पंजाब का रास्ता पटना से होकर जाता है

पटना: इस बीते हफ्ते मिनी पंजाब-से दिख रहे पटना में हरेक सिख श्रद्धालु की ज़ुबान पर नीतीश कुमार की तारीफ़ ने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को पंजाब के चुनावी संदर्भ में कुछ सोचने पर विवश ज़रूर किया होगा.
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हालांकि इस धार्मिक समागम के दौरान किसी तरह का राजनीतिक मकसद तलाशना बेमतलब लग सकता है लेकिन, नेताओं की निगाहें और निशाने अलग-अलग भी हो सकते हैं.
अब सवाल उठता है कि अगर नीतीश कुमार पंजाब विधानसभा चुनाव में प्रचार करने गए तो वह क्या करेंगे?
बिहार की अपनी सत्ता-साझीदार कांग्रेस के हक़ में बोलेंगे या गुरु पर्व पर बीजेपी के नरेंद्र मोदी और अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल से अपने ‘मधुर मिलन’ का निर्वाह करते हुए प्रचार से बचेंगे? सब जानते हैं कि नीतीश कुमार बीजेपी के प्रति अपने विरोध को लालू यादव की तरह उग्र बनाना नहीं चाहते हैं. उन्होंने नोटबंदी प्रकरण में अपनी इस रणनीति का संकेत दिया भी है. ऐसे में लगता यही है कि नीतीश कुमार कुछ सोच समझकर ही नोटबंदी पर समीक्षा के बाद अपनी अंतिम राय बताने की तारीख़ प्रकाश पर्व के बहाने आगे बढाते रहे.

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बीबीसी के अनुसार, दरअसल, नीतीश नहीं चाहते होंगे कि पटना में गुरुपर्व पर नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा करने से पहले उनके बीच कोई खटास बढ़ जाए. इसी तरह प्रधानमंत्री ने भी नोटबंदी पर नीतीश कुमार से मिले समर्थन और आगे भी कभी सहयोग की उम्मीद के मद्देनज़र उनके प्रति अपना मित्रवत रुख़ दिखाया.
नरेंद्र मोदी ने इस भव्य आयोजन और राज्य में पूर्ण शराबबंदी के सिलसिले में नीतीश कुमार की दिल खोल कर प्रशंसा की. ज़ाहिर है कि सामने बैठे लालू यादव को अच्छा नहीं लगा होगा.
ध्यान देने की बात है कि जब भी ये दोनों नेता एक मंच पर होते हैं, तब नरेंद्र मोदी आगे बढ़ कर नीतीश कुमार के प्रति अपना सद्भाव दिखने का प्रयास करते हैं. इसमें सिर्फ शिष्टाचार नहीं, बल्कि सियासी रणनीति भी छिपी हो सकती है.
सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह के जन्म-स्थल पाटलिपुत्र यानी पटना में गुरुवार को उनका 350 वाँ जन्मोत्सव यानी प्रकाश पर्व संपन्न हुआ.
देश-विदेश के लाखों श्रद्धालुओं की मौजूदगी और आयोजन की भव्यता के बीच ‘वाहे गुरु’ के जयकारों से पूरा पटना शहर पांच दिनों तक गूँजता रहा. गाँधी मैदान से लेकर पटना साहिब तक अनेक बहुरंगी कार्यक्रमों वाले इस महोत्सव को बिहार के लिए अभूतपूर्व और यादगार माना जा रहा है.
समापन समारोह में प्रधानमंत्री मोदी और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने इतने बड़े और सफल आयोजन के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इतना सराहा कि लोग अचंभित हो रहे थे.
एक बात और यहाँ गौर करने की है. अरबों रुपये के सरकारी ख़र्च से राज्य में इतना बड़ा आयोजन हुआ लेकिन, यहाँ सत्ता में हिस्सेदार कांग्रेस और आरजेडी लगभग अलग-थलग ही दिखी.
इससे नीतीश कुमार को दो फायदे हुए. एक तो उनकी अपनी छवि ख़ूब चमकी और दूसरी तरफ़ सरकार में लालू यादव की वर्चस्व-चाहत दबाने का भी अवसर मिला. कुल मिलाकर इस बहुचर्चित और निर्विघ्न आयोजन से बिहार की क़ानून-व्यवस्था वाली विवादित छवि ज़रूर सुधरी है.