गैर आबाद मसाजिद को आबाद करने तहरीक की शक्ल देना वक़्त की अहम ज़रूरत

नुमाइंदा ख़ुसूसी- मस्जिद चूँ कि अल्लाह ताला का दरबार है । लिहाज़ा उस की हर तरह से आबाद कारी और हर मुस्लमान का दीनी फ़रीज़ा है । इस्लाम का ये हुक्म कि जब किसी जगह एक बार मस्जिद तामीर होजाती है तो वो जगह क़यामत तक के लिए मस्जिद ही रहती है । इस का मतलब यही है कि क़यामत तक वहां अज़ान गूंजती रहे । नमाज़ क़ायम होती रहे ।

हमारे अस्लाफ़ ने पूरे शहर हैदराबाद और इस से मुल्हिक़ा इलाक़ों को बारगाह इलहीसे आरास्ता करने के लिए मसाजिद का एक ख़ुशनुमा जाल बिछाया था । लेकिन बदक़िस्मती से हम से नियाबत और विरासत का हक़ अदा ना होसका । जिस की वजह से सैंकड़ों मसाजिद गैर आबाद होगईं । 2011 -के अवाख़िर से रोज़नामा सियासत ने गैर आबाद मसाजिद को तसावीर के साथ वक़्फ़ तफ़सीलात मंज़रे आम पर लाने का एक तवील सिलसिला शुरू किया था जिस के ज़रीया 100 गैर आबाद मसाजिद को मंज़रे आम पर लाया गया ।

इसी कालम में मस्जिद सूफ़ी को भी दिसंबर 2011 में वक़्फ़ तफ़सीलात के साथ शाय किया गया था । ये मस्जिद हुसेन सागर कटा के करीब वाक़ै है महात्मा गांधी रोड , बूट्स कलब , जेम्स स्टरीट पर हज़रत सय्यद शाह अबदुल क़ादिर मुहद्दिस देहलवी (र) की क़दीम दरगाह शरीफ है जिस की हदूद में एक क़ब्रिस्तान और एक मस्जिद भी है जो मस्जिद सूफ़ी के नाम से शौहरत रखती है । क़ुतुब शाही तर्ज़ तामीर की इस मस्जिद की तीन कमानें हैं जो बहुत ही ख़ूबसूरत हैं ।

दरगाह शरीफ के मुतवल्ली-ओ-सज्जादा नशीन सदर-ओ-क़ाज़ी सिकंदराबाद क़ाज़ी सय्यद शाह नूर उल असफ़या-ए-सूफ़ी ने इस मस्जिद को जो निहायत ख़सताहाल थी और नमाज़ के बिलकुल क़ाबिल नहीं थी शख़्सी दिलचस्पी लेकर मुकम्मल मुरम्मत कराई , छत डलवाई, नीज़ फ़र्श दरुस्त करवाया जिस के बाद अल्हम्दुलिल्ला मस्जिद ख़ूबसूरत और आबाद होचुकी है । अज़ान-ओ-नमाज़ का एहतिमाम भी जारी होचुका है ।

इस मस्जिद में दाख़िल होने के दो रास्ते हैं एक दरगाह शरीफ की तरफ़ निकलता है और दूसरा रास्ता मेन रोड , मेरएट होटल , हुसेन सागर कटा के बिलकुल सामने से है । दोनों ही रास्ते अवामी सहूलत के पेश नज़र खोल दिए गए हैं । मस्जिद की आबाद कारी से क़बल और बाद की दोनों तसावीर बग़रज़ मुताला क़ारईन शाय की जा रही हैं जिस से आबाद करने वाले अल्लाह के नेक बंदे की मेहनत लगन , इख़लास और दीनी जज़बा-ओ-शौक़ का बह आसानी अंदाज़ा लगाया जा सकता है ।

वाज़ेह रहे कि मज़कूरा दरगाह और मस्जिद दर्ज वक़्फ़ है । वक़्फ़ बोर्ड में इस का मुकम्मल रेकॉर्ड मौजूद है । इस की वक़्फ़ तफ़सीलात हसब ज़ैल हैं : Hyd/2900 रकबा 7260 मुरब्बा गज़ , 6/A2604 , मौरर्ख़ा 09-06-1989 सफ़ा 151 , इस दरगाह शरीफ का सालाना उर्स भी बड़े धूम धाम से होता है । इस का 170 वां उर्स पिछली 26 ज़ी अलहजा को मनाया गया था । अख़बार सियासत की मुसलसल कोशिशों से मिल्लत इस्लामीया के अंदर गैर आबाद मसाजिद की आबाद कारी के हवाले से बेदारी जागी है ।

जिस के नतीजा में अल्हम्दुलिल्ला अब तक कई मसाजिद आबाद होचुकी हैं और कई एक में तेज़ी से आबादकारी का अमल जारी है । इंशाअल्लाह वक्तन फ़ौक़तन उन्हें भी मंज़रे आम पर लाया जाएगा । ताहम उसे एक तहरीक की शक्ल देना वक़्त का अहम तक़ाज़ा है और इस हवाले से मौजूदा सरगर्मियों को और रीढ़ लगाने की बहुत शदीद ज़रूरत है । युं तो गैर आबाद मसाजिद को आबाद करना हर मुस्लमान देनी और मिली फ़रीज़ा है ,

क्यों मसाजिद शाइर इस्लाम में से है और अल्लाह ताला ने क़ुरआन करीम में सराहतन इरशाद फ़रमाया है कि मसाजिद को आबाद करने वाले वही हैं जो अल्लाह पर और क़यामत पर यक़ीन रखता हो । नीज़ हुज़ूर पाक ई ने उसे आदमी के मुत्तक़ी और इंसाफ़ पसंद होने की शहादत दी है जो मसाजिद की दे

ख रेख करता हो , इरशाद बारी और क़ौल गिरामी महबूब ख़ुदा की रोशनी में वाज़ेह है कि मसाजिद की आबादकारी हर मुस्लमान की ज़िम्मेदारी है ताहम मस्जिद के पड़ोस में रहने वाले मुस्लमानों की ज़िम्मेदारी दोगुनी होती है कि वो अपने मुहल्ला की मस्जिद का ख़्याल रखें । इस पस-ए-मंज़र में मस्जिद के पड़ोसियों को जुरात मंदाना इक़दाम करते हुए आगे आना ही है । क़बल अज़ वक़्त ख़ाइफ़ होने की ज़रूरत नहीं , पूरा इलाक़ा आप के तआवुन के लिए मुंतज़िर बैठा है । सिर्फ क़दम बढ़ाने कीताख़ीर है । जिस की कई मिसालें पेश आचुकी हैं ।।