आसिफ़ जाह साबह नवाब मीर उसमान अली ख़ान बहादुर ने अपने दौरे हुक्मरानी में जहां इल्म और दानिश के शोबा पर तवज्जा मर्कूज़ की, ज़रई तरक़्क़ी को यक़ीनी बनाने के लिए आबपाशी प्रोजेक्ट्स तामीर करवाए वहीं ममलकत की सनअती तरक़्क़ी के लिए भी इक़दामात किए।
उन्हों ने सनअत और हिर्फ़त को फ़रोग़ देने में भी ख़ुसूसी दिलचस्पी का इज़हार किया। एक ऐसे वक़्त जब कि हिंदुस्तान में सिर्फ़ मीलों, बाज़ारों का तसव्वुर था हैदराबाद दक्कन ने सारे हिंदुस्तान को नुमाइश के आग़ाज़ का प्याम दिया।
चुनांचे 1938 में हुज़ूर निज़ाम नवाब मीर उसमान अली ख़ान बहादुर की सरपरस्ती में बाग़ आम्मा में नुमाइश मसनूआत मुल्की के नाम से नुमाइश शुरू की गई उस वक़्त वहां 100 स्टाल्स लगाए गए थे लेकिन आज वही नुमाइश इस क़दर तरक़्क़ी कर गई कि हिंदुस्तान की मुख़्तलिफ़ रियासतों से ताल्लुक़ रखने वाली कंपनियां दस्तकार वगैरह 2500 से ज़ाइद स्टाल्स लगाते हैं।
क़ारईन! हम ने आज नुमाइश मैदान का दौरा करते हुए वहां जारी इंतेज़ामात के बारे में जानने की कोशिश की। इस मर्तबा नुमाइश मैदान में हिंदुस्तान की मशहूर और मारूफ़ कंपनियों के इलावा मुल्क भर के दस्तकार अपनी अशिया के तक़रीबन 2600 स्टाल्स लगा रहे हैं।
इस तरह 1938 से 2014 तक 74 साल के दौरान नुमाइश के अंदाज़ भी बदल गए हैं। नुमाइश सोसाइटी के तहत 18 तालीमी इदारे चलाए जाते हैं।
और ये इदारे ख़्वातीन को बा अख़्तियार बनाने का काम कर रहे हैं। साल गुज़िश्ता की तरह इस मर्तबा भी सेक्यूरिटी के ख़ुसूसी इंतेज़ामात किए जा रहे हैं।