जन्मदिन विशेष हसरत मोहानी: वो शायर जिन्होंने इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया था

भारत को” इंकलाब जिंदाबाद” का नारा देकर अंग्रेजों से लड़ने का हौसला देने वाले हसरत मोहानी का आज जन्मदिन है। हसरत मोहानी का शख्सियत बहुआयामी थी।।  मौलाना हसरत मोहानी जो एक उर्दू शायर, पत्रकार, राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी तथा संविधान सभा के सदस्य थे। हर विधा में उनका बेशकीमती योगदान था।

हिन्दुस्तान की आज़ादी के सबसे मशहूर नारों में से एक ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ का  नारा 1921 में उन्होंने दिया जिसे बाद में शहीद भगत सिंह ने मशहूर किया। वो भारत कम्युनिस्ट पार्टी के फाउंडर-मेंबर भी थे. 13 मई 1951 को लखनऊ में उनका हो गया।

आज भी हिंदी फिल्म ‘निकाह’ में प्रसिद्ध गायक गुलाम अली द्वारा गाई गई लोकप्रिय गजल ‘चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है’ लोगों को याद होगी। इसके बोल भी आज भी लोगों के ज़हन से नहीं गये होंगे।

मौलाना हसरत मोहानी के जीवन पर एक टी.वी. धारावाहिक के सह-निर्देशक, पटकथा तथा संवाद लेखक एम. सैयद आलम कहते हैं कि बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी मौलाना हसरत मोहानी के साथ इतिहास ने शायद इंसाफ नहीं किया। वह महात्मा गांधी, मौलाना आजाद, पंडित नेहरू तथा सरदार पटेल से पहले के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे।

उनकी जिंदगी शायरी के दायरे में नहीं फंसी थी। देश की आजादी के संघर्ष के दिनों उन्होंने खुल कर इसमें भाग लिया। वह बाल गंगाधर तिलक के अनुयायी थे। उन्हें 1903 में जेल जाना पड़ा। उस वक्त राजनीतिक कैदियों के साथ भी सामान्य अपराधियों जैसा व्यवहार किया जाता था और उन्हें शारीरिक श्रम करने के लिए मजबूर किया जाता था। 1904 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली।

मौलाना हसरत मोहानी मोहम्मडन एंगलो ओरिएंटल कालेज के पहले छात्र थे जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के चलते उस कालेज से निकाला गया था। यही कालेज आगे चलकर  अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बना।

स्कूल के दिनों से ही उनकी उर्दू साहित्य और शायरी में दिलचस्पी थी।इस स्वतंत्रता सेनानी ने अपने स्कूल के दिनों में ही शायरी करनी शुरू कर दी थी और उन्होंने उर्दू शायरी के शास्त्रीय रूप को पुनर्जीवित करने में काफी अहम भूमिका निभाई थी। फारसी तथा अरबी भाषा का विद्वान होने के नाते वह गालिब के पहले आलोचकों में से थे।

उनकी कुछ मशहूर चुंनिंदा शायरी-
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था
सच कहो कुछ तुमको अब भी वो ज़माना याद है

ग़ैर की नज़रों से बच कर सबकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़
वो तेरा चोरी छिपे रातों को आना याद है

अब वो मिलते भी हैं तो यूँ की कभी,
 गोया हमसे कुछ वास्ता न था।