छात्र राजनीति से क्यूँ डरती हैं सरकारें?- ज्योति राय

देश के एक प्रतिष्ठित मंत्री ने बात कही ,की छात्रों को राजनीति नहीं करनी चाहिए तभी से मीडिया सोशल मीडिया ने हर जगह ये बहस चलाना शुरू कर दिया की ,छात्रों को राजनीति से जुड़ने चाहिए की नहीं और एक मत तैयार करने का प्रयास किया ,छात्र राजनीती करे या न करे ये अत्यंत ही गंभीर प्रश्न है आम तौर पर कहा जाता है की छात्र विश्वविद्यालय में पढने जाते है राजनीति करने नहीं, और समाज के आम तबके में इस बात को लेकर सहमती भी है | लेकिन हम अगर दूसरी तरफ नज़र घुमा कर देखें तो ये बात केवल छात्रों के साथ नहीं, बस चालक या फिर कही किसी चौराहे पर ठेला लगाने वाले के साथ या किसी दफ्तर जाने वाले व्यक्ति के साथ भी है| इन सभी लोगो को समझाया जाता है की राजनीती करना या उसमे पड़ना ठीक नहीं है जैसे राजनीति करने से घ्रणित कार्य कोई नहीं है यह बात हर उस वर्ग के व्यक्ति से कही जाती है जो कही न कहीं से असंतुष्ट है |ये मुहीम आखिर है क्या ?जिसके मातहत ये सारे भ्रम फैलाये जाते है , और ये बाते कौन तय कर रहा है की राजनीति कौन करेगा ? कौन पढ़ेगा ?कौन क्या करेगा ? एक बात हमें समझनी चाहिए की लोकतंत्र जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता का शासन है | ये बात कहने वालो से ये प्रश्न है की जनता की भूमिका के तौर पर ये लोग किन लोगो को देखते है | क्या आम छात्र- नव जवान या, मजदूर -किसान या, कर्मचारी को जनता नहीं मानते तो ये जनता किसको मानते है तो फिर यदि जनता के तौर पर राजनीति में बस चालक , ठेले वाला , या फिर छात्र -नवजवान अपनी भूमिका नहीं अदा करेगा तो कौन करेगा क्या छात्र का काम केवल विश्वविद्यालय आना जाना है या आम आदमी का काम अपने लिए दो वख्त की रोटी जुटाना ही होना चाहिए ? लोकतंत्र में यदि प्रतिनिधि हम चुनते है तो हमारा जन प्रतिनिधि क्या कर रहा है इसकी जानकारी रखने के लिए जनता कहा से आएगी|
कुछ आम छात्र इसके पक्ष में है की छात्रों को राजनीति नहीं करनी चाहिए ,राजनीती करना उनका काम नहीं है| लेकिन जब सवाल देश का हो तो छात्र केवल छात्र नहीं रह जाता इसकी आपनी नागरिक की की भूमिका बनती है |अगर वो अपनी नागरिक होने की भूमिका को नहीं समझता और राजनीतिक पेचीदगियों को नहीं समझना चाहता तो मैं समझता हूँ ,की वो छात्र भी नहीं है और उसने विश्वविद्यालय को भी नहीं समझा | विश्वविद्यालय को राजनीति की नर्सरी क्यों कहा गया क्या इसका कोई तात्पर्य और प्रासंगिकता नहीं है | अमर शहीद भगत सिंह भी छात्र थे उन्होंने अपनी अल्पायु में ही देश की गंभीर राजनैतिक चुनौतियों को समझा और अपने विचार दिए और युवा क्रांतिकारी विचारों से अवगत कराया |उन्होंने अंग्रेजो के विरुद्ध लोहा लिया और और अपने विचारो के लिए फाँसी की सज़ा को हंसते -हंसते स्वीकार कर लिया |अब आप कहेंगे उनकी बात और है या वगैरह -वगैरह लेकिन बात साफ़ है ,जब आप राजनीती से ही दूर भाग गए तो आप समस्या पैदा करने की जड़ के हिस्सा है| जब आप अपने छोटे -मोटे सवालों पर नहीं लड़ सकते तो आप देश के लिए क्या लड़ेंगे , हाँ आप फेसबुक और वाट्स एप पर देश भक्ति साबित करने में नहीं चूकेंगे , ये तो तय है | खैर बातें बहुत है लेकिन मैं आपका ध्यान कुछ मुख्या बातो पर आकर्षित करना चाहूँगा , क्योंकि छात्र राजनीति कोई नई प्रक्रिया नहीं है बल्कि इसकी विश्व राजनीति में एक भूमिका रही है छात्रों ने पूरी दुनिया को एक नया और क्रातिकारी मोड़ दिया है | अगर आप