जब किसी ने नहीं सुना, तो हमने इस्लाम कुबूल किया

हरियाणा के कुछ दलित खानदानो का कहना है कि उन्होंने इंतेज़ामिया से तंग आकर मज़हब इस्लाम क़ुबूल किया है.
हिसार ज़िले के भगाना गांव के रहने वाले इन लोगों का कहना है कि उन्होंने गांव के दबंगों के ज़ुल्म व सितम और समाज से बायकाट के एहतिजाज में तकरीबन डेढ़ साल से दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दे रहे हैं, लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली है.

हफ्ते के रोज़ जंतर-मंतर पर मज़हब तब्दील से पहले ही ये लोग अपने इस क़दम का एलान कर चुके थे.
सतीश काजला, जो अब अब्दुल कलाम बन चुके हैं, वो बताते हैं कि करीब सौ दलित खानदानो ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर ही मज़हब की तबदील की.

मज़हब बदलने वाले इन लोगों के लिए नए मज़हब की सबसे अहम पहचान सिर की टोपी है, जिसे जंतर मंतर पर धरना दे रहे सभी मर्द हर वक्त सिर पर लगाए रहते हैं.

सतीश जिन अब्दुल रज़्ज़ाक को मज़हब तब्दीली में मददगार बताते हैं, उनका कहना है, “मैं सिर्फ क़ानूनी तौर पर भगाना गांव के दलितों को इंसाफ़ दिलाना चाहता हूं.”

मज़हब तब्दील करने वालों का दावा है कि वो क़रीब चार साल से इंसाफ़ की जंग लड़ रहे हैं.

सतीश काजला उर्फ अब्दुल कलाम बताते हैं, “चार साल पहले मरकज़ और रियासत की हुकूमत ने दलित और पिछड़े समाज को गांव की ज़मीन बांटने की पेशकश रखी लेकिन गांव के दबंगों ने दलितों को ज़मीन हासिल होना तो दूर, गांव से नकल मकनी के लिए मजबूर कर दिया.”

सतीश और उनके साथ तहरीक कर रहे लोगों के मुताबिक़, क़रीब सौ खानदान तीन साल से हिसार और डेढ़ साल से जंतर-मंतर पर मुज़ाहिरा कर रहे हैं.

हिसार इंतेज़ामिया का कहना है कि धरने पर बैठे खानदानो की तादाद 50 से ज़्यादा नहीं है.

इंतेज़ामिया का यह भी दावा है कि इन लोगों से मुसलसल बात होती रही है.

लेकिन भगाना गांव के बाकी लोगों के साथ मज़हब की तब्दीली करने वाले राजेंद्र कहते हैं कि मज़हब बदलने के बाद ही उनकी सुनवाई हुई है.

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