किसी भी मुस्लिम देशों का इजरायल से संबंध फलस्‍तीनीयों के साथ धोखा है!

ग़ज़्ज़ा पट्टी की मस्जिदे अम्री के मुफ़्ती ने ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों की स्थापाना को धार्मिक दृष्टि से हराम घोषित करते हुए कहा है कि किसी भी स्थिति में अरब देशों को इस्राईल के साथ सांठ-गांठ नहीं करनी चाहिए।

पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, निम्र अबू औन ने इरना न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए कहा कि फ़िलिस्तीन की धरती और उसके पवित्र इस्लामी व ईसाई स्थान, इस्लामी जगत के सबसे अहम सिद्धांतों में शामिल हैं और इस्लामी समुदाय के कमज़ोर होने की स्थिति में भी किसी भी हालत में उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती।

उन्होंने बल देकर कहा कि कुछ अरब देशों की ओर से ज़ायोनी शासन के साथ संबंध स्थापित करने की कोशिशों का कोई औचित्य नहीं है और धरती पर मौजूद किसी भी इंसान को यह अधिकार नहीं है कि वह अपराधी, हत्यारे व अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन के साथ संबंध स्थापित करे।

फ़िलिस्तीन के इस मुफ़्ती ने इस बात की तरफ़ इशारा करते हुए कि इस्राईल के मित्र कुछ यूरोपीय देशों ने उसकी वस्तुओं का बहिष्कार कर रखा है, सवाल किया कि क्यों कुछ अरब देश, ज़ायोनी शासन से संबंध स्थापित करने के लिए मरे जा रहे हैं? क्यों वे नेतनयाहू को अपनी राजधानियों में आने देते हैं? यह धार्मिक दृष्टि से पाप है और किसी भी रूप में सही नहीं है।

ग़ज़्ज़ा पट्टी की मस्जिदे अम्री के मुफ़्ती ने बताया कि बैरूत और ग़ज़्ज़ा के बीच हाल ही में इस्राईल से संबंधों की बहाली से मुक़ाबले के लिए एक बैठक आयोजित हुई और इसके लिए एकजुट हो कर प्रयास करने पर बल दिया गया।

उन्होंने कहा कि बैरूत प्रतिरोध की राजधानी है और उसका सिलसिला तेहरान से दमिश्क़, बग़दाद और फ़िलिस्तीन तक पहुंचा हुआ है। निम्र अबू औन ने कहा कि इस्राईल से संबंध स्थापित करना विश्वासघात और इस्लामी समुदाय के अधिकारों का हनन है।

ज्ञात रहे कि सोमवार को सऊदी अरब, यूएई और मिस्र ने जाॅर्डन की राजधानी अम्मान में आयोजित अरब देशों के संसदीय संघ की 29 बैठक के घोषणापत्र में शामिल उस अनुच्छेद का विरोध किया था जिसमें ज़ायोनी शासन से किसी भी प्रकार के संबंधों की स्थापना को रद्द किया गया था।