महाराष्ट्र (अरशद मदनी) ने आरोपियों की सजा के खिलाफ अपील दायर करते हुए उन्हें जमानत पर रिहा किए जाने की अपील मुंबई हाईकोर्ट से की थी।
मुंबई हाई कोर्ट के जस्टिस पीएन देशमुख के सामने आज याचिका पर बहस करते हुए एडवोकेट शरीफ शेख ने अदालत को बताया कि विशेष मकोका अदालत ने अर्जी देने वालों को जो सजा 4 प्रस्ताव किया है वह इससे संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि इस मामले से आरोपियों का कोई लेना देना नहीं है लेकिन इसके बावजूद सिर्फ संदेह के आधार पर विशेष एनआईए अदालत ने आरोपियों को आठ साल की सजा सुनाई है।
एडवोकेट शरीफ शेख ने कहा कि आरोपी आठ साल में सात साल और दस महीने जेल में गुज़ार चुके हैं और कानून के अनुसार आधे से अधिक सजा जेल में गुजारने वाले कैदी को उसकी अपील की सुनवाई के अंत में जमानत पर रिहा किया जाता है तो आरोपियों को जमानत पर रिहा किया जाए। बचाव पक्ष के वकील के तर्क के बाद सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार अर्जी देने वालों की सजा बढ़ाने की अपील जल्द ही दायर करने वाली है तो उन्हें इसकी सुनवाई पूरी होने तक जमानत पर रिहा नहीं किया जाना चाहिए।
पक्षों के तर्क सुनने के बाद न्यायमूर्ति देशमुख ने अर्जी देने वाले मुश्ताक अहमद और जावेद अहमद को इस शर्त पर जमानत पर रिहा किए जाने के आदेश जारी किया कि वे महीने में एक बार मालेगांव स्थानीय पुलिस स्टेशन में उपस्थिति होंगे और हर तीन महीने के बाद मुंबई एटीएस कार्यालय में उनकी उपस्थिति अनिवार्य होगी।