दबकर रह गई नजीब की माँ के दर्द की पुकार

नई दिल्ली। जहाँ एक और पूरा देश नए साल के स्वागत की तैयारी में जुटा है वहीँ दूसरी और एक माँ के दर्द की पुकार है जो प्रशासनिक उदासीनता के कारण दबकर रह गई है। औलाद का गम माँ से अधिक कौन समझ सकता है। यही माँ पिछले 70 दिनों से अपने जिगर के टुकड़े के लिए भटक रही है लेकिन 14 अक्टूबर की रात जेएनयू होस्टल से लापता उसके पुत्र नजीब अहमद का आज तक कोई सुराग नहीं मिला है। नजीब कहाँ है कोई नहीं जानता, लेकिन उसकी माँ एक उम्मीद पर आस लगाए बैठी है कि उसका जरूर वापस आएगा। बेटे के लापता होने के बाद माँ और नजीब का छोटा भाई मुजीब अहमद, उत्तर प्रदेश के बदायूं से दिल्ली आये और जेएनयू और वंसत विहार पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाने लगे। इस माँ का दर्द इस बात से साफ़ झलकता है जो इन्होंने कही थी कि मेरा बच्चा वापस दे दो, मैं वापस चली जाऊंगी। नजीब अहमद का होस्टल से लापता होना आज तक रहस्य बना हुआ है और कब तक रहस्य बना रहेगा अभी कहना जल्दबाजी होगी।

इस पूरे मामले पुलिस जांच भी संदिग्ध दिखती है। पुलिस मामले को लेकर दावा जरूर कर रही थी कि जांच में कुछ सामने आया लेकिन उस पर से पर्दा नहीं उठ पाया है। जेएनयू प्रशासन का रवय्या भी ठीक नहीं है, ऐसे में पीड़ित परिवार कहाँ जाये। परिवार के सदस्य एक दो बार ज़बरदस्ती वीसी के कार्यालय में घुसे भी लेकिन उनके साथ अच्छा सुलूक़ नहीं किया। जेएनयू के छात्र संघ के अध्यक्ष मोहित पांडेय ने विश्वविद्यालय के प्रशासन पर भेदभाव करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि विश्वविद्यालय प्रशासन एक राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित है जिसकी वजह से वो दूसरी राजनीतिक विचारधारा के लोगों को बर्दाश्त नहीं कर रहा है। मोहित के बयान में सच्चाई झलकती है। सवाल यह है कि जेएनयू प्रशासन, पुलिस तथा केंद्र का पूरे मामले में नकारात्मक रुख रहा है तो कैसे नजीब वापस आएगा। आज अलीगढ में इस मामले को लेकर अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय (अमुवि) के छात्रों ने प्रदर्शन किया जिस पर पुलिस ने लाठी चार्ज की जिससे कई छात्र गंभीर रूप से घायल हो गए। इस मामले में घटना के दिन से ही प्रशासन ने कोई तत्परता नहीं दिखाई है।

पिछले सप्ताह नजीब अहमद के मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि यह मामला गंभीर है तथा हर उस शख्स को खंगाला जाए जो मामले पर रोशनी डाल सकता है। हाईकोर्ट ने कहा कि दिल्ली पुलिस जल्द से जल्द 9 छात्रों का लाई डिटेक्टर टेस्ट कराए, साथ ही उनके राज्यों में जाकर जांच की जाए, जेएनयू के बाहर के दो छात्रों के कमरों पर निगरानी रखकर डाग स्क्वाड के साथ जांच जारी रखी जाए। तत्काल दिल्ली पुलिस सक्रिय हुई और मामले में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की जिसमे कहा गया कि 560 पुलिस कर्मियों की टीम ने दो दिन तक डाग स्क्वाड के साथ पूरे परिसर को खंगाला, उन्हें कुछ जानकारी मिली है जिसके आधार पर जांच हो रही है।

गौरतलब है कि नजीब 14 अक्टूबर की रात से ही लापता है। बताया गया कि उस रात माही मांडवी हॉस्टल में एमएससी बायोटेक के छात्र नजीब अहमद का कुछ छात्रों से झगड़ा हो गया था। आरोप लगे कि एबीवीपी से जुड़े तीन छात्र हॉस्टल मेस कमेटी चुनाव प्रचार के लिए नजीब के रूम पर पहुंचे थे। वहां किसी बात को लेकर नजीब और उन छात्रों के बीच नोक झोंक हो गई। आरोप है कि इसके बाद एबीवीपी से जुड़े इन छात्रों ने अपने बाकी साथियों को बुलाकर नजीब के साथ मारपीट की थी। इसको लेकर जेएनयू के छात्रों ने प्रदर्शन तेज कर दिए। छात्रों ने 18 अक्टूबर को जेएनयू के वीसी और कई अधिकारियों को उनके ही ऑफिस में बंधक तक बना लिया था। करीब 24 घंटे बाद वीसी और अधिकारियों को आजाद किया गया।

नजीब की तलाश को लेकर दिल्ली पुलिस के रवैए पर छात्र और परिवार लगातार सवाल उठा रहे हैं। इस मामले को लेकर प्रदर्शन भी हो रहे हैं। दिल्ली पुलिस ने नजीब अहमद का पता लगाने में मदद के तौर पर सूचना उपलब्ध कराने वाले व्यक्ति के लिए ईनाम की राशि बढ़ाकर 10 लाख रुपये कर दी है। अब सबसे बड़ा सवाल यह कि आखिर कब वापस आएगा नजीब? क्या उसकी माँ और परिवार को न्याय मिलेगा या फिर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत देखने को मिलेगी जैसा अब तक इस मामले में दिख रहा है।