दीपक मिश्रा का रिटायरमेंट: ये फैसले रहे अहम, इन वजहों से पड़ा विवादों का साया

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा दो अक्टूबर को रिटायर होने जा रहे हैं। अपने कार्यकाल के आखिरी चंद हफ्तों में दीपक मिश्रा ने जो महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं, उनसे भारतीय साामाजिक, राजनीतिक, पारिवारिक और व्यक्तिगत आजादी का सीधा सरोकार है। महिलाओं के बराबरी के अधिकार का मामला हो या फिर महिला को पति की जागीर बनाने वाले अडल्टरी कानून को खत्म करने का केस हो दीपक मिश्रा के ये तमाम जजमेंट इस बात को दर्शाते हैं कि वह संविधान में व्यक्तिगत आजादी के अधिकार को लेकर कितने संजीदा रहे हैं।

उनके कार्यकाल में कुछ विवाद भी उनसे जुड़े। उनके ऊपर कांग्रेस ने महाभियोग चलाने का प्रस्ताव किया और चार सीनियर मोस्ट जजों ने रोस्टर सिस्टम पर सवाल उठाते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस तक की। लेकिन चीफ जस्टिस मिश्रा तटस्थ बने रहे। 13 महीने का उनका कार्यकाल इन तमाम कारणों से महत्वपूर्ण रहा और हमेशा याद किया जाएगा।

व्यक्तिगत अधिकारों को दी तरजीह 
बेहद सौम्य और हंसमुख स्वभाव के धनी दीपक मिश्रा की कोर्ट में हमेशा इंग्लिश लेखकों के कोट और कैटिल्य सहित तमाम स्कॉलर की उक्तियां गूंजती रही हैं। व्यक्तिगत आजादी और कानून के सामने लिंग समानता को लेकर दिए गए अपने तमाम फैसले के साथ-साथ संवैधानिक नैतिककता को लेकर उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले दिए। दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने वाला फैसला बताता है कि उन्होंने संवैधानिक नैतिककता को सबसे ऊपर रखा।

सबरीमाला से लेकर अडल्टरी कानून तक

सबरीमाला मंदिर के फैसले में महिलाओं को अधिकार दिलाया और धार्मिक स्वतंत्रता को संवैधानिक नैतिकता और समानता की कसौटी पर कसा। वहीं अडल्टरी मामले में महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण करते हुए कहा कि अगर यह क्राइम बना रहा तो पति व पत्नी की गरिमा पर प्रहार होगा और जीवन के अधिकार का उल्लंघन होगा।

लव जिहाद केस में दी संवैधानिक अधिकार को तरजीह

इसी तरह 8 मार्च को जब केरल की एक हिंदू लड़की ने मुस्लिम से शादी कर ली तो केरल हाई कोर्ट ने शादी को रद्द कर उसे लव जेहाद की संज्ञा दे दी और लड़की को उसके गार्जियन के हवाले कर दिया। हदिया नामक इस लड़की का केस जब चीफ जस्टिस के सामने आया तो चीफ जस्टिस ने बतौर संवैधानिक गार्जियन महिला के अधिकार को प्रोटेक्ट किया और इस बात को तरजीह दी कि हर व्यक्ति को अपने पार्टनर चुनने का अधिकार है।

फिल्म से पहले राष्ट्रगान का फैसला
उन्होंने सिनेमा हॉल में फिल्म से पहले राष्ट्रगान बजाने और सबको खड़े रहने का फैसला दिया। बाद में सरकार के आग्रह पर इसे ऑप्शनल कर दिया गया। मुंबई ब्लास्ट मामले के आरोपी याकूब मेमन की फांसी पर रोक के लिए लगी अर्जी पर आजाद भारत में पहली बार आधी रात को सुप्रीम कोर्ट खोला गया और जस्टिस दीपक मिश्रा ने रातभर मैराथन सुनवाई की और तड़के याकूब को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया।

जजों के असंतोष और महाभियोग से भी रहे चर्चित 
12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। ऐसा रहा तो लोकतंत्र नहीं चल पाएगा। चीफ जस्टिस ने मामलों को अपनी पसंद के कोर्ट में भेजा जिसके लिए कोई तार्किक आधार नही था। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद जुडिशरी में एक तरह से भूचाल सा आ गया। तब कहा जाने लगा कि चीफ जस्टिस इस पर अपनी प्रतिक्रिया देंगे लेकिन वह तटस्थ ही बने रहे। बाद में उन्होंने एक फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में नए केसों के आवंटन के लिए रोस्टर सिस्टम लागू कर उसे पब्लिक डोमेन (सार्वजनिक) में डाल दिया था।

अंग्रेजी साहित्य पर जबर्दस्त पकड़
सीनियर एडवोकेट अशोक परीजा बताते हैं कि जस्टिस दीपक मिश्रा को उन्होंने ओडिशा हाई कोर्ट में प्रैक्टिस के दौरान नजदीक से देखा था। परीजा बताते हैं कि जब उन्हें जज बनाया गया था, तब ओडिशा हाई कोर्ट के व्यस्ततम वकीलों में उनका नाम शुमार था। सिविल, क्रिमिनल, सर्विस औऱ संवैधानिक आदि मामलों पर उनकी जबर्दस्त पकड़ है। अंग्रेजी साहित्य व भाषा के भी बेहतरीन जानकार हैं। अंग्रेजी में कविता पढ़ना व लिखना उनका शौक रहा है।

दो दशक वकालत की

जस्टिस दीपक मिश्रा का जन्म 3 अक्टूबर 1953 को हुआ था। 14 फरवरी 1977 में उन्होंने उड़ीसा हाई कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की थी। 1996 में ओडिशा हाई कोर्ट का अडिशनल जज बनाया गया और बाद में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट उनका ट्रांसफर किया गया, 2009 के दिसंबर में पटना हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया। फिर 24 मई 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट में बतौर चीफ जस्टिस उनका ट्रांसफर हुआ। 10 अक्टूबर 2011 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया। 28 अगस्त 2017 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया और वह 2 अक्टूबर 2018 को रिटायर होंगे।

सुनाए ये ऐतिहासिक फैसले

 30 नवंबर 2016 को दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि पूरे देश में सिनेमा घरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाया जाए बाद में इसे वैकल्पिक कर दिया गया।

 मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को फांसी की सजा जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने ही सुनाई थी। आजाद भारत में पहली बार सुप्रीम कोर्ट में रात भर सुनवाई चली थी। याकूब की अर्जी खारिज की गई थी और फिर तड़के उसे फांसी दी गई थी।

 पिछले साल 5 मई को बहुचर्चित निर्भया गैंग रेप केस में तीनों दोषियों की फांसी की सजा को जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने बरकरार रखा था। इसके बाद में रिव्यू पिटिशन भी खारिज कर दी थी।

– कार्यकाल के अखिरी दो हफ्ते में आधार को शर्तों के साथ लागू करने को कहा। वहीं धारा-377 के तहत दो बालिगों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर लिया। वहीं अडल्टरी को भी अपराध के दायरे से बाहर कर दिया।

 सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की छूट दी गई। एससी एसटी के प्रोमोशन में आरक्षण का रास्ता साफ कर दिया। पारदर्शिता के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट में लाइव स्ट्रीमिंग की इजाजत दे दी।

साभार- नवभारत