दुनियावी शौहरत ख़तरनाक

हज़रत अनस रज़ी अल्लाहु तआला अनहु से रिवायत हैके हुज़ूर नबी करीम (स०अ०व०) ने फ़रमाया इंसान की बुराई के लिए इतना काफ़ी हैके दिन या दुनिया के एतेबार से उसकी तरफ़ उनगलीयों से इशारा किया जाये,ये कि किसी को अल्लाह ताआला ही महफ़ूज़ रखे। (बीहक़ी)

दुनियावी एतेबार से मशहूर-ओ-मारूफ़ होना तो ज़ाहिर हैके आफ़तों और फ़ितनों में मुबतला हो जाने और ईमानी अमन-ओ-सलामती की राह से दूर हो जा पड़ने का सबब है, लेकिन अगर कोई शख़्स अपनी ज़िंदगी के एतेबार से मशहूर-ओ-मारूफ़ होता है तो वो भी ख़तरे से ख़ाली नहीं है, क्यूंकि इस सूरत में इस के रयाकार होने का गुमान किया जा सकता है और हो सकता हैके वो इस शौहरत की वजह से अपनी क़ियादत-ओ-पेशवाई की तलब-ओ-जाह में मुबतला हो जाये और ये तमन्ना करने लगे कि लोग उसको अपनी अक़ीदत‍ ओ‍ एहतेराम का मर्कज़ बना लें।

इस तरह वो शैतान के बहकाने और नफ़स-ए-अम्मारा के उकसाने की वजह से उन नफ़सानी ख़ाहिशात की इत्तिबा में मुबतेला होसकता है। चुनांचे एसे बंदगान ख़ुदा कम ही होते हैं, जिन्हें अवामी शौहरत-ओ-नामवरी हासिल हुई हो और वो इस के नतीजे में पैदा हो जाने वाली बुराईयों से महफ़ूज़ रहे।

हाँ वो ख़ास बंदगान ख़ुदा जिन्हें अल्लाह ताआला अपना मुक़र्रब-ओ-महबूब बना लेता है और वो सिद्दीक़ीयत के मर्तबे पर फ़ाइज़ होते हैं, वो तमाम आलम की शौहरत-ओ-नामवरी रखने के बावजूद उसकी बुराईयों से महफ़ूज़ रहते हैं।

उसकी वजह ये होती हैके वो उस बलंद तरीन मर्तबे पर फ़ाइज़ ही उस वक़्त होते हैं, जबकि उनके ज़ाहिर-ओ-बातिन से तमाम बुराईयां मिट चुकी होती हैं और उनका नफ़स पूरी तरह पाकीज़ा हो जाता है।