तीन तलाक़ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी पर सोशल मीडिया में जमकर बहस

दिल्ली : तीन तलाक़ के मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी पर सोशल मीडिया में जमकर बहस हो रही है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है, “यह मुस्लिम महिलाओं के ख़िलाफ़ क्रूरता है और इससे महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन होता है.” सोशल मीडिया पर बहुत से लोग इस फ़ैसले का समर्थन कर रहे हैं तो कई इससे जोड़ कर दूसरे सवाल भी उठाए रहे हैं. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह से लेकर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट पर टिप्पणी की है। रामचंद्रा गुहा ने कहा की कोर्ट ने कहा की कोई भी पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान के ऊपर नहीं है क्या इसका मतलब खाप पंचायत से भी है?” वही दिग्विजय सिंह ने तो विनम्र भाव में कहा की मैं बड़ी विनम्रता से माननीय अदालतों से अनुरोध करना चाहूंगा कि उन्हें धर्म और धर्मों के रीति रिवाज़ में दख़लअंदाज़ी नहीं करना चाहिए.

भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन नाम के एक संगठन ने तो खुद लगभग 50 हज़ार मुस्लिम महिलाओं के हस्ताक्षर वाला एक ज्ञापन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुच ही दिनों पाले सौंपा है जिसमे तीन बार तलाक़ को ग़ैर क़ानूनी बनाने की मांग की गई है. इस ज्ञापन पर मुस्लिम समाज के कई मर्दों ने भी हस्ताक्षर किए हैं. इस मुद्दे को लेकर बहस तो अंग्रेज़ों के शासनकाल से ही शुरू हो गई थी. भारत में समाज की विविधता को देखकर अंग्रेज़ शासक हैरान थे. वो इस बात पर भी हैरान थे कि चाहे वो हिन्दू हों या मुसलमान, या फिर पारसी और ईसाई, सभी के अपने अलग क़ायदे क़ानून हैं. इन्हीं से उनका समाज चलता था. इसी वजह से ब्रितानी हुकूमत ने धार्मिक मामलों का निपटारा उन्हीं समाजों के रिवायती क़ानूनों के आधार पर ही करना शुरू कर दिया.

और पर्सनल लॉ बोर्ड की व्यवस्था को संविधान में धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार यानी अनुच्छेद 26 के तहत है जिसमें सभी धार्मिक संप्रदायों और पंथों को सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता के मामलों का स्वयं प्रबंधन करने की आज़ादी दी गई है. बाद में सिविल मैरिज एक्ट भी आया जो देश के सभी लोगों पर लागू होता है. इस क़ानून के तहत मुसलमान भी कोर्ट में शादी कर सकते हैं और तलाक भी ले सकते हैं. एक ट्विटर हैंडलर तो यहाँ तक कह दिया की जो ट्रिपल तलाक की आलोचना करते हैं वो बजरंग दल के गुंडों की तरफ़ से मुस्लिम महिला के रेप, शोषण और मारपीट की निंदा करना भूल जाते हैं. इस मुद्दे पर हाय तौबा तो हमेशा से मची रही और आगे भी मुद्दा बना रहेगा। पर नेताओं, बुधिजीवी मानुष और साथ में माननिए कोर्ट को भी किसी के धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखना चाहिए।