दिल लगाने का जहां मौक़ा भी था कोशिश भी थी

एक ज़माना था कि फ़िल्मी दुनिया इस तरह से एक तिलस्माती दुनिया नज़र आती थी कि शूटिंग देखने का शौक़ हर शख़्स को होता था।

अक्सर बारीश(दाढ़ी वाले) और मज़हबी हज़रात भी इस ख़ाहिश पर क़ाबू नहीं पा सके एक बार इत्तिफ़ाक़ से माहिर उल-क़ादरी साहिब शौक़ पूरा करने के लिए किसी के साथ स्टूडीयो पहुंच गए कि वहां इन का जानने वाला कौन मिलेगा। इत्तिफ़ाक़ से उसी दिन शोरिश काश्मीरी भी पहली मर्तबा शूटिंग देखने पहुंचे और दोनों की मुलाक़ात हुई तो माहिर उल-क़ादरी ने हंसते हुए फ़ीलबदीह(आशु कविता) ये शेअर कहा
दिल लगाने का जहां मौक़ा भी था कोशिश भी थी
हाय वो महफ़िल जहां शोरिश भी था शोरिश भी थी
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पतरस बुख़ारी रेडीयो स्टेशन के डायरेक्टर थे एक मर्तबा मौलाना ज़फ़र अली ख़ानसाहब को तक़रीर के लिए बुलाया तक़रीर की रिकार्डिंग के बाद मौलाना पतरस के दफ़्तर में आकर बैठ गए। बात शुरू करने की ग़रज़ से अचानक मौलाना ने पूछा। पतरस ये तानपूरे और तंबूरे में क्या फ़र्क़ होता है।

पतरस ने एक लम्हा सोचा और फिर बोले। मौलाना आप की उम्र क्या होगी? इस पर मौलाना गड़बड़ा गए और बोले। भई यही कोई पछत्तर साल होगी। पतरस कहने लगे। मौलाना जब आप ने पछत्तर साल ये फ़र्क़ जाने बगै़र गुज़ार दिए तो दो चार साल और गुज़ार लीजिए।

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रेल के सफ़र में सब से ऊपर वाली बर्थ पर मजाज़, दरमयान में जोश मलीह आबादी और निचली बर्थ पर फ़िराक़ गोरखपोरी सफ़र कर रहे थे। मिआ जोश ने फ़िराक़ से पूछा: रघूपती उस वक़्त तुम्हारी उम्र क्या होगी।

फ़िराक़ ने जवाब दिया : यही कोई दस बरस, जोश ख़ामोश हो गए तो फ़िराक़ ने जोश से पूछा: शब्बीर हसन तुम्हारी उम्र क्या होगी। जोश ने बर जस्ता जवाब दिया यही कोई पाँच छ साल। इस पर ऊपर की बर्थ पर लेटे हुए मजाज़ ने अपना मुँह चादर में छुपाते हुए कहा बुज़र्ग़ो अब मुझ से उम्र मत पूछना क्योंकि में तो अभी पैदा ही नहीं हुआ।
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