क्या कसूर है डाक्टर ज़ाकिर नाईक का ?

दरअसल हकीकत यह है कि यह देश संविधान से नहीं बल्कि देश की सत्ता पर काबिज़ लोगों की सोच और साजिश से चलता है।

सोचिएगा कि मात्र 2•5 साल में पाकिस्तान का भगोड़ा और कनाडियन नागरिक “तारेक फतेह” कैसे इस देश की मीडिया का चहेता बन गया और क्युँ बन गया , एक पाकिस्तानी और कनाडा के रहने वाले बत्तमीज़ इंसान का भारत में क्या काम ? मीडिया क्युँ कवरेज देता है उसे ? भारत का कौन सा हित उसके ज़हरीले बयानों से सधता है ? दरअसल यही है सच कि पूरी दुनिया से इस एक व्यक्ति को ढूँढ कर लाया गया और देश के मुसलमानों को उससे गालियाँ दिलवाई जा रही है और वह भी तब कि उसके तमाम बयान आ चुके हैं कि “वह भारत को 100 टुकड़े में देखना चाहता है”।

सोचिएगा कि ज़हर की हद क्या है कि भारत को 100 टुकड़े में विभाजित होने का सपना देखने वाला “तारेक फतेह” आज देश के ज़हरीले संगठन का मीडिया और सोशलमीडिया पर कैसे सबका “फूफा” बना हुआ है , और यदि मुसलमानों को और उनके धर्म को गाली दिलवाना मकसद नहीं तो फिर कौन सा मकसद है ? कौन सा देशहित है जो अपने देश के ना होने वाले से भारत का हित साधा जा रहा है ?

“ओसामा बिन लादेन” ने भारत की धरती पर एक चूँटी भी नहीं मारी , सद्दाम हुसैन हों या कर्नल गद्दाफी , ये दोनों भी सत्ता के शीर्ष पर रहते हुए पाकिस्तान से अधिक भारत के साथ रहे और भारत के शुभचिंतक रहे , सद्दाम हुसैन का भारत पर किए एहसान भारत कभी चुका भी नहीं सकता परन्तु अमेरिका के खिलाफ जिस जिसने लड़ाई लड़ी भारत ने उसे अपना दुश्मन मान लिया , अमेरिका ने जो कहा उसे भारत ने भी मान लिया , इसके बावजूद कि भारत कभी उनका घनिष्ठ मित्र ही क्युँ ना रहा हो , इसके बावजूद भी कि भारत के अपराधियों को अमेरिका ने कभी उस तरह दुश्मन नहीं माना जैसे भारत ने अमेरिका के दुश्मनों को अपना दुश्मन माना। गज़ब की विश्व शक्ति हैं हम। उदाहरण देखिए

9/11 का ट्विन टावर धराशायी होना पूरी दुनिया में आतंकवाद को लेकर बनी सोच को बदलाव करने वाली ऐसी घटना थी जिसने अमेरिका जैसे देशों को आतंकवाद का दर्द महसूस कराया। अगर किसी को याद हो तो 9/11 के पहले के अमेरिका की आतंकवाद के विरुद्ध कार्यवाही को याद कर ले और उन प्रतिक्रियाओं को याद करले जब पाकिस्तान के रोज़ रोज़ भारत में किए जाने वाले बम विस्फोटों के बाद अमेरिका ना सिर्फ़ चुप्पी साध लेता था बल्कि पाकिस्तान का साथ ही देता था और भारत बिलबिला कर रह जाता था।

भारत की उस समय की मजबूरियों का एहसास कीजिए तो आपको एहसास होगा कि ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका को कैसे आतंकवाद के दर्द का एहसास कराया और अमेरिका का आतंकवाद के प्रति सोच बदल दी।

दरअसल अमेरिका वह मतलबी और मक्कार देश है जिसका हर निर्णय दुनिया के लिए नहीं केवल और केवल अपने हित के लिए होता है , दुनिया और अन्य देश जाएँ भाड़ में , यदि अमेरिका का अपना हित सध रहा तो वह वही करेगा जो अमेरिका ने किया।

हालाँकि 9/11 के आतंकवादी हमले के बाद भी अमेरिका ने आतंकवाद के विरुद्ध कम बल्कि अपने वित्तीय हित के लिए अधिक कार्यवाही की परन्तु ओसामा बिन लादेन ने आतंकवाद के दर्द का एहसास अमेरिका समेत दुनिया के अन्य देशों को कराया जो भारत में होती आतंकवादी घटना पर मज़े लेते थे , फिर कहता हूँ कि 9/11 के पहले भारत पर लगातार होते आतंकवादी हमले पर यही सभी देश कान में रूई ठूस लेते थे।

