खुदाबख्श लाइब्रेरी नज़र अंदाज़

पूरी दुनिया में मशहूर खुदाबख्श लाइब्रेरी का ज़िक्र देहली में मुनक्कीद किताब मेले में नहीं है। जिस से आने वाले किताब शाएकीन काफी मयूश हैं। लेकिन मुंतज़िमीन ने अपनी गलती का इज़हार करते हुये अफसोस का इज़हार किया है। प्रगती मैदान में देहली किताब मेला 2013 मेन इस साल के एंकाद की थीम लाइब्रेरी और कारी है। इसे हिंदुस्तान के पुराने लाइब्रेरियों पर एक नुमाइश का भी एंकाद किया गया है।

लेकिन इस अहम लाइब्रेरी का नाम ही नहीं है। खुदा बख्स लाइब्रेरी की गैर मौजूदगी साफ झलक रही है। कोलकाता की क़ौमी लाइब्रेरी, उत्तर प्रदेश के राम रज़ा लाइब्रेरी और यहाँ तक के भुवनेश्वर और हैदराबाद की छोटी लाइब्रेरीयों को भी इस मेले मे जगह मिली है। लेकिन खुदा बख्स लाइब्रेरी का कहीं तज़किरह नहीं है। विपिन जेटली ने कहा के सिर्फ मुंतज़मीन की गलती या भूल नहीं है बालके कलेक्शन लिस्ट की ही खामी है। मौलवी खुदा बख्स खान ने विरासत में बीसवीं सदी के आखिर में वहाँ इस का क़याम किया था। पटना 1891 में खुदा बख्स और निटल पब्लिक लाइब्रेरी की शुरुआत हुई।

हुकूमते हिंदुस्तान ने 1969 में इसे क़ौमी अहमियत का आदरा करार दिया गया। मख्तुतात और किताबों के इस बड़े कलेक्शन वाले बड़े लाइब्रेरी में मुल्क व बयरून मुल्क की मारूफ़ शख्सियत और दानिश्वरान आ चुके हैं। मिस्टर जेटली ने कहा के हिंदुस्तान में कोई लाइब्रेरी का नुमाइश कर रहा हो और खुदा बख्स लाइब्रेरी को कैसे भूल सकता है? ये हम हिदुस्तानियों के लिए तशवीश की बात है। इस में प्रूफ रीडर की गलती है। इस पर रद्दो अमल ज़हीर करते हुये मुंतजेमीन ने कहा के जगह और वक़्त की कमाई की वजह से ऐसा हुआ