जन्म-दिन विशेष: देश का “क़ौमी तराना” लिखने वाले अल्लामा इक़बाल थे आधुनिक युग के महान शाइर

अल्लामा मोहम्मद इक़बाल का जन्म आज ही की तारीख़ यानी 9 नवम्बर 1877 को हुआ था. इक़बाल को हिन्दुस्तान के सबसे मशहूर शाइरों में शुमार किया जाता है. आधुनिक उर्दू शाइरी के निर्माता के तौर पर भी लोग उन्हें जानते हैं. “अविभाजित भारत” क उर्दू और फ़ारसी में इनकी शायरी को आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है.

उर्दू शाइरी की अगर बात करें तो मीर, ग़ालिब, इक़बाल और फ़ैज़ को स्तम्भ माना जाता है. इक़बाल भारत और पकिस्तान के अलावा बांग्लादेश, श्रीलंका,ईरान और अफ़ग़ानिस्तान में भी ख़ासे मशहूर हैं. 1922 में उन्हें किंग जॉर्ज पंचम द्वारा “सर” की उपाधि दी गयी.

भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना का विचार सबसे पहले इक़बाल ने ही उठाया था. 1930 में इन्हीं के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने सबसे पहले भारत के विभाजन की माँग उठाई. इक़बाल की रचना “सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा” को भारत में लोग क़ौमी तराना मानते हैं जबकि पाकिस्तान में राष्ट्रकवि का दर्जा हासिल है.

21 अप्रैल 1938 को इक़बाल का लाहौर में देहांत हो गया.

प्रमुख रचनाएं: असरार-ए-ख़ुदी, रुमुज़-ए-बेख़ुदी और बंग-ए-दारा, जिसमें देशभक्तिपूर्ण तराना-ए-हिन्द (सारे जहाँ से अच्छा) शामिल है. फ़ारसी में लिखी इनकी शायरी ईरान और अफ़ग़ानिस्तान में बहुत प्रसिद्ध है, जहाँ इन्हें इक़बाल-ए-लाहौर कहा जाता है। इन्होंने इस्लाम के धार्मिक और राजनैतिक दर्शन पर काफ़ी लिखा है.

इक़बाल की प्रसिद्ध रचना

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा

ग़ुर्बत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा

परबत वह सबसे ऊँचा, हम्साया आसमाँ का
वह संतरी हमारा, वह पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ
गुल्शन है जिनके दम से रश्क-ए-जनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वह दिन हैं याद तुझको?
उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा

मज़्हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोसिताँ हमारा

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-व-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा

इक़बाल! कोई महरम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा!