किसी जाति, धर्म के भेदभाव के बिना ‘चाचा शरीफ’ करते हैं लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार

फैजाबाद: अयोध्या के 80 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति चाचा शरीफ किसी मिसाल से कम नहीं हैं। दशकों से धर्म और समुदाय के भेदभाव के बिना सैकड़ों लोगों की अंतिम संस्कार अदा करा चुके हैं। जहां हिंदुओं का श्मशान में अन्तिम संस्कार कराते हैं, वहीं कब्रिस्तान में शवों को सुपुर्दे खाक भी करते हैं।

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न्यूज़ नेटवर्क समूह न्यूज़ 18 के अनुसार शरीफ पिछले 25 सालों से फैजाबाद में लावारिस शवों के संस्कार का कार्य कर रहे हैं। पूरे अयोध्या में वह चाचा के नाम से प्रसिद्ध हैं। शरीफ चाचा का कहना है कि वह हिन्दू और मुस्लिम लाशों में कोई भेदभाव नहीं करते।

चाचा शरीफ राजनीतिक दलों से नाराजगी व्यक्त करते हुए कहते हैं कि ‘यह सब वोट के चक्कर में राजनीतिक नेता बोलते हैं, मगर मेरी इज्जत में तो हिंदुओं की वजह से ही काफी वृद्धि हुई है। हमारा खून एक जैसा है और मेरा प्यार किसी जाति या धर्म तक सीमित नहीं है। हम हिन्दू और मुस्लिम दोनों की मिट्टी गले से लगाते हैं और वे सब अलग करना चाहते हैं.

चाचा शरीफ को अब तक कई सरकारों और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा पुरस्कार भी मिल चुके हैं। चाचा शरीफ पेशे से साइकिल मैकेनिक हैं और रोजाना कब्रिस्तान और श्मशान के बीच चक्कर काटते रहते हैं।

चाचा शरीफ अपने इस काम का राज़ बताते हुए कहते हैं कि 1992 में मेरा बड़ा बेटा मोहम्मद रईस खान केमिस्ट के रूप में काम करने के लिए सुल्तानपुर गया था, लेकिन एक महीने तक गायब रहा। तब राम जन्मभूमि का विवाद चल रहा था, जिसके कारण 1992 में बाबरी मस्जिद ढा दी गई। बाद में एक बोरे से रईस की लाश मिली थी. बस तभी मैंने फैसला किया कि अब किसी भी लावारिस शव को सड़क पर सड़ने नहीं दूंगा।