गरीबों बच्चों के लिए मंदिर मे बना स्कूल , सबसे ज्यादा मुस्लिम बच्चे

Times of india
Times of india

सांप्रदायिक तौर पर संवेदनशील माने जाने वाले आगरा में आपसी भाईचारे की मिसाल पेश करते हुए एक मंदिर ने गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए अपने दरवाजे खोल दिए। सितंबर 2015 में इस मंदिर ने सभी धर्मों और समुदायों के गरीब बच्चों को शिक्षा देने की शुरुआत की थी। आज यहां पढ़ रहे 70 फीसद से अधिक छात्र हिंदू समुदाय के हैं।

‘मेरी पाठशाला’ नाम के इस स्कूल को बाग मुजफ्फर खान स्थित पठवारी मंदिर चलाता है। अभी यहां 47 छात्र पढ़ते हैं। इनकी पढ़ाई का खर्च 5 युवा उठाते हैं। ये सभी युवा हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। रविवार सुबह इस स्कूल को देखना अपने आप में एक अलग अनुभव था। 5 से 15 साल के बीच के लगभग 40 बच्चे साथ मिलकर प्रार्थना कर रहे थे। इनमें हिजाब पहने कई मुस्लिम बच्चियां भी शामिल थीं। इस प्रार्थना के बाद राष्ट्रीय गान गाया गया।

हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच आमतौर पर पसरी कड़वाहट से बेखबर ये बच्चे मंदिर परिसर के अंदर बने स्कूल में रोजाना एक साथ 3 से 4 घंटे गुजारते हैं। उनके बीच ना तो किसी तरह का भेदभाव नजर आता है और ना ही जरा सा भी मनमुटाव ही दिखता है। इस स्कूल को साकार करने वाले पांचों नाम पिंटू प्रतीक करदम, कपिल चौधरी, जितेंद्र सिंह, नीतेश अग्रवाल और नेहा आयसवाल खुद भी नौकरीपेशा हैं। एक स्थानीय स्कूल में शिक्षक करदम बताते हैं, ‘हर दिन मैं इस इलाके के इन बच्चों को देखा करता था। ये स्कूल नहीं जाते थे और गलियों में दिनभर बेमतलब समय बर्बाद किया करते थे। मुझे लगा कि इन्हें शिक्षित करना मेरा कर्तव्य है। हम उन्हें इतना तो सिखा देना चाहते थे कि वे सही और गलत का फर्क समझना सीख जाएं। मैंने इस योजना के बारे में अपने कुछ दोस्तों से बात की।’

चौधरी और सिंह निजी कंपनियों में काम करते हैं, वहीं अग्रवाल दवा के थोक कारोबारी हैं। नेहा एक गृहिणी हैं। वह खुद भी एमए हैं। इन सब लोगों के राजी होने के बाद ‘अपनी पाठशाला’ का सपना साकार हुआ। करदम बताते हैं, ‘जब हमने स्कूल शुरू किया, तो हमने कभी सोचा नहीं था कि मुस्लिम समुदाय के बच्चे भी पढ़ाई के लिए एक मंदिर में आना शुरू कर देंगे। हम हमारे पास पढ़ने वाले बच्चों में 33 मुस्लिम हैं। उनके अभिभावक रोज उन्हें यहां छोड़कर जाते हैं। उन्हें इस स्कूल के मंदिर के अंदर चलाए जाने से भी कोई शिकायत नहीं है।’

इस स्कूल में हर दिन सुबह 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक पढ़ाई होती है। करदम का कहना है कि वह बच्चों को प्राथमिक स्तर की शिक्षा देना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों को पढ़ना, लिखना और अंकगणित सिखाया जाता है। इनमें से जो बच्चे पढ़ाई में होशियार होते हैं, उन्हें मुक्त विद्यालय या इस तरह के माध्यमों द्वारा बोर्ड परीक्षा देने के लिए भी तैयार किया जाता है। नेहा यहां रोजाना पढ़ाने के लिए आती हैं। वह बताती हैं कि शुरुआत में कुछ मुस्लिम परिवारों को मंदिर के अंदर अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए भेजने में जरूर हिचक हुई, लेकिन जब उन्होंने बाकी बच्चों को यहां आते देखा, तो उनका संकोच खत्म हो गया।

10 साल की नौशीन पिछले कुछ महीनों से यहां पढ़ रही है। वह कहती है, ‘मुझे अपने दोस्तों के साथ यहां पढ़ने में बहुत खुशी होती है। हम हर रोज कई नई चीजें सीखते हैं।’ नौशीन का कहना है कि उसे दोस्तों के साथ मिलकर अपना जन्मदिन और सारे त्योहार मनाना बहुत अच्छा लगता है। तमन्ना के परिवार की भी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे उसे किसी और स्कूल में भेज सकें। तमन्ना का कहना है कि उसे रोज स्कूल आने का इंतजार रहता है। वह कहती है, ‘पढ़ाई-लिखाई मेरे लिए बहुत मायने रखता है।’ उसका सपना बड़े होकर खुद भी एक शिक्षिका बनने का है।
NBT