परिणामों से हुआ स्पष्ट, बसपा के वोट सपा को ट्रांसफर नहीं हो पाए

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती ने वर्षों पुरानी दुश्मनी को भुलाकर साथ आ गए. साथ तो आए लेकिन कोई करिश्मा नहीं दिखा. मोदी-शाह की जोड़ी के सामने अखिलेश-मायावती की जोड़ी पूरी तरह से धराशाई होती नजर आई. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सपा-बसपा का वोट एक दूसरे को ट्रांसफर नहीं हो पाया, जिसके चलते गठबंधन का प्रयोग पूरी तरह से फेल हुआ. अब सपा खेमे में इस बात को लेकर चिंता है की अगर बसपा से गठबंधन जारी रखना है तो किस बुनियाद पर इसे आगे बढाया जाए. जानकारों का कहना है की पहले यह आशंका जताई जा रही थी की शायद सपा के वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं होंगे, लेकिन कई सीटों पर परिणामों को देखर माना जा रहा है की बसपा के वोट सपा उम्मीदवारों को नहीं मिले. जिस तरह के परिणाम सामने आये हैं उससे विपक्षी खेमे में दरार की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. नए समीकरण बनने बिगड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा रहा है.

मतदान के पहले ही चुनावी पंडित यह आशंका जाहिर कर रहे थे कि इस चुनाव में गठबंधन का फायदा सपा से अधिक बसपा को मिलेगा, हुआ भी यही। पूर्वांचल की 12 सीटों के परिप्रेक्ष्य में यदि नतीजों का आकलन करें तो मिलता है कि बसपा जहां शून्य थी, अबकी उसके खाते में चार सीटें आ गई हैं। इन 12 सीटों पर सपा और बसपा ने छह-छह सीटें अपने अपने हिस्से में बांट ली थी। सपा को महज एक सीट पर आजमगढ़ में अखिलेश की जीत के साथ संतोष करना पड़ा है।

गठबंधन के तहत जब सीटों का बंटवारा हो रहा था तभी मायावती ने बेहद रणनीतिक तरीके से सपा को उन सीटों का सौंपा जहां पहले से ही हार तय मानी जा रही थी। मसलन, वाराणसी की सीट सपा के खाते में रही जो भाजपा का गढ़ और खुद पीएम नरेंद्र मोदी की सीट है। सपा अपने हिस्से की वाराणसी सहित राबट्र्सगंज, मीरजापुर, चंदौली और बलिया सीट को हार गई। उधर, बसपा ने अपने खाते की छह सीटों में से चार सीट लालगंज, घोसी, जौनपुर और गाजीपुर को जीतकर गठबंधन में अपनी ताकत को बढ़ा लिया। आंकड़े स्पष्ट कर रहे हैं कि सपा अपनी सीटों पर भले न बसपा का वोट बैंक पूरी तरह से ट्रांसफर करा पाई लेकिन बसपा ने यह काम बखूबी किया। यही कारण रहा कि सपा बलिया और चंदौली की सीट कांटे की टक्कर देने के बावजूद भी हार गई। राबट्र्सगंज में भाजपा और अपना दल गठबंधन को महागठबंधन की ओर से सपा ने कड़ी टक्कर तो दी लेकिन शिकस्त ही हाथ लगी।

गाजीपुर में विकास की तमाम सौगातों को देने वाले केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को अंतत: हार का मुंह देखना पड़ा। माना जा रहा है कि गठबंधन में बसपा के खाते वाली इस सीट पर उनके उम्मीदवार अफजाल अंसारी की जीत को भी सुनिश्चित और बड़ा करने में सिर्फ और सिर्फ सपा का टोटल वोट ट्रांसफर ही वजह रहा। अंकगणित यह भी बताती है कि यादव मतों की बहुलता का साथ न मिला होता तो बसपा यह सीट निकाल नहीं पाती।

समूचे उत्तर प्रदेश में देखा जाए तो सपा-बसपा के गठबंधन को भले ही फेल करार दिया जा रहा हो लेकिन उनका तय किया गया अंकगणित पूर्वांचल में ही कायदे से सधा हुआ दिखा। पहले से सपा के खाते की न सिर्फ एकमात्र सीट आजमगढ़ में अखिलेश यादव की जीत को उनके पिता मुलायम सिंह यादव से बड़ी हुई बल्कि गठबंधन के हिस्से में चार और सीटें आ गई हैं।