छात्रों के आन्दोलनों का इतिहास खंघालेंगे तो पाएंगे की दुनिया भर में चाहे वो अमेरिका हो या युगोस्लाविया, चाइना हो या जापान ,फ्रांस हो या युक्रेन ,जर्मनी हो या फिर हंगेरी जगह -जगह सरकारें इनके आगे झुकी हैं | उदहारण के तौर पर देखा जाये तो तुर्की में अदनाम मेंदिरिज की सरकार के पतन में छात्रों की मुख्या भूमिका थी |या भारत की बात करें तो जे० पी ० मूवमेंट छात्रों का ही आन्दोलन था ,जिसकी वजह से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की सरकार गिर गयी |
आखिर सरकारों को छात्रों की राजनीती से इतना डर क्यों है इसका कारण है |आम छात्र कभी भी मौका परस्त नहीं होता है |वो सदैव इमानदारी और व्यवस्था परिवर्तन की राजनीति के प्रति अपना एक स्वतंत्र दृष्टीकोण रखता है ,तथा खुले विचारो के साथ पुराने रूढ़िवादी विचारो को नकारते चलता है | इससे सबसे ज्यादा समस्या उन लोगो को होती है जो व्यवस्था में स्थापित रहते है वे नहीं चाहते की समाज में स्थापित आयामों को नयी तर्कों की कसौटी पर कसा जाये | जो की युवा और छात्र की मानसिकता के बिल्कुल विपरीत है |
भारतीय राजनीति तथा आंदोलनों में छात्रों की बड़ी भूमिका रही है | भारतीय राजनीतिक व्यवस्था ने कई ऐसे नेता दिए जो विभिन्न छात्र आंदोलनों की उपज रहे हैं | 1960 का बिहार आन्दोलन हो या 1969 का तेलंगाना आन्दोलन , जे० पी० आन्दोलन हो या असम आन्दोलन हो |इन सभी आंदोलनों ने भारत में ये बार -बार साबित किया है कि छात्रों की राजनीति में बड़ी भूमिका है जिसके परिणाम स्वरुप भारत में स्थापित राजनीतिक दलों ने इसे तोड़ने में व्यापक भूमिका निभाई तथा विश्वविद्यालयों में गुंडों का प्रवेश कराया और अपनी मोनोपोली तैयार की बदलते राजनीतिक दौर में जब देश की आर्थिक नीतियाँ बदल रही थी तो जाति और धर्म की राजनीती को स्थापित करने के लिए ये अत्यंत आवश्यक था , की बौद्धिक ताकतों को समाप्त किया जाये तथा युवा वर्ग का ध्यान राजनीतिक बहसों से हटा कर उनके आजीविका के सवालों पर केन्द्रित कर दिया जाए ,और उन्हें एक आज्ञाकारी वर्ग के रूप तैयार किया जाये तथा विश्वविद्यालय तथा चेतन शील वर्ग से बौद्धिक विमर्श को समाप्त किया जा सके |ताकि सरकारे मनमाने तरीके से नीतियाँ बनाये तो उनसे कोई कुछ पूछने वाला न हो |
परन्तु ये सरकारें इस बात को भूल जाती है की जब किसी राजनैतिक व्यवस्था में युवा तथा बौद्धिक विमर्श को स्थान नहीं दिया जाता उसकी सोच और समझ से अवगत होकर समय -समय पर उसकी सोच से जुड़ने का कार्य नहीं किया जाता ,तो वह राजनीतिक व्यवस्था एक तालाब के पानी की तरह हो जाती है | जिस तरह तालाब के पानी में धारा के आभाव के कारण पानी सड़ जाता है उसी तरह राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था भी सड़ जाती है और बदबू करने लगती है| और समाज में तमाम रोग पैदा हो जाते है लूट, भ्रष्टाचार ,असंतोष आदि | जो समय -समय पर बड़े सामाजिक और राजनैतिक तौर पर बड़े बदलावों की मांग करते है सामाजिक और राजनैतिक तौर पर स्वस्थ युवा विमर्श को राजनीती में स्थान देने से राजनीतिक व्यवस्था नदी की तरह स्वछ और प्रवाहमान रहती है जो की कभी राजनीति को सड़ने नहीं देती| यदि हमें एक स्वस्थ समाज को बनाये रखना है जहाँ किसी के लिए घुटन न हो तो हमें अपनी राजनीतिक बहसों को युवा और छात्र राजनीति से जोड़ना होगा |

ज्योति राय
ज्योति राय

ज्योति राय
(लेखक एक छात्र नेता हैं और लखनऊ यूनिवर्सिटी में एम्ए-पाश्चात्य इतिहास की पढ़ाई कर रहे हैं)