भारत का व्यवहार देखिए कि जिस अमेरिका और उसके पिछलग्गू देश कभी भारत में पाकिस्तान द्वारा कराए गये आतंकवादी हमले पर चुप्पी साधने के साथ पाकिस्तान का साथ देते थे , उनके हित के साथ भारत अपने मित्र देशों और मित्र शासकों के विरुद्ध खड़ा हो गया और अमेरिका और उनके पिछलग्गू देशों की हाँ में हाँ मिलाने लगा। सद्दाम हुसैन , कर्नल गद्दाफी , हुस्ने मुबारक जैसे दोस्तों के विरुद्ध भारत का अमेरिका की बोली बोलना उनके साथ किया विश्वासघात ही है। ध्यान दीजिए कि कर्नल गद्दाफी , सद्दाम हुसैन और हुस्ने मुबारक ने काश्मीर पर सदैव भारत के पक्ष का साथ दिया परन्तु भारत उनके बुरे दौर में उनके ही विरुद्ध हो गया।

9/11 का जब हमला हुआ तो मैं स्वयं खुशी से उछल पड़ा था क्युँकि मेरे अपने देश के दर्द को अमेरिका अब एहसास करेगा , निर्दोष बेगुनाह मरने वालों के लिए संवेदना होते हुए भी यह खुशी थी कि अब अमेरिका पाकिस्तान के भारत में किए जाने वाले आतंकवादी घटनाओं पर शायद ही पाकिस्तान का साथ दे , और वैसा ही हुआ।

डाक्टर ज़ाकिर नायक ने भी ओसामा बिन लादेन के लिए जो शब्द कहे वह भी 9/11 से 7-8 वर्ष पहले के हैं , और जिस ओसामा बिन लादेन ने भारत के विरुद्ध कभी एक बयान तक नहीं दिया हो उसके लिए हम अमेरिकी चमचागिरी के लिए क्युँ अमेरिका की भाषा बोलने लगते हैं। क्या भारत केवल अपने हित के लिए ही अपनी सोच और निर्णय नहीं ले सकता ? भारत का अपराधी अज़हर मसूद है , भारत का अपराधी हाफिज़ सईद है , भारत का अपराधी दाऊद इब्राहीम हो सकता है परन्तु ओसामा बिन लादेन तो कभी नहीं हो सकता , उसके नाम एक थप्पड़ मारने के भी कहीं कोई एफआईआर में भारत हो तो आप ज़रूर कह सकते हैं , इसी को कहते हैं “बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवाना” हद है अमेरिकी चमचागिरी की , अरे पाकिस्तान से ही सीख लो जिसने अमेरिका की 60 साल चमचागिरी की और अब उसे एहसास हो गया तो वह चीन की गोदी में बैठ गया , और हम उसी अमेरिका की गोद में बैठने के लिए उसकी चमचागिरी कर रहे हैं।

ओसामा बिन लादेन एक खूँखार आतंकवादी था परन्तु वह अपराधी अमेरिका का था और अमेरिका की चमचागिरी करने के चक्कर में भारत ने उसे अपना अपराधी भी मान लिया , ओसामा बिन लादेन भारत के लिए कभी आतंकवादी नहीं रहा है।

9/11 के 8 साल पहले ओसामा बिन लादेन को दुनिया भी आतंकवादी नहीं मानती थी तो डाक्टर ज़ाकिर नाइक के विरुद्ध कुछ ना मिला तो उनके 25 वर्ष पूर्व के बयान को आज के लिए गलत मान कर एफआईआर दर्ज करना और उनके एनजीओ पर प्रतिबंध लगाना और कुछ नहीं बल्कि उसी मानसिकता का एक परिणाम है जो “तारेक फतेह” को ढूँढ कर अपना फूफा बना लेता है।

सवाल यह है कि जो व्यक्ति भारत के संवैधानिक क्षेत्र में कभी एक चूँटी भी ना मारा हो उसके लिए 25 वर्ष पहले कहे गये कोई शब्द डाक्टर ज़ाकिर नाइक के लिए भारतीय दंड संहिता में किस धारा के अंतर्गत लिए जाएंगे ?

इसी लिए कहा कि यह देश संविधान से नहीं सत्ताधारी की सोच से चलता है , संविधान तो केवल गरीब लोगों के लिए है।

यहाँ डाक्टर ज़ाकिर नाईक से किसी का वैचारिक विरोध हो सकता है परन्तु फिलहाल यहाँ मुद्दा उन पर हुआ एफआईआर और उनकी संस्था पर लगा प्रतिबंध है ना कि वह वैचारिक मतभेद।

(मोहम्मद ज़ाहिद की फेसबुक वॉल से)