ख़वातीन मैं ख़ुद मुकतफ़ी का जज़बा

नुमाइंदा ख़ुसूसी-अल्लाह उस क़ौम की हालत नहीं बदलता जो ख़ुद अपनी हालत बदलने की फ़िक्र नहीं करती । तक़दीर की ग़लत ताबीर कर के हाथ पर हाथ रखे बैठी रहती है जब तक हाथ पैर ना मारे जाएं कोशिश और मेहनत ,ओ-मशक़्क़त ना की जाय । तब तक तक़दीर भी कुछ काम नहीं करती , हाथ पर हाथ रख कर तक़दीर नहीं जानी जाती बल्कि जद्द-ओ-जहद के ज़रीया इस का नतीजा निकाला जाता है । इस ख़सूस में मर्दों के साथ साथ ख़वातीन ने भी अच्छे किरदार अदा किये हैं । उन्हों ने अपने नाज़ुक कंधों पर घर की ज़िम्मा दारियां उठा कर उलुल अज़मी और आला हिम्मती के साथ उन को पूरा करने की भरपूर कोशिश की है ।

बहुत सी ख़वातीन शहर में मौजूद फैक्ट्रियों से काम ला कर घर में करती हैं और अच्छी ख़ासी आमदनी हासिल कर लेती हैं एक तरफ़ घर की ज़िम्मा दारियां भी पूरी करती हैं तो दूसरी तरफ़ हिजाब का मुकम्मल लिहाज़-ओ-ख़्याल करती हैं । जेडी मेटला , कांटे दान , गगन पहाड़ , उप्पल , बाला नगर, चरला परली और क़तूर में इसी फैक्ट्रियां हैं जहां प्लास्टिक तय्यार होता है और 95 फीसद फैक्ट्रियां मारवाड़ियों की हैं । इन से ब्योपारी हज़रात प्लास्टिक खरीद कर लाते हैं बहुत सारे ब्योपारी इलेक्शन , ईद मीलाद उन्नबी(सल.) और दीगर मवाक़े पर झंडियों का आर्डर लेते हैं जिन्हें Bunting कहा जाता है । ख़वातीनअपने घर लाकर ये झंडियां सेती हैं , जिन के पास सिलाई मशीन नहीं होती ।

ब्योपारी उन के लिए मशीन भी फ़राहम करता है जो कुछ दिनों के बाद इस ख़ातून की होजाती है ।ख़वातीन इस काम में 150 , 200 रुपय कमालीती हैं । जिस से अच्छा ख़ासा तआवुन होजाता है और उन के घरों में ख़ुशहाली आने लगती है । माला दोपल्ली करीब कांटे दान के रहने वाले एक ब्योपारी अबदालमक़ेत से हम ने मुलाक़ात की । उन्हों ने बताया कि हैदराबाद की अक्सर सयासी जमातों की झंडियों का काम में लेता हूँ और बैरून रियासत के इलेक्शन के मौक़ा पर भी आर्डर वसूल करता हूँ और ख़वातीन से झंडियां तय्यार करवा करदीगर रियासतों में भेज देता हूँ । इलेक्शन के मौक़ा पर काम अच्छा चलता है ।

और ईद मीलाद उन्नबी(सल.) की मुनासबत से तो काम कई गुना बढ़ जाता है । साल गुज़श्तामीलाद उन्नबी के मौक़ा पर 30 लाख का काम हुआ था । झंडियां तय्यार करवा के हम चारमीनार और पुरानी हवेली मार्किट भेज देते हैं जहां से लोगों के हाथों में पहुंच जाती हैं । मेरे यहां से तक़रीबा 200 ख़वातीन काम ले जाती हैं जिन में अक्सरियत मुस्लिम की है । जब कि कुछ गैर मुस्लिम ख़वातीन भी हैं । इस काम से जुड़ी कुछ ख़वातीन से भी हम मिले जिन में एक 4 साल से काम कररही आमना नाम की 50 साला ख़ातून हैं । उन के शौहर आटो ड्राईवर हैं जिन के 3 बेटे हैं , एक हिफ़्ज़ करता है ।

दूसरा असरी तालीम हासिल करता है ये अपने घर में एक किराने की दूकान भी चलाती हैं । इन का कहना है कि ये मेरी ज़ाती मशीन है । मुसलसल 6 घंटे काम कर के झंडियां तय्यार करती हूँ । रोज़ाना का हिसाब मिल जाता है । इलेक्शन के मौक़ा पर काम अच्छा होता है । ईद मीलाद उन्नबी के मौक़ा पर और भी अच्छा , रोज़ाना 150 , 200 रुपय कमालीती हूँ । साबरा नामी एक और ख़ातून ने बताया कि मेरे शौहर लेबर हैं । मेरी चार बेटियां हैं । एक माज़ूर है इस काम से हमारे घर में बहुत सहूलत होगई है ।

आसानी से ख़र्च चल जाता है । महंगाई के इस दौर में किसी एक की कमाई पर इन्हिसार नहीं किया जा सकता । क़ारईन ! क्या ये ख़वातीन इन निकम्मे नौजवानों के मुंह पर ज़ोरदार तमांचा नहीं हैं जो बे रोज़गार घरों के चबूतरे पर बैठ कर अपने औक़ात ज़ाए करते हैं । माँ बाप पर बोझ बने रहते हैं । इन ख़वातीन से सबक़ हासिल करना चाहीए ।।