केरल में निपाह वायरस का क़हर, अब तक कई लोगों की मौत!

केरल में जानलेवा वायरस निपाह का कहर टूट पड़ा है। इसके कारण अब तक कई लोगों के मौत की सूचना मिल चुकी है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जे पी नड्डा स्वास्थ्य सचिव के साथ रविवार को केरल के हालातों का जायजा लिया। आपको बता दें कि केरल में निपाह वायरस के फैलने से कई लोगों की मौत हो चुकी है।

नड्डा ने नेशनल सेंटर ऑफ डिजीज कंट्रोल के निदेशक को निर्देश दिया कि वे प्रभावित जिलों का दौरा कर आवश्यक कदम उठायें। रिपोर्ट के मुताबिक, केरल के कोझिकोड जिले में निपाह वायरस से अब तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है। बताया जाता है कि इस जानलेवा वायरस को कोई इलाज नहीं है, राज्य में इस वायरस के फैलने के बाद लोगों में आतंक व्याप्त है।

निपाह मेडिसल साइंस के लिए बडी़ चुनौती की तरह सामने आया है। मेडिकल विशेषज्ञों का मानना है कि निपाह वायरस के इंफेक्शन का खतरा इस कदर मंडरा रहा है कि इससे कभी भी महामारी फैलने का डर है।

यह मनुष्यों और जानवरों दोनों के लिए जानलेवा बन सकता है। जानकारी के मुताबिक पहली बार 1998 में मलेशिया के एक प्रांत कंपुंग से इसकी पहचान की गई थी।

निपाह वायरस जानवरों और इनसानों में नया उभरता हुआ एक गंभीर इंफेक्शन है। WHO की रिपोर्ट , के अनुसार निपा वायरस का उपहार टेरोपस जीनस नामक एक खास नसल के चमगादड़ से मिला है। उस समय इसके लक्षण सूअरों में देखने को मिले थे, 2004 में इंसानो में भी इसके लक्षण पाए गए ।

इस रोग के फैलने का तरीका भी नाटकीय है चमगादड़ जिस पेड़ पर रहते है उसके फलों को संक्रमित करते है जब उस फल को कोई जानवर या मनुषय खा लेता है तो उसको निपा वायरस की इंफेक्शन हो जाती है।

मनुष्यों में एनआईवी संक्रमण एन्सेफलाइटिस से जुड़ा हुआ है। इसमें मस्तिष्क की सूजन, बुखार, सिरदर्द, उनींदापन, विचलन, मानसिक भ्रम, कोमा जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। इनसे रोगी की मौत भी होने का खतरा बना रहता है। सीडीसी के मुताबिक, निपाह वायरस के रोगी 24-48 घंटों के भीतर कोमा में जा सकता है।

निपाह वायरस का अभी तक कोई सटीक उपचार नहीं खोजा गया है। लेकिन इसकी कुछ एलॉपथी दवाईयां है लेकिन वो भी अब तक कारगर सिद्ध नहीं हुई है।

ये एक संक्रामक बीमारी है जो एक से दूसरे तक फैलती है। ऐसे में सलाह दी जाती है कि प्रभावित इंसान, जानवर या चमगादड़ के संपर्क में ना आएं। साथ ही गिरे हुए फलों को खाने की भी सलाह नहीं दी जाती है। सावधानी ही बचाव है।