कलकत्ता हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला : बाप के बाद नौकरी पर विवाहित बेटी का भी हक

कोलकाता : नौकरी के दौरान पिता की मृत्यु की स्थिति में विवाहित पुत्रियों को भी अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने का समान अधिकार है. कलकत्ता हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि पहले यह अधिकार सिर्फ अविवाहित पुत्रियों तक ही सीमित था. लेकिन पुत्रों के मामले में विवाह की कोई बाधा नहीं थी. लैंगिक समानता की खाई पाटने के मामले में अदालत के इस फैसले को मील का पत्थर माना जा रहा है. तमाम महिला संगठनों ने इस फैसले की सराहना की है.

बीरभूम जिले की पूर्णिमा दास ने वर्ष 2011 में अपने पिता हारूचंद्र दास की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर नौकरी की अर्जी दी थी. लेकिन सरकार ने यह कह उसकी अर्जी खारिज कर दी थी पहले यह मामला हाई कोर्ट की एकल पीठ में था. वहां फैसला खिलाफ होने के बाद सरकार ने अपनी अधिसूचना का हवाला देते हुए नौकरी देने से मना कर दिया. उसके बाद फिर उसी न्यायाधीश की अदालत में मामला उठा था. वहां भी मुंह की खाने के बाद सरकार ने खंडपीठ में अपील की थी. लेकिन अब खंडपीठ ने अपने फैसले में सब कुछ साफ कर दिया है.

लगभग चार साल तक चली सुनवाई के बाद कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश निशीथा म्हात्रे, न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति दीपकंर दत्त की खंडपीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि पुत्री के विवाह के बावजूद माता-पिता के साथ उसके संबंध खत्म नहीं होते. वह अपने माता-पिता के दिल में रहती है. अदालत ने इस बारे में सरकार की अधिसूचना को असंवैधानिक करार देते हुए उसमें जरूरी संशोधन का निर्देश दिया है. पूर्णिमा के अलावा नदिया जिले की अर्पिता सरकार और काकली चक्रवर्ती ने भी क्रमशः अपने पिता और माता की मौत के बाद उनकी जगह अनुकंपा के आधार पर नौकरी की याचिका ठुकराए जाने के बाद अदालत की शरण ली थी. हाई कोर्ट ने सरकार से अतीत में किये गये ऐसे तमाम आवेदनों पर भी दोबारा विचार करने को कहा है. पूर्णिमा के वकील अंजन भट्टाचार्य बताते हैं, “सरकार के समक्ष ऐसे कम से कम पांच हजार मामले विचाराधीन हैं. अब उन सबको उनका जायज हक मिलने का रास्ता साफ हो गया है.”

हाई कोर्ट के इस फैसले से महिला संगठनों में काफी प्रसन्नता है. उनकी दलील है कि इससे महिलाओं को न्याय मिलेगा. महिला अधिकार कार्यकर्ता देवस्मिता गोस्वामी कहती हैं कि सरकार ने राज्य की परंपराओं और संस्कृति के उलट लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देने वाला कानून बनाया था. वह कहती हैं कि इस कानून की वजह से ऐसे मामलों में महिलाएं अपने जायज हक से वंचित रह जाती थीं. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. दूसरी ओर, सरकार ने कहा है कि वह अदालत का विस्तृत फैसला पढ़ने के बाद ही कोई टिप्पणी करेगी. श्रम मंत्री मलय घटक कहते हैं, “अभी फैसले की प्रति नहीं मिली है. फैसले को विस्तार से पढ़ने के बाद ही आगे की कार्रवाई पर फैसला किया जाएगा.” सरकार ने भले फिलहाल इस पर चुप्पी साध रखी हो, लेकिन महिला संगठनों का कहना है कि लैंगिक भेदभाव खत्म करने में अदालत का यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा.