कश्मीर: अलगाववादी नहीं बुद्धजीवी से बात करे सरकार

बुरहान वानी को शायद कश्मीरी प्रशासन और भारतीय सुरक्षा बल उसके कद का अंदाज़ा नहीं लगा पाया ! जिसकी वजह से कश्मीर घाटी में 25 वे दिन भी सुरक्षा बल की तरफ से कर्फ्यू और अलगाववादी की तरफ से आज़ादी के लिए संघर्ष जारी है ! दोनों फरीक अब आर या पार की लड़ाई लड़ने के मूड में आ चुका लगता है ! इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि लश्कर ए तैयब्बा का शीर्ष आतंकवादी अबु दुजाना के साथ मिल कर कश्मीरी अवाम खुलेआम आज़ादी के नारे लगा रहे है ! आज फिर घाटी जुलाई 1988 के दौर में जाता दिख रहा है ! जीत निश्चित तोर पर भारतीय फौज की होगी इसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं है ! लेकिन अलगाववादी, इंटरनेशनल कम्युनिटी को अपनी आज़ादी का सन्देश ठोस तरीके से देने में कामयाब रहा है !

80 के दशक में तत्कालीन सरकार उस वक्त का अलगाववादी की ताकत को समझ नहीं पाया था ! जिसकी वजह से कश्मीरी अवाम और फ़ौज को भारी जान व माल का नुकसान उठाना पड़ा था ! वहां के माहौल को अनुकूल बनाने और कश्मीरी का दिल जीतने में भारत सरकार को बड़ी बड़ी कुर्बानी देना पड़ा है ! उसके बाद से ही जो भी सरकार केंद्र और राज्य में आई वो अलगाववादी पर हाथ डालने से पहले उसके ताक़त का जोड़ घटाव और उससे होने वाले अंतर्राष्ट्रीय नुक्सान को समझ कर कार्रवाई किया तथा अपने सूझ बुझ से कश्मीरी अवाम का दिल जीतने और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संतुष्ट करने में लगभग कामयाब रहा ! जिसके कारण समय समय पर कश्मीरी बुद्धिजीवी और इंटरनेशनल कम्युनिटी की तरफ से भारत सरकार का सराहना करता रहा है !

इसमें कोई संदेह नहीं कि घाटी का बुद्धिजीवी वर्ग भारत के साथ यूनाइट रहने में यकीन रखता है ! किसी भी समाज के लिए बुद्धिजीवी वर्ग उस समाज के लिए रीढ़ की हड्डी की तरह होता है ! भारत सरकार को इस वर्ग से फ़ायदा उठाना चाहिए ! सरकार बेशक अलगाववादी से बात ना करे लेकिन इस वर्ग से जल्द से जल्द संवाद शुरू करना चाहिए ताकि कर्फ्यू हटाई और जनजीवन सामान्य कर रोज़मर्रा की ज़िन्दगी पटरी पर लाई जा सके !

अकबर सिद्दीक़ी
(लेखक के विचार निजी हैं)