न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अपमान करने के मामले में मोदी सरकार को लगी फटकार

कैंपेन  फॉर  जुडिशल  एकाउंटेबिलिटी  एंड  रिफॉर्म्स  (सीजर), ने अलाहबाद हाई कोर्ट में १३ जजों के नियुक्ति के प्रताव को दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को वापिस भेजे जाने की कड़ी निंदा करते हुए, इसे “न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अपमान” बताया है| एक वक्तव्य जारी करते हुए ‘सीजर’ ने कहा, ” हाल ही में लिया गया केंद्र सरकार का यह कदम, जिसमे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के १३ जजो की नियुक्ति की सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को वापस लौटाया गया, न्यायपालिका की संस्थागत स्वतंत्रता के लिए एक अपमानजनक बात है, यह आम मुकदमेबाज़ की परेशानियों का बहुत बड़ा निरादर है”

यह बताया गया की सुप्रीम कोर्ट के कानून के मुताबिक़ यह स्पष्ट है की ‘दूसरी’ और ‘तीसरी’ श्रेणी के जजों के मामले में केंद्र सरकार का कोई हक़ नहीं बनता की वह सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिशों को बार-बार लौटाए| ” एक बार जब सिफारिशें दोहरादि जाती है तो संविधान के अनुसार केंद्र सरकार बाध्ये है की वह सिफारिशों को स्वीकार करे और उस व्यक्ति को बिना समय गवाए जज नियुक्त करे| इसलिए केंद्र सरकार का यह कदम अनुचित और असंवैधानिक है|”