सियासत हिन्दी : सोशल मीडिया पर तीन तलाक़ को लेकर चल रही बहस के बीच सीनियर जर्नलिस्ट जनाब युसूफ अंसारी साहब ने अपनी बेबाक राय कलम के जरिये फेसबुक पर पोस्ट की है , उन्होंने कुछ तथ्यों को रख कर लोगो से अपनी राय देने की अपील की है ।
युसूफ अंसारी :”तीन तलाक़” के मुद्दे पर पर दो महिलाएं हाल ही में सुप्रीम कोर्ट पहुंच गयी हैं। उत्तराखंड की सायरा बानो को उसके पति ने शादी के 15 साल बाद एक ही बार में “तीन तलाक़” देकर घर से निकाल दिया। सायरा बानों ने “तीन तलाक़” की इस प्रथा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी है। अलीगढ़ के अतिरिक्त ज़िला जज ने अपनी पत्नी को ग़ुस्से में आकर तीन बार तलाक़ बोल दिया। उनकी पत्नी अफ़्शा ने भी इलाहबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस को लिखित शिकायत कर दी है। इसी तरह के कई और मामले देश की अलग-अलग अदालतों में चल रहे हैं। पिछले साल हुए एक सर्वे में 92 फ़ीसदी मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक़ के खिलाफ़ अपनी राय दी है।
ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड और तमाम मुस्लिम संगठन तीन तलाक़ को “बिदअत” मानते हैं। “बिदअत” का अर्थ होता है धर्म की मूल शिक्षाओं से बाहर की चीज़ का धर्म में शामिल करना। सभी संगठनों का कहना है कि तलाक़ का ये तरीक़ा “कुरान” के ख़िलाफ़ है। सवाल ये उठता है अगर अल्लाह ने “क़ुरान” में तलाक़ का सही तरीक़ा बताया है तो फिर वो कौन सी ताक़ते हैं जिन्होंने मुस्लिम समाज पर “तीन तलाक़” थोंपी और इसे आगे भी थोंपे रखना चाहते हैं…? सवाल ये भी है कि आख़िर “क़ुरान” से बड़ी व कौन सी किताब है जिसके आधार पर “तीन तलाक़” को जायज़ ठहराकर इसे जारी रखने की हिमायत की जाती है…? आख़िर उलमा हज़रात मुस्लिम समाज में नासूर बन चुकी “तीन तलाक़” की इस रस्म को ख़त्म करने के लिए कोई क़दम क्यों नहीं उठाते हैं..? इतने अहम मसले पर मुस्लिम समाज खुल कर चर्चा क्यों नहीं करता है.. ..? दोस्तों इस अहम मुद्दे पर अपनी बेबाक राय दीजिए कि तलाक़ के लिए “क़ुरान” का तरीका अपनाया जाए या फिर “बिदअत” को ही जारी रखा जाए..?