झारखंड : 46000 बच्चों की हर साल मौत

झारखंड में हर साल पांच साल से कम उम्र के 46 हजार बच्चों की मौत होती है। इनमें 19 हजार बच्चों की मौत तो जन्म के 28 दिनों के अंदर ही हो जाती है। सरकारी अदाद व शुमार बताते हैं कि अगर एक हजार बच्चे पैदा होते हैं, तो उनमें से 55 बच्चे अपना पांचवां पैदाइश दिन भी नहीं देख पाते। 38 तो अपने पैदाइश के एक साल के अन्दर ही मर जाते हैं। इन बच्चों में 24 ऐसे बच्चे होते हैं, जो जन्म के 28 दिनों के अन्दर ही दुनिया छोड़ देते हैं।

यह हाल है झारखंड का। अगर थोड़ी सी एहतियात बरती जाये, पेदारी की तश्हीर हो, हुकूमत जागे, वाल्दा अपने बच्चों को पैदा होने के दो घंटे के अन्दर अपना दूध पिलायें, वक़्त पर टीका लगायें, गजाई किल्लत से बचें, नेजाम ठीक से काम करे, अदारह की तर्सिल हो तो इन 46 हजार बच्चों में ज़्यादातर की जिंदगी बचायी जा सकती है। प्रभात खबर और यूनिसेफ ने बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए बेदारी फैलाने और सिस्टम को ठीक से लागू करने का इज्तेमाई कोशिश शुरू किया है।

कुछ पैरामीटर को छोड़ कर बच्चों की मौत की शरह (55 फी हजार), बच्चे की शरह आमवात (38 फी हजार) व नववलुद शरह आमवात दर (24 फी हजार) समेत मान और बच्चे की सेहत के प्रोग्राम के बेहतर कारकर्दगी में मशरिकी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिला सबसे आगे है। वहीं सबसे खराब हालत सिमडेगा जिले की है।

क्या हैं वज़ह

इसके असबाब में माँ और बच्चे की हिफाज़त के प्रोग्राम का बेहतर नफाज़ न होना, बच्चे की गजाई किल्लत का शिकार होना, आदरह की तर्सिल की कमी, कुल पैदाईश की शरह का ज़्यादा होना, सौ फीसद टीकाकरण और नववलुद की देखभाल में कमी शामिल है। हमला वाल्दावों की मुनासिब परवरिश न होने से नववलुद महरूम पैदा होता है। आम तौर पर एक सेहतमंद बच्चे का वजन 2.5 किलो होना चाहिए। इधर झारखंड के तमाम अज़ला में इससे कम वजन के बच्चे पैदा होते हैं। गुमला और सिमडेगा में तो 55 फीसद बच्चे कम वजन के होते हैं। इससे इनकी मौत की शरह बढ़ जाती है।

== शुक्रिया प्रभात खबर ==