केजरीवाल के एक और करीबी जस्टिस हेगड़े आप से नाराज, सुनाई खरी-खरी

नई दिल्ली: आप संयोजक अरविंद केजरीवाल के सड़क से सत्ता तक के सफर के साथियों का एक-एक कर अलग होने का सिलसिला जारी है. ऐसे में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उपजी इस पार्टी के दूसरों से अलग होने के दावों पर सवाल उठना लाजिमी है. अन्ना आंदोलन के दौर से केजरीवाल को करीब से जानने वाले सुप्रीम के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े ने भी आप के अब तक के सफर को देखते हुए माना कि यह पार्टी भी दूसरों से अलग नहीं है.

जस्टिस हेगड़े ने न्यूज एजेंसी के इन 5 सवालों के ऐसे जवाब दिए

1. सवाल : क्या यह सही नहीं है कि आप के गठन से पहले केजरीवाल ने आपसे मशविरा किया था ?

जवाब : हां यह सही है. केजरीवाल ने मुझसे आप में शामिल होने का भी अनुरोध किया था, लेकिन मैंने यह कहते हुए मना कर दिया था कि मैं राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं. मैंने उन्हें देश की बेहतरी के लिए एक श्रेष्ठ राजनीतिक दल का गठन कर इसे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के आदर्शों की कसौटी पर खरा साबित करने के लिए शुभकामनाएं दी थी.

2. सवाल : केजरीवाल ने पहले आंदोलन से अपना रास्ता अलग कर पार्टी बनाई, अब पार्टी से भी साथी अलग हो रहे हैं. इस पर आप की क्या प्रतिक्रिया है ?

जवाब : पार्टी के गठन से पहले जब मैं केजरीवाल से मिला था, उस समय मैंने उन्हें आगाह किया था कि एक राजनीतिक पार्टी चलाना बहुत कठिन काम है. क्योंकि जब आप एक पार्टी बनाते हैं तो उसमें दूसरे दलों के लोग भी शामिल होते हैं, ऐसे में राजनीतिक शुचिता के आदर्शों पर गठित अपनी पार्टी को दूसरे दलों की बुराईयों से अछूता रख पाना बहुत मुश्किल होता है.

3. सवाल : आंदोलन से लेकर आप के गठन और इसे सत्ता तक पहुंचाने केजरीवाल की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं. इसपर आपकी क्या राय है?

जवाब: अव्वल तो मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मेरा संबंध सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना आंदोलन तक ही सीमित है. इस भ्रांति को भी दूर करना जरूरी है कि मैं ‘आप’ के संस्थापक सदस्यों में शामिल हूं. इसके बाद पिछले कई साल से उनसे कोई संपर्क नहीं है.

4- सवाल: ‘आप’ के चार साल के सफर को देखते हुए क्या यह माना जा सकता है कि केजरीवाल और उनकी पार्टी आदर्शों के अपने दावों पर खरी नहीं उतर पा रही है ?

जवाब : यह पार्टी भी देश की दूसरी अन्य पार्टियों की तरह ही दिखती है. दिल्ली में इनकी सरकार के मंत्री भी आरोपों से अछूते नहीं हैं. लेकिन मैं यह स्पष्ट कर दूं कि यहां किसी के बुरे या अच्छे होने का प्रश्न नहीं है बल्कि अब तक के अनुभव के आधार पर अंतिम तौर पर मेरा मानना यह है कि सिर्फ आप ही नहीं, कोई भी पार्टी हो, बुराईयों की विसंगति से अछूता कोई नहीं है.

5. सवाल : अन्ना हजारे का इनके बारे में आंकलन है कि सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. देश में साफ सुथरी राजनीति पर आपका क्या आंकलन है ?

जवाब : जिस तरह से देश में सरकारें चल रही हैं उससे यह सर्वमान्य धारणा बनी है कि राजनीति अब विशुद्ध व्यवसाय हो चुकी है. ”जनता के लिए, जनता का, जनता द्वारा शासन” का संवैधानिक सिद्धांत किसी के लिए, किसी का, किसी और के द्वारा शासन में तब्दील हो गया है. मेरा मानना है कि यह राजनीतिक व्यवस्था का संकट नहीं,बल्कि सामाजिक संकट है. खुद में सुधार लाकर हमें समाज को बदलना होगा.