गुजरात के दौरे पर वाजपाई का ज़हनी तहफ़्फ़ुज़: अबदुल कलाम

नई दिल्ली गुजरात 2002 फ़सादाद के बाद उस वक़्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपाई एसा लगता था कि राष्ट्रपती डाक्टर ए पी जे अबदुकलाम के पिडीत‌ इलाक़ों में सरकारी दौरे के लिए आमादा नहीं थे। डाक्टर अबदुलकलाम की बहुत जल्द‌ जारी की जाने वाली किताब टर्निंग प्वाईंटस में उन्हों ने ये इन्किशाफ़ किया।

उन्हों ने कहाकि वज़ारती और ब्यूरोक्रेसी सतह पर भी गोधरा फ़सादाद के बाद‌ उन के दौरा गुजरात की मुख़ालिफ़त की जा रही थी। इन फ़सादाद में 1200 लोग‌ हलाक होगए जिन में जयादा तादाद‌ मुस्लमानों की थी। पुर्व राष्ट्रपती ने पुरानी याद ताज़ा करते हुए कहाकि उन्हों ने गुजरात दौरे का फ़ैसला कर लिया क्योंकि ये उन का मिशन था कि जो कुछ होचुका उसे ना देखा जाए , जो कुछ होरहा है उसे ना देखा जाए बल्कि जो कुछ किया जाना चाहीए इस पर तवज्जा दी जाए।

इस वक़्त वज़ारती और ब्यूरोक्रेसी सतह पर ये तजवीज़ दी गई कि एसे मरहला पर उन्हें गुजरात नहीं जाना चाहीए। इस की एक अहम वजह सियासी भी थी लेकिन वो अपना ज़हन बना चुके थे। चुनांचे राष्ट्रपति भवन ने राष्ट्रपती कि हैसीयत से उन के पहले दौरे की तैयारीयां तेज़ी से शुरू करदी।

इस वक़्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपाई ने इन से सिर्फ एक ही सवाल पूछा क्या आप समझते हैं कि इस वक़्त गुजरात का दौरा बहुत जरुरी है? डाक्टर अबदुलकलाम ने प्रधानमंत्री को बताया कि इन के ख़्याल में ये एक अहम ज़िम्मेदारी है जिस के ज़रीये वो तकलीफ़ और दुख को किसी क़दर दूर कर सकते हैं, इस के इलावा राहत कारी कामों में तैजी पैदा होसकती है, इस के साथ साथ ज़हनों में एक्ता भी होगी जो इन का मिशन है और उन्हों ने शपथ सम्मेलन‌ में यही बात कही थी।