जंगल में रिहायश, मुहाजिरीन मायूसी और ख़ौफ़ का शिकार

शाम से हिज्रत करते वक़्त अब्दुल्लाह वाइज़ ने यूरोपीय मुल्क स्वीडन में एक नई, पुर सुकून ज़िंदगी का ख़ाब देखा था, लेकिन आज स्वीडन के एक घने जंगल में रहते हुए वो इस नतीजे पर पहुंचा है कि यूरोप में उस का कोई मुस्तक़बिल नहीं।

अब्दुल्लाह वाइज़ को जब दीगर पनाह गुज़ीनों के हमराह स्टाक होम से तक़रीबन चार सौ किलोमीटर शुमाल मग़रिब की तरफ़ वाक़े गांव लीमैड्स फ़ोरसन के क़रीब घने जंगल में क़ायम लकड़ी के छोटे छोटे मकानात या कीबज़ में लाया गया, तो ये सब हैरान रह गए।

चंद पनाह गुज़ीनों ने तो फ़ौरी तौर पर समझौता कर लिया और उन मकानात में रिहायश अख़तियार कर ली ताहम कुछ ने एहतेजाज के तौर पर कीबज़ में रहने से इनकार कर दिया। इमीग्रेशन अमले के अरकान वाइज़ समेत 53 पनाह गुज़ीनों को इस मुक़ाम पर बसों के ज़रीये पिछले इतवार के रोज़ लाए थे।

एहतेजाज करने वाले और रिहायश के किसी मुतबादिल बंदोबस्त का मुतालिबा करने वाले कुछ तारकीने वतन ने गुज़िश्ता रोज़ तक इन बसों का रास्ता रोके रखा, जिनमें उन्हें इस मुक़ाम तक लाया गया था।

गुज़िश्ता रात ही कहीं जा कर पनाह गुज़ीनों ने हिम्मत हार कर बसों से उतरने का फ़ैसला किया लेकिन फिर भी एक बस का रास्ता रोके रखा। जंगल के बीच सख़्त सर्दी में ये लोग लकड़ीयों को आग लगा कर ख़ुद को गर्म रख रहे हैं।