टेनिस स्लेक्शन तनाज़ा से हिंदूस्तानी खेलों की बदनामी

ओलम्पिक मुक़ाबलों में हिस्सा लेने वाली शटलर ज्वाला गट्टा का तास्सुर (प्रभाव) है कि टेनिस में जारीया स्लेक्शन तनाज़ा ( झगड़ा) इंडियन स्पोर्टस की ग़लत तस्वीर पेश करता है और आइटा (ITA) इस मसले को काफ़ी क़बल ( बहुत पहले) ही निमटा सकता था।

ये ज़रूरी नहीं था। वो (आइटा) उसे अपनी हद तक रख सकते थे। हर कोई जानता है कि लेंडर और महेश ओलम्पिक़्स खेलेंगे। वो उसकी यकसूई (हल) काफ़ी क़बल ( बहुत पहले) कर सकते थे। उन्होंने कहा, में नहीं जानती क्यों इस तरह का मुआमला अब पेश आया।

आइटा उसे अपनी हद तक रख कर सुलझा सकती थी, बजाय इसके कि हर रोज़ नए ऐलानात किए जाते। मैं ये नहीं जानती कि ऐसा क्यों किया गया। इससे ना सिर्फ टेनिस बल्कि खेल की बदनामी होती है। 28 साला हैदराबादी ने जो ओलम्पिक़्स में दो ईवंटस & मिक्स्ड डबल्स और वोमेन्स डबल्स के लिए क्वालीफ़ाई होने वाली पहली हिंदूस्तानी शटलर बनें, कहा कि स्पोर्टस एसोसीएशन का खिलाड़ियों पर मुबय्यना कंट्रोल करने का रुजहान उन्हें काबिल-ए-क़बूल नहीं है। ज्वाला ने कहा, ये कुछ ऐसी चीज़ है जिसे मैं हज़म नहीं कर सकती।

ऐसी चीज़, जिस का एसोसीएशन फ़ैसला करती है कि कौन किस के साथ खेले। ये मेरे लिए कुछ अजीब चीज़ है। अब, अगर कोई मेरी एसोसीएशन में मुझ से कहता है कि ज्वाला, आप (वे) डीजो और अश्वनी (पोनप्पा) के साथ नहीं खेल सकतीं, में ब्रहम हो जाऊँगी।

उन्होंने मज़ीद कहा, लेकिन मेरा एहसास है तमाम एसोसीएशन ऐसा करते हैं। वो अपने खिलाड़ियों पर कंट्रोल क़ायम रखने की कोशिश करते हैं जबकि वो शायद ही किसी खिलाड़ी की मेहनत में अपना हिस्सा अदा करते हैं।

वो खिलाड़ी के कैरीयर के सिर्फ बाद वाले हिस्से में सामने आते हैं। ये कुछ ऐसी चीज़ है, में नहीं समझती कि मैं ऐसी बातें कुबूल कर सकती हूँ। ये भी एक वजह है कि क्यों मेरा मेरी एसोसीएशन के साथ उलझाओ हुआ जब वी के वर्मा प्रेसीडेंट थे।

ज्वाला जिन्होंने 2011 वर्ल्ड चम्पियशिप वोमेंस डबल्स में बरूँज़ मेडल अश्वनी के साथ जीता, उन्होंने कहा कि हिंदूस्तान को ओलम्पिक़्स में कोई मेडल जीतने का बेहतर मौक़ा रहेगा बशर्ते कि खिलाड़ियों को तनाव ना रहे। हाँ, हिंदूस्तान मुक़द्दम है, लेकिन हमें बेहतरीन नताइज तभी हासिल हुए जब खिलाड़ी का अपने या अपनी पार्टनर के साथ अच्छा ताल मेल रहे।