केबिनेट में फेरबदल कहीं नाकामी का कबूलनामा तो नहीं?- अभिसार शर्मा

“अगर ऐसा है, तो ये कहीं न कहीं, मोदी सरकार का कबूलनामा माना जायेगा, के वह तीन साल में नाकाम साबित हुई है। क्योंकि ये तीनों मंत्रालय प्रधानमंत्री मोदी के सबसे महत्वाकांक्षी मंत्रालय थे।”

ये सामान्य कैबिनेट फेरबदल नहीं !!! इस सरकार में कुछ भी सामान्य हो कैसे सकता है? हर मौका जश्न, हर घटना एक पर्व। खबर ये मिल रही है के तीन मंत्रियों की या तो छुट्टी तय है, या फिर उनका मंत्रालय बदल दिया जाएगा। और वो तीन नाम हैं, स्किल डेवलपमेंट मंत्री राजीव प्रताप रूडी, गंगा सफाई और जल संसाधन मंत्री उमा भारती और रेल मंत्री सुरेश प्रभु।

अगर ऐसा है, तो ये कहीं न कहीं, मोदी सरकार का कबूलनामा माना जायेगा, के वह तीन साल में नाकाम साबित हुई है। क्योंकि ये तीनों मंत्रालय प्रधानमंत्री मोदी के सबसे महत्वाकांक्षी मंत्रालय थे।

और यह बदलाव तीन साल बाद? यानी के आपके कार्यकाल का आधे से ज़्यादा वक़्त निकल गया और अब आपको इन मंत्रालयों को चलाने वाले चेहरों पर एतबार नहीं रहा। रेल मंत्रालय की तो और भी “रेल” लगी हुई है। तीन सालों में दो मंत्री और हालात फिर भी नहीं सुधरे।

मोदीजी को काफी उम्मीदें थीं सुरेश प्रभु से। इन्हें बाकायदा शिव सेना से उठा कर(POACH) भी ली आये थे। मगर नतीजा आपके सामने है। खुद सुरेश प्रभु हताशा में अपने इस्तीफे की पेशकश कर चुके हैं। उनकी हालत उस मासूम बालक की तरह है, जो जंगल में फँस गया है, और उसको कुछ समझ नहीं आ रहा है…

अब बात करते हैं राजीव प्रताप रूडी की। स्किल इंडिया, प्रधानमंत्री मोदी का एक बड़ा नारा था। मगर हुआ क्या? सरकार की योजना थी के साल 2022 तक वह 500 मिलियन( पचास करोड़ ) लोगों को प्रशिक्षित करेगी। मगर कुछ ही दिनों पहले, इस साल सात जून को इसे तिलांजलि दे दी गई!

राजेश अग्रवाल, DG, और स्किल्स मिनिस्ट्री में संयुक्त सचिव का कहना था, के हम किसी आंकड़े का पीछा नहीं करना चाहते।

मंत्री राजीव प्रताप रुडी ने भी माना, “यह ज़रुरत के हिसाब से काम करेगी न के सप्लाई के हिसाब से।“

रूडी ने साफ़ कहा: मंत्रालय नौकरी देने पर नहीं बल्कि लोगों को प्रशिक्षण दे कर नौकरी-लायक बनाने पर ध्यान दे रहा है, लेकिन वो यह नहीं बताएँगे कि पिछले दो वर्षों में जिन 11.7 मिलयन लोगों को ट्रेनिंग दी गयी है उनमे से कितनों को नौकरी मिली!

ये क्या बात हुई भला। जिन्हें ट्रेन किया है, उनकी नौकरी का बात क्यों नहीं?

अब नमामि गंगे की बात करते हैं। मोदीजी के दिल की करीबी योजना। कम से कम वह तो यही कहते हैं। दिक्कत ये है, सब कुछ वही कहते हैं। ज़मीन पर उसके कोई प्रमाण नहीं है…

याद है न, “न तो मैं आया हूं और न ही मुझे भेजा गया है। दरअसल, मुझे तो मां गंगा ने यहां बुलाया है”

मगर माँ गंगा की सफाई की तरफ कोई सफलता मिलती नहीं दिख रही हैं।

कैच न्यूज़ के एक आर्टिकल ने पांच बातें कही हैं :

1. ‘स्वच्छ गंगा’ योजना को विफल क़रार देते हुए, राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को, वाराणसी में गंगा को साफ करने में विफल रहने के लिए, फटकार लगायी।

2. योजना का, सीवेज का नदी में गिरना अभी तक न रोक पाना; ऐसा कहीं खास कुछ हुआ नहीं नज़र आता जिससे लगे कि आसपास के शहरों से, गंगा में गिरने वाले 2700 मिलियन लिटर दूषित पानी, की रोकथाम हो रही है।

3. एक बड़ा अवरोध केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सामंजस्य नहीं होना है, गंगा अधिकतर जिन राज्यों से हो कर गुजरती है वहां विपक्ष की सरकार है। योजना १०० पूरी तरह केंद्र के अनुदान से है लेकिन स्थानीय विभागों के द्वारा चलाई जा रही है।

4. देश में कॉर्पोरेट घरानों ने सीएसआर के तहत परियोजना को वित्तीय सहायता देने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई है, आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार को 2014-15 में निजी कंपनियों से मिलने वाली फंडिंग में स्वच्छ भारत और नमामि गंगे को सबसे कम फंड मिला है।

5. सरकार नदियों को आपस में जोड़ने की योजना लागू करना चाहती है। हालांकि, पर्यावरणविदों का कहना है कि यह नदियों के प्राकृतिक पारिस्थितिकी में बाधा डाल सकता है।